नई दिल्ली: भारत के ग्रामीण इलाकों में आज भी बाल-विवाह जैसी रूढ़ीवादी परंपराओं को निभाया जा रहा है. अगर आप अपनी गांव की जड़ों से जुड़े हुए हैं तो यकीनन बीते सालों में आपने इस तरह के कुछ मामले तो जरूर देखे होंगे. बीते दिनों तमिलनाडु से एक खबर आई जिसमें बाल विवाह कराने के जुर्म में छह लोगों को गिरफ्तार किया गया.
यह एक मामला था जो पुलिस और प्रशासन की नजर में पड़ा और इस पर ऐक्शन लिया गया, लेकिन न जानें ऐसी कितनी ही मासूम जिंदगियां हैं जिन्हें न तो पुलिस की मदद मिलती है और न किसी संस्था की. अब भारत सरकार ने लड़कियोंं के लिए शादी की उम्र को 18 से बढ़ाकर 21 साल करने का फैसला किया है, जिसे केंद्रीय कैबिनेट से मंजूरी मिल चुकी है और अगले हफ्ते इससे जुड़े विधेयक को संसद में पेश किया जाएगा.
लड़कों के लिए शादी की उम्र अभी 21 ही है.
मोदी सरकार के इस फैसले के बाद लड़का-लड़की दोनों की शादी करने की उम्र एक समान हो जाएगी. पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में भी इसका जिक्र किया था.
शादी की कानूनन उम्र निर्धारित करने के पीछे का मुख्य कारण है, देश में हो रहे बाल विवाह को रोकना. हालांकि, इस बार शादी की उम्र को 3 साल बढ़ाने के पीछे सरकार ने कई अन्य कारण दिए हैं.
जया जेटली की अध्यक्षता में टास्क फोर्स का गठन
पिछले साल जून में, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने समता पार्टी की पूर्व अध्यक्ष जया जेटली की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का गठन किया था और उसे बाल विवाह, मातृ मृत्य दर को कम करने के जरूरी कारण, महिलाओं और बच्चों में पोषण स्तर से जुड़े मामलों की जांच करने का काम सौंपा था.
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साल 2020-21 का बजट पेश करते हुए संसद में बताया, ‘1929 के तत्कालीन शारदा अधिनियम में संशोधन करके 1978 में महिलाओं की शादी की उम्र पंद्रह वर्ष से बढ़ाकर अठारह वर्ष कर दी गई थी. जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ रहा है महिलाओं के लिए पढ़ने और काम करने के मौके खुल रहे हैं.’
उन्होंने यह भी बताया कि देश में मातृ मृत्यु दर को कम करने की जरूरत है और इसके अलावा पोषण के स्तर पर भी सुधार करने की जरूरत है. एक लड़की मातृत्व में कब प्रवेश करती है, यह उसका अधिकार है.
यह कहते हुए ही टास्क फोर्स का निर्माण किया गया था.
दिसंबर 2020 में लगभग छह महीने बाद टास्क फोर्स ने नीति आयोग को कुछ सिफारिशें की जिनमें शादी के लिए लड़कियों की कानूनी उम्र को 18 से बढ़ाकर 21 करना शामिल था. टास्क फोर्स ने पूरे देश में 16 विश्वविद्यालयों के नौजवानों से बात की और 15 एनजीओ से भी चर्चा की.
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बाल विवाह और कुपोषण पर क्या कहते हैं आंकड़ें
नेशनल हेल्थ फैमिली सर्वे-5 में पाया गया कि भारत के ग्रामीण इलाकों में हर 4 में से 1 लड़की का बाल विवाह कर दिया जाता है. हालांकि, बाल विवाह की संख्या में कमी आई है.
सर्वे में पाया गया कि साल 2015-16 में 18 साल से पहले होने वाली लड़कियों की संख्या 27 प्रतिशत थी जो साल 2019-21 में 27 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई है.
NHFS के मुताबिक, एनीमिक (खून की कमी) महिलाओं का प्रतिशत 53.1 से बढ़कर 57 प्रतिशत हो गया है, एनीमिक किशोर लड़कियों (15-19 वर्ष की आयु) का आंकड़ा भी 54.1 प्रतिशत से बढ़कर 59.1 प्रतिशत हो गया.
इसके अलावा यूनिसेफ की एक स्टडी, ‘कोविड-19- बाल विवाह के खिलाफ प्रगति के लिए खतरा’ ने चेतावनी देते हुए कहा कि महामारी के कारण भारत में 1 करोड़ से ज्यादा बाल विवाह के मामले सामने आ सकते हैं.
प्रेम विवाह करने वाले जोड़ों के लिए नुकसान
हिंदी साहित्य में मास्टर्स कर चुकीं और सोशल मीडिया पर महिलाओं के मुद्दे पर लिखने वाली शिवानी ठाकुर कहती हैं, ‘सरकार का यह फैसला उन लड़कियों के लिए नुकसानदेह साबित होगा जो अपने घरवालों के खिलाफ जाकर अपने प्रेमी से शादी करने का फैसला करती हैं.’
शिवानी कहती हैं, ‘वो लड़कियों जो 18 साल का होने से 2 महीने पहले लव मैरिज कर लेती हैं, उनके परिवार वाले उनकी शादी को अमान्य ठहराकर शादी तोड़ देते हैं. ऐसे में जब शादी करने की उम्र को 21 साल कर दिया जाएगा तो प्रेम विवाह करने वाले जोड़ों के लिए ये एक मुश्किल पैदा कर देगा.’
शिवानी का मानना है कि शादी की उम्र को 18 से 21 करना लड़कियों को उनके पैरेंट्स के अधीन कर देना है. वो कहती हैं, ‘बालिग होने के नाते महिलाओं को अपने शरीर से जुड़े, अपने जीवन से जुड़े ऐसे फैसले लेना का अधिकार होना चाहिए.’
शिवानी कहती हैं, ‘सरकार के इस फैसले से बाल विवाह को रोकने में कोई मदद नहीं मिलेगी. क्योंकि बाल विवाह तो अब भी हो ही रहे हैं. कितनी ही लड़कियां हैं जिनकी शादी 15-16 साल की उम्र में हो जाती है. अगर सरकार बाल विवाह को रोकना चाहती है तो उसे पिछले कानून पर ही सख्ती करनी चाहिए.’
इस फैसले से होने वाले फायदे के बारे में बताते हुए शिवानी कहती हैं, ‘यह फैसला कुछ सीमित महिलाओं के लिए फायदेमंद होगा. वो जो थोड़े हाई-क्लास परिवार से आती हैं और वो पढ़ने या काम करने के लिए थोड़ा और समय चाहती हैं. वो इस अधिकार का इस्तेमाल करते हुए अपनी शिक्षा या काम के लिए और समय मांग सकती है लेकिन ये एक सीमित वर्ग के लिए ही होगा.’
सरकार ने अपने इस फैसले के पीछे जितने तर्क दिए हैं उनमें से एक है मातृ मृत्यु दर यानी जो माएं बच्चा पैदा करते हुए मर जाती है. इस पर शिवानी कहती हैं, ‘एम्स से लेकर सफदरजंग में 15-16 साल की ऐसी कई बच्चियां हैं जो बच्चा पैदा करने के लिए पड़ी हैं, अगर इसे रोकना है तो पुराने कानून को ही सख्ती से लागू किया जाए.’
बाल विवाह में होगी कमी?
बच्चों और महिलाओं के कल्याण के लिए काम करने वाली संस्था सीएएसपी की डॉयरेक्टर मंजू उपाध्याय पिछले 36 सालों से इस क्षेत्र में काम कर रही हैं. वह इस फैसले की काफी सराहना करती हैं. उनका मानना है कि इस फैसले से यकीनन बाल विवाह में कमी दर्ज होगी.
वो कहती हैं, ‘जब शादी की उम्र 18 साल है तो बहुत से मामलों में 16-17 साल की लड़कियों की शादी होती है. फिर जब उम्र को बढ़ाकर 21 कर दिया जाएगा तो हो सकता है इसमें कमी आए. अभी देश में बाल विवाहों के मामले 23 प्रतिशत हैं और इस कानून के बाद यकीनन आंकड़े में कमी दर्ज की जाएगी.’
मंजू ने दिप्रिंट को बताया, ‘सरकार के इस फैसले से लड़कियों को आगे बढ़ने का और पढ़ने का मौका मिलेगा. इसके अलावा सरकार के इस फैसले से अब लड़के और लड़की की शादी की उम्र बराबर आ गई जिसे बराबरी की बात भी साबित होती है जो बहुत अच्छी बात है.’
हालांकि मंजू जोर देकर कहती हैं कि यह देखना होगा कि यह किस तरह से लागू होगा. समाज में हर चीज धीरे-धीरे ही लागू होती है. वो कहती हैं, ‘कानून आ जाए तो परिवर्तन भी आएगा.’
मानवाधिकार और महिला अधिकारों के बारे में लिखने वाली लेखिका और पत्रकार मधु किश्वर ने इस फैसले पर आपत्ति जताई है. उन्होंने इस फैसले की खबर को साझा करते हुए लिखा है कि सरकार का यह फैसला मूर्खतापूर्ण है. वो लिखती हैं, ‘मोदी सरकार द्वारा लिया गया यह फैसल मूर्खतापूर्ण और हानिकारक है.’
1.Stupid & harmful move by @narendramodi govt all so that after doing Hindu rituals at Kashi,he can resume donning progressive mask.
Our PM is serious victim of #Wokism
Even in Europe &US they're lowering age of marriage given rampant teenage pregnancies https://t.co/6qmtjmDiao— Madhu Purnima Kishwar (@madhukishwar) December 16, 2021
इसके अलावा उन्होंने कहा, ‘यूरोप और अमेरिका में भी किशोरों में प्रेग्नेंसी को देखते हुए शादी की उम्र कम की जा रही है.’
राष्ट्रीय महिला आयोग की चेयरपर्सन रेखा शर्मा ने इस फैसले से जुड़ी खबर को अपने ट्विटर हैंडल पर साझा करते हुए लिखा, ‘महिलाओं के लिए समानता और समान अवसरों की दिशा में एक और कदम.’
Another step towards equality and equal opportunities for women.
Minimum Age For Marriage Of Women From 18 To 21: Cabinet Clears Proposal https://t.co/FigjS4QmAf
— Rekha Sharma (@sharmarekha) December 16, 2021
विभिन्न धर्मों के अपने कानून
शादी को लेकर विभिन्न धर्मों के निजी कानून हैं. जिसको लेकर उनके अपने स्टैंडर्ड है.
हिंदुओं के लिए, हिंदू मैरिज एक्ट 1955 है जिसके तहत महिलाओं के लिए शादी करने की उम्र 18 साल है और पुरुषों के लिए 21 साल है. वहीं इस्लाम के तहत उस नाबालिग की शादी भी की जा सकती है जिसने यौवनावस्था में कदम रख दिया हो.
स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 और बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत महिला और पुरुष के लिए तय उम्र 18 और 21 साल है. महिलाओं के लिए शादी की नई उम्र लागू करने के लिए इन कानूनों में परिवर्तन होगा.
समाजवादी पार्टी के सांसद शफीक उर रहमान बर्क़ ने सरकार के इस फैसले पर विवादित बयान दिया है. उन्होंने कहा कि शादी की उम्र बढ़ाने से लड़कियां ज्यादा आवारगी करेगी. उनकी इस टिप्पणी पर विवाद बढ़ने के बाद फिर उन्होंने यू टर्न लेते हुए कहा कि गरीब लोग जल्दी शादी करवाना चाहते हैं.
’18 साल में प्रधानमंत्री चुन सकते हैं तो पार्टनर क्यों नहीं’
एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि 18 साल की लड़की जब वोट दे सकती है तो अपना पार्टनर क्यों नहीं चुन सकती.
ओवैसी ने कहा कि आप सरकार हैं, मोहल्ले के चाचा या अंकल नहीं हैं कि आप फैसला करेंगे कि कौन कब शादी करेगा या क्या खाना खाएगा.
In contrast, Modi govt acts like a Mohalla Uncle. Deciding what we eat, who/when we marry, what God we worship, etc
Ironically, govt proposes 18 as age of consent in Data Bill. If 18-year olds can choose how their data is used, why can’t they choose their life partners? 11/n
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) December 17, 2021
ओवैसी ने कहा, ‘यह मोदी सरकार के पितृसत्तात्मकता का एक बहुत अच्छा उदाहरण है. 18 साल की उम्र में, एक भारतीय नागरिक कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर कर सकता है, व्यवसाय शुरू कर सकता है, प्रधानमंत्री चुन सकता है और सांसदों और विधायकों का चुनाव कर सकता है. मेरा विचार है कि लड़कों की शादी की आयु 21 से घटाकर 18 साल कर दी जानी चाहिए.’
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