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मंगलवार, 27 मई, 2025
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कई महिलाओं ने मासिक धर्म के बारे में सोशल मीडिया पर भ्रामक जानकारी होने की बात कही: सर्वेक्षण

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नयी दिल्ली, 27 मई (भाषा) अधिकांश भारतीय महिलाएं मासिक धर्म के बारे में जानकारी के लिए सोशल मीडिया को एक अच्छा स्रोत मानती हैं, लेकिन बहुत कम महिलाएं मासिक धर्म संबंधी आपात स्थितियों में इस पर भरोसा करती हैं। यह जानकारी एक हालिया सर्वेक्षण में सामने आयी है।

ये निष्कर्ष एवरटीन ‘मेंसट्रूअल हाइजीन सर्वे’ के 10वें वार्षिक संस्करण का हिस्सा हैं, जो मासिक धर्म स्वच्छता दिवस से पहले जारी किया गया है। 72.4 प्रतिशत उत्तरदाता 19-35 आयु वर्ग की थीं और 76.6 प्रतिशत ने स्नातक या उच्च शिक्षा पूरी कर ली थी।

सर्वेक्षण में कहा गया है कि लगभग 71.6 प्रतिशत महिलाओं का मानना ​​है कि सोशल मीडिया मासिक धर्म के बारे में पर्याप्त जानकारी प्रदान करता है, जबकि केवल 11.5 प्रतिशत महिलाएं मासिक धर्म संबंधी आपात स्थितियों के दौरान इसे प्राथमिक स्रोत के रूप में उपयोग करती हैं।

पैन हेल्थकेयर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) चिराग पान ने कहा, ‘यह तथ्य कि भारत में दो तिहाई से अधिक महिलाएं सूचना के स्रोत के रूप में सोशल मीडिया पर निर्भर हैं, यह दर्शाता है कि प्रभावशाली लोग और ब्लॉगर मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में जागरूकता पैदा करने में शानदार काम कर रहे हैं।’

उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकसित भारत के सपने को साकार करने में उनकी जिम्मेदारी और भी बड़ी है। यह जरूरी है कि सोशल मीडिया समुदाय सटीक, तथ्य-आधारित और सत्यापित जानकारी के माध्यम से सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं का विश्वास बनाए।’’

कई महिलाओं ने ऑनलाइन भ्रामक या हानिकारक जानकारी मिलने की बात कही।

एक झूठा दावा यह भी था कि मासिक धर्म में देरी पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज (पीसीओडी) का संकेत है। दूसरे में कहा गया कि उन्हें मासिक धर्म के दर्द के लिए नींबू पानी या कॉफी पीने की सलाह दी गई, जिससे उनके लक्षण और भी बदतर हो गए।

कुछ उत्तरदाताओं को गलत घरेलू उपचार मिले, जबकि अन्य को गलत सूचना मिली कि मासिक धर्म के दौरान व्यायाम करने से शरीर को नुकसान हो सकता है। यह धारणा मासिक धर्म के दौरान ऐंठन से राहत और मनोदशा में सुधार के लिए हल्की से मध्यम शारीरिक गतिविधि का समर्थन करने वाले वैज्ञानिक प्रमाणों का खंडन करती है।

एवरटीन के निर्माता, वेट एंड ड्राई पर्सनल केयर के सीईओ हरिओम त्यागी ने कहा कि सर्वेक्षण में जागरूकता के मामले में कमी उजागर हुई है।

उन्होंने कहा, ‘‘हमारे सर्वेक्षण से यह स्पष्ट है कि कई महिलाएं मासिक धर्म के दर्द के लिए सुरक्षित और प्रभावी समाधान खोज रही हैं, लेकिन इसके बारे में जागरूकता की कमी है।’’

लगभग 41.5 प्रतिशत महिलाओं ने मासिक धर्म के दौरान किसी भी प्रकार के दर्द निवारक का उपयोग नहीं करने की बात कही, जबकि 82.7 प्रतिशत महिलाओं को हल्के से लेकर गंभीर दर्द का अनुभव हुआ।

त्यागी ने बताया कि केवल 5.5 प्रतिशत लोगों को दर्द निवारक दवाओं के विकल्प के रूप में मासिक धर्म ऐंठन रोल-ऑन के लाभों के बारे में पता था, जबकि 14.2 प्रतिशत उत्तरदाताओं द्वारा दर्द निवारक दवाओं का उपयोग किया जाता है।

महिलाओं ने मासिक धर्म से संबंधित वर्जनाओं और मिथकों पर जोर देने वाली सोशल मीडिया सामग्री के प्रसार का भी उल्लेख किया। जैसे कि यह मान्यता कि मासिक धर्म का रक्त अशुद्ध होता है, महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान धार्मिक स्थानों पर नहीं जाना चाहिए, या अचार जैसे खाद्य पदार्थों को छूने से वे खराब हो सकते हैं।

अन्य भ्रामक दावों में मासिक धर्म के दौरान बाल न धोना, दूध और दही जैसे सफेद रंग के खाद्य पदार्थों से परहेज करना तथा गलत धारणाएं जैसे कि हल्का प्रवाह बांझपन का संकेत है, या यह कि मासिक धर्म के दौरान महिलाएं गर्भवती नहीं हो सकती हैं, शामिल हैं।

सर्वेक्षण में पूरे भारत में 1,152 महिलाओं को शामिल किया गया। सर्वेक्षण में आंध्र प्रदेश, असम, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, मणिपुर, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से महिलाओं को शामिल किया गया।

भाषा अमित नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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