मथुरा (उप्र), 19 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त उच्चाधिकार प्राप्त समिति के निर्देशानुसार शेष निरीक्षण कार्य पूरा करने के लिए मथुरा स्थित बांके बिहारी मंदिर का ‘तोशाखाना’ (कोषागार) रविवार को लगातार दूसरे दिन खोला गया।
मंदिर के 1971 से बंद पड़े खजाने कक्ष को उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित उच्चाधिकार प्राप्त समिति के आदेश पर करीब 54 साल बाद शनिवार को खोला गया था।
समिति के सदस्य शैलेंद्र गोस्वामी ने बताया कि दीवानी न्यायाधीश (जूनियर डिवीजन) और नगर मजिस्ट्रेट की देखरेख में समिति के सदस्यों की मौजूदगी में कक्ष को लगातार दूसरे दिन खोला गया।
उच्चाधिकार प्राप्त समिति के एक अन्य सदस्य दिनेश गोस्वामी के अनुसार, कोषागार के अंदर मिली वस्तुओं की एक विस्तृत सूची तैयार की गई।
उन्होंने बताया, ‘एक तिजोरी में तांबे के दो सिक्के और दूसरी में तीन-चार पत्थर मिले। एक बक्से में चांदी की तीन छड़ियां और गुलाल लगी एक सोने की छड़ी भी मिली जो शायद ठाकुर जी द्वारा होली के दौरान इस्तेमाल की जाती थी।’
गोस्वामी ने बताया कि कक्ष के अंदर निरीक्षण कार्य अब पूरा हो गया है और ‘खोजने के लिए कुछ भी नहीं बचा है।’
नगर मजिस्ट्रेट राकेश कुमार सिंह ने कार्यवाही पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया और कहा कि वह आगे की समीक्षा के लिए उच्चाधिकार प्राप्त समिति को एक रिपोर्ट सौंपेंगे।
उच्चतम न्यायालय के आदेश के पालन में, मंदिर के मामलों की देखरेख करने वाली समिति ने 54 साल बाद शनिवार को अदालत की निगरानी में कोषागार (खजाना) खोला।
शीर्ष ने इस सिलसिले में अपने एक विस्तृत आदेश में इससे पहले इस प्रतिष्ठित मंदिर के दैनिक कार्यों की देखरेख के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश अशोक कुमार की अध्यक्षता में 12 सदस्यीय उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया था।
अपर ज़िलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व) पंकज कुमार वर्मा ने कहा, ‘दीवानी न्यायाधीश (जूनियर डिवीजन) की देखरेख में चार गोस्वामी सदस्यों सहित अन्य सदस्यों के साथ खजाने के कमरे को करीब 54 साल बाद शनिवार को खोला गया।”
उन्होंने कहा, “कमरा खोलने में कुछ कठिनाई हुई। प्रक्रिया दोपहर एक बजे शुरू हुई और शाम पांच बजे समाप्त हुई और फिर कमरे को सील कर दिया गया। पीतल के कुछ बर्तन और लकड़ी की वस्तुएं मिलीं और कोई कीमती धातु नहीं मिली। कुछ बक्से और लकड़ी के बक्से भी मिले।’
हालांकि, गोस्वामी समुदाय इस कदम का विरोध कर रहा था। उच्चाधिकार प्राप्त समिति के सदस्य शैलेंद्र गोस्वामी ने कहा कि खजाना खोला ही नहीं जाना चाहिए था। उन्होंने कहा, ‘मैंने इस कदम का विरोध किया और पत्र भी लिखे।’
शैलेंद्र गोस्वामी ने कहा, ‘यह एक अंतरिम समिति है, स्थायी नहीं। माननीय उच्चतम न्यायालय ने इसका गठन केवल भक्तों के दर्शन की सुविधा सुनिश्चित करने के लिए किया था। समिति को अन्यत्र हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। वे अनुचित लाभ उठा रहे हैं और अधिकार हड़प रहे हैं। वे खजाना क्यों खोल रहे हैं और वे क्या साबित करना चाहते हैं।’
उच्चतम न्यायालय के वकील और मंदिर सेवायत सुमित गोस्वामी ने कहा कि इस तदर्थ समिति को ‘तोशाखाना’ (कोष कक्ष) खोलने का अधिकार नहीं दिया गया था। उन्हें भक्तों का ध्यान रखना था जिससे ठाकुर जी के दर्शन में आसानी से हो सके।
उन्होंने यह भी बताया कि उच्चाधिकार प्राप्त समिति के एक गोस्वामी सदस्य श्रीवर्धन गोस्वामी स्वास्थ्य कारणों से उपस्थित नहीं थे।
बांके बिहारी मंदिर के सेवायत ज्ञानेंद्र गोस्वामी ने खज़ाने का कमरा खोलने पर चिंता जताई और कहा कि समिति को पूरी प्रक्रिया और पारदर्शी तरीके से करनी चाहिए थी।
उन्होंने यह भी पूछा कि मीडिया को ‘तोशाखाना’ खोलने की कवरेज करने की अनुमति क्यों नहीं दी गई।
भाषा सं आनन्द सलीम नोमान
नोमान
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