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Friday, 22 November, 2024
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बाज़ार से जुड़ाव, मूल्यवर्धन, रिसर्च- बजट में कृषि क्षेत्र के लिए क्या कर सकती है मोदी सरकार

2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के, पीएम मोदी के निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में, सरकार ने बहुत से क़दम उठाए हैं, लेकिन प्रयासों का कोई असर नहीं हुआ है.

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नई दिल्ली: कृषि सुधार क़ानूनों के ख़िलाफ प्रदर्शन, और गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय राजधानी में हुई हिंसा के बाद, कृषि और किसान कल्याण, नरेंद्र मोदी सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गए हैं.

इस सोमवार को जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करेंगी, तो ज़्यादा ध्यान इसी क्षेत्र पर रहने वाला है.

साल 2016 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 तक, किसानों की आय दोगुना करने की, सरकार की मंशा का ऐलान किया था, लेकिन उस दिशा में कई क़दम उठाने के बाद भी, सरकार ने ख़ुद इस बात को माना है, कि मौजूदा विकास दर को देखते हुए, अगले साल तक इस लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकता.

साल 2020-21 की पहली तिमाही में, कृषि क्षेत्र में 3.4 प्रतिशत (समान क़ीमतों पर) की दर से विकास हुआ- जिस अवधि में सख़्त देशव्यापी लॉकडाउन था, और जब अर्थव्यवस्था 23.9 प्रतिशत सिकुड़ गई थी. दूसरी तिमाही में भी, जब अर्थव्यवस्था में 7.5 प्रतिशत की कमी आई, तब भी कृषि क्षेत्र की विकास दर 3.4 प्रतिशत पर स्थिर बनी रही.

लेकिन कृषि का ये निरंतर विकास, किसानों की आय वृद्धि में तब्दील नहीं हुआ है, और महामारी में श्रम लागत तथा इनपुट दाम बढ़ने से, उनकी समस्याएं और गहरा गईं. रबी की फसल काटने की लागत बहुत बढ़ गई, क्योंकि प्रवासी मज़दूर उपलब्ध नहीं थे, और मशीनों के किराए बढ़ गए थे, क्योंकि एक तो उनकी कमी थी, दूसरे आने जाने पर भी पाबंदी थी.


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अभी तक सरकार के प्रयास

2014 और 2015 के लगातार दो साल के सूखे के बाद, 2016 में एक रैली के दौरान किसानों की आय दोगुनी करने के, पीएम मोदी के ऐलान के कुछ ही समय बाद, मुद्दों की जांच करने, और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, रणनीतियां तय करने की ख़ातिर, सरकार ने एक अंतर-मंत्रालयी समिति गठित कर दी.

समिति ने सितंबर 2018 में सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी, जिसमें विकास के सात साधनों पर फोकस करने की सिफारिश की गई थी- फसल और मवेशियों की उत्पादकता में सुधार, उत्पादन लागत घटाकर संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल, बहु-फसलीय कृषि को बढ़ावा, विविधीकरण करके अधिक मूल्य की फसलों पर जाना, वास्तविक मूल्यों में सुधार, और कृषि से गैर-कृषि व्यवसायों की तरफ जाना.

उसके बाद से, सरकार ने बहुत से तकनीकी हस्तक्षेपों के अलावा, किसानों के लिए सीधे आमदनी बढ़ाने वाली स्कीमें शुरू की हैं, जैसे पीएम-किसान (6,000 रुपए सालाना का सीधा नक़द भुगतान) और पीएम किसान मान-धन योजना (तमाम भूमि धारक छोटे और सीमांत किसानों के लिए पेंशन स्कीम).

सरकार ने कृषि के क्षेत्र में, तमाम केंद्रीय और केंद्र द्वारा वित्त-पोषित योजनाओं के लिए, कुल आवंटन को लगभग दोगुना करते हुए, 2019-20 में 1,38,564 करोड़ रुपए कर दिया, जो पिछले वर्ष के संशोधित बजट में 75,753 करोड़ रुपए था.

वित्त वर्ष 2020-21 में कृषि के लिए, बजट आवंटन 2 लाख करोड़ था, जिसमें से अधिकांश राशि अल्प-कालिक नक़द प्रोत्साहन, तथा सब्सीडी के लिए थी, जिसमें पीएम-किसान का हिस्सा 35 प्रतिशत, और खाद सब्सीडी का हिस्सा 34 प्रतिशत था. इसके अंदर कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान घोषित, आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम के तहत, कृषि अवसंरचना कोष के लिए, पहली किश्त के रूप में एक लाख करोड़ रुपए, अतिरिक्त आवंटित किए गए.

लेकिन, कृषि क्षेत्र में प्रत्यक्ष आय हस्तक्षेप और बुनियादी ढांचे में निवेश के बावजूद, ज़मीन पर इसका असर कहीं कहीं ही दिखा है. पिछले तीन वर्षों में, कृषि श्रमिकों की दैनिक मज़दूरी में, सिर्फ 34 रुपए का इज़ाफा हुआ है- 2017 में 259 रुपए से बढ़कर 2020 में 293 रुपए हो गई.


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बजट की इच्छा सूची

विशेषज्ञ मानते हैं कि कृषि क्षेत्र के लिए काफी काम किया गया है, हालांकि देशव्यापी रूप से किसानों की आय दोगुनी नहीं हुई है. वो कुछ सुझाव देते हैं जिन्हें वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, 2021-22 के बजट में शामिल कर सकती हैं.

इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर दि सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (इक्रीसैट) में, भारत के लिए कंट्री डायरेक्टर, अरबिंद कुमार पाधी ने कहा: ‘किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए, मछली पालन, पोल्ट्री, और दूसरे क्षेत्रों में बहुत काम किया गया है. जब से हमारे पीएम ने इस लक्ष्य की घोषणा की, तब से सरकार ने बहुत सा सकारात्मक काम किया है’.

किसानों के मंच भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष, अजय वीर जाखड़ ने दिप्रिंट से कहा: ‘मानव संसाधनों को बुनियादी ढांचे के ऊपर प्राथमिकता देनी चाहिए. कृषि क्षेत्र के विकास तथा किसानों और उपभोक्ताओं के फायदे के लिए, कृषि विस्तार और कृषि अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाना चाहिए’.

जाखड़ ने समझाया: ‘कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में, तक़रीबन 50 प्रतिशत पद ख़ाली पड़े हुए हैं, जिन्हें केंद्र की वित्तीय सहायता से भरा जाना चाहिए. कृषि अनुसंधान और विस्तार से जुड़ी सभी स्कीमों का ख़र्च, केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा, 90:10 के अनुपात में वहन किया जाना चाहिए, ताकि कृषि विस्तार और अनुसंधान से जुड़ी रिक्तियों को भरने का प्रोत्साहन मिले, देश में कृषि विकास को बढ़ावा मिले, और किसानों की आय में इज़ाफा हो.

पाधी ने ये भी कहा: ‘हमारा फोकस बाज़ार से जुड़ाव, और किसानों की उपज पर होना चाहिए, जिससे किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी. हमें ग़ैर-कृषि आय के बारे में भी ग़ौर करना होगा, और उसे बढ़ाना होगा’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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