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Sunday, 22 December, 2024
होमदेशकौन हैं 80 वर्षीय कनक राजू, जिन्हें आदिवासी लोक नृत्य गुस्सादी को बचाए रखने के लिए पद्मश्री मिला है

कौन हैं 80 वर्षीय कनक राजू, जिन्हें आदिवासी लोक नृत्य गुस्सादी को बचाए रखने के लिए पद्मश्री मिला है

लोक नृत्य गुस्सादी में पारंगत कनक राजू ने इस परंपरा को जीवित रखने के लिए वित्तीय सहायता की आवश्यकता पर जोर दिया है.

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हैदराबाद: इस साल जनवरी में जारी पद्मश्री पुरस्कार विजेताओं की सूची में नाम आने के बाद से कनक राजू का नाम हर तरफ छाया हुआ था. तेलंगाना निवासी 80 वर्षीय कनक राजू आदिवासी नृत्य शैली गुस्सादी को आगे बढ़ाने में जुटे हैं. वह कला के लिए चौथा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार लेने पिछले हफ्ते दिल्ली पहुंचे, हालांकि उन्हें इसका कोई अंदाजा नहीं था कि यह क्या होता है. और उनके लिए इस यात्रा का सबसे रोमांचक पहलू था, अपने जीवन में पहली बार विमान में चढ़ना.

कोमाराम भीम आसिफाबाद जिले के जैनूर मंडल के मारलवाई गांव निवासी राजू ने छह दशकों से अधिक का समय गुस्सादी का अभ्यास करने में बिताया है, जो आमतौर पर उनकी राज गोंड जनजाति का पारपंरिक नृत्य है. इस लोक नृत्य की परंपरा को बचाए रखने के अपने अथक प्रयासों के तहत वह पिछले 40 से अधिक सालों से युवा पीढ़ी को सिखा रहे हैं, और इसे जीवित रखने के लिए सरकारी समर्थन की जरूरत बताते हैं.

उनकी दिल्ली यात्रा का सबसे रोमांचक हिस्सा क्या था? यह पूछे जाने पर उन्होंने दिप्रिंट को फोन पर बताया, ‘मैं पहली बार किसी विमान में सवार हुआ, मैंने बादल देखे. यह सब बहुत अच्छा लगा. मैं इसे हमेशा याद रखूंगा.’

हालांकि, ये पहला मौका नहीं है जब राजू ने राष्ट्रीय राजधानी की यात्रा की थी. वह दिल्ली में सांस्कृतिक मंडलियों का नेतृत्व कर चुके हैं, जिसमें उन्होंने युवा आदिवासियों की नर्तक मंडली को प्रशिक्षित किया था और वह पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय में गणतंत्र दिवस समारोह में आंध्र प्रदेश राज्य की झांकी का हिस्सा भी रह चुके हैं.


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जीविकोपार्जन आसान नहीं

गुस्सादी में केवल आदिवासी पुरुष हिस्सा लेते हैं. एक स्थानीय देवता से जुड़ा यह नृत्य डंडारी उत्सव के दौरान आयोजित होता है, जो आमतौर पर दीपावली के बाद शुरू होता है और 10 दिनों तक चलता है. नर्तक लगभग 1,500 मोर पंखों से बनी टोपी पहनते हैं, जिसे स्थानीय भाषा में मल बूरा कहा जाता है और अपनी कमर पर जानवरों की खाल लपेटते हैं.

गुस्सादी का प्रदर्शन दरअसल युवा पुरुष महिलाओं को प्रभावित करने और एक संभावित जीवनसाथी खोजने के लिए करते हैं.

हालांकि, गुस्सादी ने उन्हें कभी वित्तीय पुरस्कार नहीं दिलाया. अपने पिता से यह नृत्य सीखने वाले राजू बताते हैं, ‘मैं बहुत गरीब पृष्ठभूमि से आता हूं. बचपन में हमारे पास पहनने के लिए कपड़े तक नहीं होते थे. जब तक हम आठ साल के नहीं होते थे तब तक ज्यादातार निर्वस्त्र ही रहते थे. मैंने अपना अधिकांश जीवन जंगलों में बिताया. यह कला मेरे दादा-परदादा के समय से चली आ रही है.’

उसकी स्थिति अब भी कोई बेहतर नहीं है- उनके लिए अपने 11 सदस्यीय परिवार के भरण-पोषण के लिए जीविकोपार्जन आसान नहीं है.


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पीएम मोदी ने मुझसे बात की, कहा- ‘अच्छा खाओ, संकोच मत करो’

राजू इस साल तेलंगाना से पद्मश्री पाने वाले एकमात्र व्यक्ति थे. लेकिन पहले तो उन्हें इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि इसका क्या मतलब है.

उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं पता था कि यह सम्मान कितना प्रतिष्ठित है और यह पुरस्कार क्या मायने रखता है. इसकी घोषणा के बाद से लोगों ने मुझे बधाई देना शुरू कर दिया, तब मीडिया ने भी इसे काफी कवरेज दी. मुझसे कहा गया था कि मुझे दिल्ली जाना होगा और बहुत सारे फोन आने लगे थे.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे बाद में इसके महत्व के बारे में बताया गया और मैं बहुत खुश हूं. शायद मैं अभी भी इसका मतलब पूरी तरह समझ नहीं पाया हूं लेकिन अब मुझे पता है कि पुरस्कार के माध्यम से इस कला को पूरे देश में पहचान मिली है.’

अपने साथी पुरस्कार विजेताओं के साथ कोई खास बातचीत नहीं करने वाले राजू ने बताया कि वह तब बहुत ‘खुश’ हुए जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे बात की.

बेहद उत्साहित नजर आ रहे राजू ने अपने जीवन के बेहतरीन क्षणों के बारे में याद करते हुए दिप्रिंट को बताया, ‘हम सब डाइनिंग एरिया में थे जब प्रधानमंत्री पीछे से आए. उन्होंने मुझसे कहा, ‘संकोच मत करो, अच्छा खाओ.’ उन्होंने हमारे एक समूह से यह भी कहा कि किसी तरह की हिचकिचाहट के बजाये हमें खुद पर गर्व करना चाहिए क्योंकि हमने यह सब अपनी कुशलता से हासिल किया है. मैं बहुत खुश था, मैंने हिंदी में उन्हें जवाब दिया. मैंने उनसे कहा कि मैं हिंदी में बात कर सकता हूं.’

राजू के लिए प्रसिद्धि कोई नई बात नहीं है. क्षेत्र के गांव उन्हें सैकड़ों युवाओं को यह कला सिखाने के लिए ‘मास्टर’ के तौर पर जानते हैं और वह यह सुनिश्चित करने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं कि कहीं यह कला विलुप्त न हो जाए. वह इस नृत्य कला के साथ इतनी गहराई से जुड़े हैं कि ‘गुस्सादी’ उनके परिवार के नाम से ही जुड़ गया है. उन्हें पिछले कुछ वर्षों में राज्य सरकार की तरफ से कई पुरस्कार मिले हैं और इस महीने की शुरुआत में तेलंगाना सरकार ने डंडारी उत्सव के दौरान नृत्य प्रदर्शन के लिए एक करोड़ रुपये का अनुदान जारी किया.

हालांकि, पद्मश्री सम्मान से राजू और गुस्सादी का नाम व्यापक तौर पर देश के सामने आया है. राजू ने कहा, ‘इस पुरस्कार ने मुझे और मेरी परंपरा से देश को परिचित कराया है. मैं बस यही चाहता हूं कि सरकार इस पारंपरिक नृत्य परंपरा को आगे बढ़ाने में हमारी मदद करे और इसे मरने न दे. यह परंपरा जारी रखने के लिए सरकार को हमें आर्थिक और अन्य तरह से समर्थन देना चाहिए, मैं बस इतना ही चाहता हूं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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