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मंगल ग्रह का लाल रंग लौहयुक्त खनिज की उपस्थिति के कारण हो सकता है: अध्ययन

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नयी दिल्ली, 26 फरवरी (भाषा) एक नए अध्ययन के अनुसार मंगल ग्रह का लाल रंग लौह-युक्त खनिज की उपस्थिति के कारण हो सकता है, जिसके निर्माण के लिए ठंडे पानी की आवश्यकता होती है और इससे यह संभावना मजबूत होती है कि यह ग्रह अतीत में रहने योग्य रहा होगा।

‘नेचर कम्युनिकेशन्स’ पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि लाल ग्रह पर स्थित धूल विभिन्न खनिजों का मिश्रण है, जिसमें आयरन ऑक्साइड भी शामिल है, जिनमें से एक – फेरिहाइड्राइट – ग्रह के रंग का कारण हो सकता है।

ब्राउन यूनिवर्सिटी, अमेरिका में पोस्टडॉक्टरल फेलो तथा अध्ययन के प्रमुख लेखक एडम वैलेंटिनास ने कहा, ‘‘हम फेरिहाइड्राइट को मंगल ग्रह के लाल होने का कारण मानने वाले पहले व्यक्ति नहीं हैं, लेकिन अब हम अवलोकन डेटा और प्रयोगशाला के नए तरीकों का उपयोग करके इसका बेहतर परीक्षण कर सकते हैं, ताकि अनिवार्य रूप से प्रयोगशाला में मंगल ग्रह की धूल बनाई जा सके।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमारे विश्लेषण से, हमें विश्वास है कि फेरिहाइड्राइट धूल में हर जगह है और संभवतः चट्टान संरचनाओं में भी है।’’

हालांकि, चूंकि फेरिहाइड्राइट ठंडे पानी की मौजूदगी में बनता है और पहले लाल रंग देने वाले माने जाने वाले हेमेटाइट जैसे खनिजों की तुलना में कम तापमान पर बनता है, इसलिए निष्कर्ष बताते हैं कि मंगल पर टिकाऊ तरल पानी को बनाए रखने में सक्षम वातावरण हो सकता है।

माना जाता है कि मंगल का वातावरण अरबों साल पहले नम से शुष्क हो गया था जब इसका वातावरण सौर हवाओं के प्रभाव में आ गया था। मंगल पर एक कमजोर चुंबकीय क्षेत्र था, जो इसे सौर हवाओं से बचाने में विफल रहा, जिससे मंगल शुष्क और ठंडा हो गया।

अध्ययन में नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी सहित अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा मंगल पर संचालित कई मिशनों से एकत्र किए गए आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। फिर टीम ने परिणामों की तुलना प्रयोगशाला में प्रयोगों से की, जहां उन्होंने परीक्षण किया कि मंगल ग्रह की कृत्रिम परिस्थितियों के तहत प्रकाश फेरिहाइड्राइट कणों और अन्य खनिजों के साथ कैसे संपर्क करता है।

मंगल से नमूनों का विश्लेषण, जो वर्तमान में नासा के पर्सिवियरेंस रोवर द्वारा एकत्र किया जा रहा है, यह बताएगा कि क्या टीम के निष्कर्ष निश्चित रूप से सही हैं। ये निष्कर्ष मंगल के गठन के लिए एक सिद्धांत के रूप में प्रस्तावित हैं।

रोवर को जुलाई 2020 में प्रक्षेपित किया गया था और यह फरवरी 2021 में मंगल ग्रह पर उतरा।

अनुसंधानकर्ताओं का लक्ष्य मंगल ग्रह की प्राचीन जलवायु और इसकी रासायनिक प्रक्रियाओं को बेहतर ढंग से समझना है ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि ग्रह कभी रहने योग्य था या नहीं।

वैलेंटिनास ने कहा, ‘‘इसे समझने के लिए, आपको इस खनिज के निर्माण के समय की परिस्थितियों को समझने की आवश्यकता है। वे परिस्थितियां आज के शुष्क, ठंडे वातावरण से बहुत अलग थीं।’’

अध्ययन के प्रमुख लेखक ने कहा, ‘‘हम इस अध्ययन से जो जानते हैं वह यह कि सबूत फेरिहाइड्राइट के बनने की ओर इशारा करते हैं, और ऐसा होने के लिए, ऐसी स्थितियां होनी चाहिए जहां हवा या अन्य स्रोतों से ऑक्सीजन और पानी लोहे के साथ प्रतिक्रिया कर सकें।’’

भाषा वैभव नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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