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Tuesday, 2 September, 2025
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साधारण किसान परिवार से हैं मराठा आरक्षण के मुद्दे पर आंदोलन करने वाले मनोज जरांगे

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(फोटो के साथ)

छत्रपति संभाजीनगर, 30 अगस्त (भाषा) महाराष्ट्र के एक गांव में साधारण किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले मराठा आरक्षण आंदोलन कार्यकर्ता मनोज जरांगे ने अपने जीवन में एक लंबा सफर तय किया है, जो एक होटल और चीनी कारखाने में काम करने के साथ शुरू हुआ था।

जरांगे ने शुक्रवार को जब फिर से आमरण अनशन शुरू किया तो बड़ी संख्या में मराठा समुदाय के लोग उनके प्रति एकजुटता दिखाने के लिए दक्षिण मुंबई स्थित आंदोलन स्थल आजाद मैदान में एकत्रित हुए। वर्ष 2023 के बाद से यह जरांगे का सातवां अनशन है और इसे आरक्षण पाने के लिए समुदाय की अंतिम लड़ाई बताया जा रहा है।

जरांगे की मराठा हितों के लिए लड़ाई के कारण पहले भी सरकार और सत्तारूढ़ दलों को उनकी मांगों पर ध्यान देने और टकराव से बचने के लिए अपने प्रतिनिधि भेजने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

हमेशा सफेद कपड़ों और केसरिया पटका पहने नजर आने वाले इस दुबले-पतले कार्यकर्ता की आक्रामक मुद्रा और राजनीतिक दिग्गजों को चुनौती देने की प्रवृत्ति ने पार्टियों को सतर्क कर दिया है।

जरांगे के परिचित बताते हैं कि सक्रिय राजनीति छोड़ने और किसानों एवं मराठों के लिए आंदोलन शुरू करने से पहले वह कुछ समय तक कांग्रेस कार्यकर्ता रहे थे। राज्य में राजनीतिक रूप से प्रभावशाली मराठा समुदाय के सदस्यों की संख्या लगभग 30 प्रतिशत है।

दो साल पहले तक मनोज जरांगे कोई जाना-पहचाना नाम नहीं थे। 29 अगस्त, 2023 को जब उन्होंने जालना जिले के अपने अंतरवाली सरती गांव में मराठों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू की, तो उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया।

हालांकि, एक सितंबर को हिंसा भड़कने के तीन दिन बाद ही सब कुछ बदल गया, जब स्थानीय अधिकारियों ने जरांगे को जबरन अस्पताल में भर्ती कराने की कोशिश की थी।

इसके बाद की घटनाओं ने एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी। विपक्ष ने तत्कालीन उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर निशाना साधा था और जरांगे के समर्थकों और मराठा आरक्षण समर्थक प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई के लिए उनका इस्तीफा मांगा था। उस समय गृह विभाग फडणवीस के पास ही था।

पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोड़े थे क्योंकि उन्होंने अधिकारियों को जरांगे को अस्पताल ले जाने से रोक दिया था। हिंसा में 40 पुलिसकर्मियों समेत कई लोग घायल हो गए थे और राज्य परिवहन की 15 से अधिक बसों में आग लगा दी गई थी।

आंदोलन और उसके बाद की पुलिस कार्रवाई ने जरांगे को एक नयी पहचान दिला दी थी और शिवसेना-भाजपा-राकांपा सरकार को एक बार फिर शिक्षा व नौकरियों में मराठों के लिए आरक्षण की बात करने को मजबूर होना पड़ा था। यह एक भावनात्मक मुद्दा था, जो अब कानूनी उलझन में फंस गया है।

मटोरी के पत्रकार राजेंद्र काले ने पहले ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया था कि जरांगे मध्य महाराष्ट्र के बीड जिले के एक छोटे से गांव मटोरी के रहने वाले हैं। जरांगे ने अपनी स्कूली शिक्षा वहीं पूरी की थी। शुरुआती कुछ साल गांव में बिताने के बाद वह जालना जिले की अंबाड़ तहसील के शाहगढ़ चले गए, जहां उन्होंने एक होटल में काम किया।

उन्होंने बताया था कि बाद में जरांगे को अंबाड़ में एक चीनी कारखाने में नौकरी मिल गई, जहां से वह राजनीति में आए। उन्होंने बताया कि जरांगे की पत्नी और बच्चे शाहगढ़ में रहते हैं।

काले ने कहा कि जरांगे ने मराठा आरक्षण आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले लोगों के परिवारों को सरकार से मुआवजा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

मराठा क्रांति मोर्चा (एमकेएम) के समन्वयक प्रोफेसर चंद्रकांत भरत ने कहा, ‘कांग्रेस पार्टी के लिए काम करते हुए, वह वर्ष 2000 के आसपास युवा कांग्रेस के जिला अध्यक्ष बने। हालांकि, कुछ राजनीतिक मुद्दों पर वैचारिक मतभेदों के कारण, उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और मराठा समुदाय के संगठन के लिए काम करना शुरू कर दिया।’ एमकेएम मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे संगठनों में से एक है।

भरत ने बताया कि 2011 के आसपास, जरांगे ने ‘शिवबा संगठन’ नाम से एक संगठन बनाया।

जरांगे का आंदोलन केवल मराठा आरक्षण के मुद्दे तक ही सीमित नहीं है। उन्होंने किसानों से जुड़े मुद्दों को भी उठाया।

भरत ने बताया कि 2013 में, जरांगे ने जालना के किसानों के लिए जयकवाड़ी बांध से पानी छोड़ने की मांग को लेकर एक आंदोलन शुरू किया था।

एमकेएम पदाधिकारी ने बताया, ‘जरांगे 2016 में पूरे राज्य में आयोजित मराठा आरक्षण समर्थक मार्च में सक्रिय रूप से शामिल हुए थे और मध्य महाराष्ट्र के मराठवाड़ा से समुदाय के सदस्यों को देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली तत्कालीन भाजपा सरकार के समक्ष अपनी मांगें रखने के लिए मुंबई ले गए थे।’

भरत ने बताया कि जालना जिले के साष्टी पिंपलगांव में जरांगे का आंदोलन लगभग 90 दिन तक चला था।

मनोज जरांगे के एक रिश्तेदार अनिल महाराज जरांगे ने बताया कि कार्यकर्ता ने 2005 के आसपास मटोरी गांव छोड़ दिया था। उनके पिता रावसाहेब और मां प्रभाबाई अब भी मटोरी में रहते हैं। उन्होंने बताया कि जरांगे के बड़े भाई जगन्नाथ और काकासाहेब भी वहीं रहते हैं और खेती करते हैं।

रिश्तेदार ने कहा, ‘मनोज जरांगे ने शाहगढ़ के पास कुछ जमीन खरीदी थी, लेकिन उनके परिवार की आय हमेशा औसत रही। उन्होंने दूसरे लोगों को भी समुदाय के लिए काम करने के लिए प्रोत्साहित किया।”

जरांगे मराठों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के तहत 10 प्रतिशत आरक्षण देने की मांग कर रहे हैं। वह चाहते हैं कि सभी मराठों को ओबीसी के तहत आने वाली कृषि प्रधान जाति कुनबी के रूप में मान्यता दी जाए ताकि समुदाय के लोगों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण मिल सके।

भाषा जोहेब अमित

अमित

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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