प्रयागराज के कटरा इलाके के भीतर एक मिनी कोटा है. यूपी पुलिस, सब-इंस्पेक्टर, यूपीपीएससी, बैंकिंग, रेलवे, एसएससी और स्कूल शिक्षकों जैसी नौकरियों की परीक्षा की तैयारी के लिए लाखों छात्र सालों से यहां के विभिन्न कोचिंग सेंटरों पर आते रहे हैं. राजस्थान के कोटा फैक्ट्री के विपरीत, प्रयागराज शहर उत्तर प्रदेश के ज्यादातर गरीब, ग्रामीण और अर्ध-ग्रामीण क्षेत्रों के एस्पिरेंट्स (प्रत्याशियों) की जरूरतें पूरी करता है.
वास्तव में, ‘एस्पिरेंट’ यहां एक ऐसा पूर्व नाम वाला पहचानकर्ता है जिसका खुल कर उपयोग यहां के छात्र अपनी पहचान पेश करने के लिए करते हैं.
मिर्जापुर के 26 वर्षीय अभिषेक शुक्ला अपना परिचय देते हुए कहते हैं, ‘एस्पिरेंट हैं, सरकारी नौकरी की तयारी कर रहे हैं.’ इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय गेट के ठीक सामने एक ठीये (स्टाल) पर चाय की चुस्कियां लेते शुक्ला कहते हैं कि वह पिछले चार वर्षों से उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) की तैयारी कर रहे हैं. वह पड़ोस के ‘कोचिंग हब’ नामक इलाके में रहते हैं.
प्रयागराज शहर, जिसे पूर्व में इलाहाबाद कहा जाता था, के कटरा इलाके में स्थित, यह हब 7 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैला है और एक अनुमान के अनुसार शुक्ला जैसे 10 से 15 लाख उम्मीदवारों को समायोजित करता है. लेकिन कोविड महामारी के दौरान बहुत कुछ बदल सा गया है. यहां के छात्र-छात्राओं में अब निराशा ज्यादा फैल गई है. यह उन पर एक दोहरे बोझ सा है. नौकरियां छूटने और आर्थिक संकट की वजह से परिवारवाले उन्हें परीक्षा में अच्छे अंक लाने के लिए और भी अधिक दबाव डाल रहे हैं.
प्लास्टिक के कप से चाय की चुस्की लेते हुए शुक्ला कहते हैं, ‘नौकरी कठिन है. लेकिन फैमिली से प्रेशर डबल हो गया है.’
महिला उम्मीदवारों के लिए यह दबाव एक अलग तरह का है. महामारी की वहज से बर्बाद एक वर्ष के बाद परिवारों ने अपनी बेटियों को प्रयागराज के कोचिंग सेंटरों में वापस भेज तो दिया है. लेकिन इस बार वे एक अंतिम चेतावनी (अल्टीमेटम) के साथ वापस आयीं हैं. नतीजा अभी या फिर शादी.
26 वर्षीया आकृति श्रीवास्तव ने दिप्रिंट को बताया, ‘समय दिया है- एक साल में निकाल कर दिखाओ. मेरे साथ की कई लड़कियों की शादी तय कर दी गई हैं.’
श्रीवास्तव नेपाल सीमा के पास स्थित महराजगंज जिले के रहने वाले हैं. उन्होंने अपने करियर के लिए दो योजनाएं बनाईं थीं. अपने कोचिंग सेंटर के बाहर खड़ी होकर बात करते हए वे कहती हैं, ‘प्लान ए के तहत यूपीएससी की तैयारी करनी थी और प्लान बी में एसएससी, रेलवे और अन्य ग्रेड 2-3 परीक्षाओं की चूहा दौड़ में शामिल होने का था. मेरी अपनी योजना यूपीएससी पर ध्यान केंद्रित करने और अन्य ढेर सारी परीक्षाओं के लिए प्रयास नहीं करने की थी, लेकिन अब चूंकि परिवार का दबाव है, इसलिए मेरे ध्यान का केंद्र बदल गया है. अब इसका उद्देश्य कोई भी नौकरी पाकर ‘स्वतंत्र ‘ बनना है.’
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कटरा में छात्रों की वापसी
स्थानीय पीजी (जहां छात्र रहते हैं) के मालिक, कोचिंग सेंटरों के मालिक और करनालगंज पुलिस स्टेशन के थाना प्रभारी सभी का कहना है कि लगभग 70 प्रतिशत छात्र लॉकडाउन और कोविड की लहरों की मार झेलने के बाद कटरा वापस आ गए हैं. अब वे फिर से किसी टिन के कैन में पैक सार्डिन मछलियों की तरह छोटे से दस-बटा-दस फीट के कमरों में रहने के लिए वापस आ गए हैं, जहां उनके रूममेट्स भी उसी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं. उनमें से ज्यादातर को हर महीने करीब 4,000-7,000 रुपये की जेब खर्च (पॉकेट मनी) मिलती है.
प्रतियोगिता छात्र संगठन के अध्यक्ष अजीत सोनकर ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह एक असंगठित उद्योग है. इस पर कोई नियम-कायदा या केस स्टडी नहीं है. लेकिन यहां के छात्रों का प्रतिनिधि होने के नाते, मैं कह सकता हूं कि महामारी की चपेट में आने से पहले लगभग 10 से 15 लाख छात्र यहां रह रहे थे.’
प्रतियोगिता छात्र संगठन की स्थापना 2017 में कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) की परीक्षा और पूरे भारत में परीक्षा एवं परिणाम में देरी के मुद्दे को उठाने के लिए की गई थी. बाद में, यह समूह पूरे देश में फैले कोचिंग हबों के बीच लोकप्रिय हो गया.
कटरा की भीड़भाड़ वाली गलियां, जो 2020 में पहले लॉकडाउन की घोषणा के बाद से सुनसान पड़ीं थीं, अब फिर से जोर पकड़ रही हैं. टॉपर्स की तस्वीरों के साथ ‘गारंटीशुदा’ परीक्षा परिणाम का वादा करते हुए बड़े-बड़े पोस्टर भी अब वापस आ गए हैं. सस्ते खाने की नई-नई दुकानें खुल गयी हैं, जबकि कुछ पुराने प्रतिष्ठान जैसे यादव टी स्टॉल और ‘भाभीजी की रसोई’, कोविड के कारण उपजी मंदी में गायब हो गए हैं. किताब की दुकानों में छात्रों को सेकेंड और थर्ड-हैंड किताबें खरीदने के लिए आते फिर से देखा जा सकता है.
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यूपी चुनाव और परीक्षा की चिंताएं
आने वाला चुनाव भी छात्रों के दिमाग में छाया है.
इस इलाके के चाय बेचने वालों में से एक सुरेश कहते हैं, ‘अब हम चुनाव के इर्द-गिर्द हो रही उनकी बातचीत का आनंद लेते हैं. छात्र बोझ तले दबें हैं, लेकिन उन्हें यह भी आशा है कि सरकार विधानसभा चुनाव से पहले कुछ परीक्षाओं के परिणामों की घोषणा करेगी.’
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 की शुरुआत में होंगे. कटरा में रहने वाले एस्पिरेंट्स को उम्मीद है कि युवा मतदाताओं को लुभाने के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार कुछ परीक्षाओं को पीछे धकेल सकती है तथा कई के परिणाम और नई भर्तियों की घोषणा कर सकती है.
सोनकर कहते हैं, ‘अगर कोई छात्र 10 दिन तक लगतार बाहर चाय पी लेगा तो फॉर्म भरने के पैसे नहीं बचेंगे. हम चाहते हैं कि परीक्षा में होने वाली देरी एक चुनावी मुद्दा बने. अब हम अंधेरे में तीर मार रहें हैं क्योंकि हमें नहीं पता कि परीक्षा की तारीखों की घोषणा कब की जाएगी.’
कई परीक्षाओं के परिणाम 2018 से अब तक लंबित हैं. मंडी परिषद निरीक्षक परीक्षा 2018 में आयोजित की गई थी लेकिन इसके अंकों की घोषणा कभी नहीं की गई है. 2018 में ही हुई ग्राम विकास अधिकारी परीक्षा धोखाधड़ी कांड की वजह से रद्द कर दी गई थी.
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पैसा, शादी और आत्महत्या
कटरा में अधिकांश छात्रों के पास नौकरी पाने के लिए समय सीमा, धन की कमी और असाधारण दबाव होता है.
आकृति श्रीवास्तव का कहना है कि हालांकि वह एक मध्यम वर्ग वाले परिवार से आती हैं, लेकिन उनके पारिवारिक व्यवसाय को महामारी के कारण उत्पन्न आर्थिक संकट से बाहर आने में अभी कुछ समय लगेगा. वह कहती हैं, ‘तब तक हमें परिवार द्वारा जितनी भी राशि का प्रबंध किया जा सकता है, उसी के साथ गुजरा करना होगा.’
श्रीवास्तव के साथ आई सौम्या द्विवेदी प्रयागराज शहर की ही रहने वाली हैं. हालांकि वह श्रीवास्तव की तरह किराए की समस्याओं का सामना नहीं करती हैं, लेकिन उन्हें और उनके समूह की अन्य लड़कियों की चिंताएं लगभग एक समान ही हैं.’
वह कहती हैं, ‘चलो! शादी को कुछ दिन टाल देते हैं लेकिन इससे अनिश्चितता तो खत्म नहीं होती है. हमारे व्हाट्सएप ग्रुप्स पर हर पखवाड़े एस्पिरेंट्स समुदाय से किसी न किसी की आत्महत्या की तस्वीर होती है. इससे ज्यादा मनोबल गिराने वाला कुछ नहीं है. ये आत्महत्याएं मेरे जैसे हजारों लोगों को धक्का पहुंचाती हैं जो दूसरी कोविड लहर से उस दुख को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं जब हमने अपने परिवार में किसी को खो दिया था.’
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