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Thursday, 19 December, 2024
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मछलियां खाने के शौकीन और सादगी की मिसाल थे मनोहर पर्रिकर

चार बार गोवा के मुख्यमंत्री रहे मनोहर पर्रिकर का 63 वर्ष की आयु में निधन हो गया, रिपोर्टर पूर्व रक्षामंत्री के साथ अपने संबंधों के बारे में याद कर रहे हैं.

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‘बॉस चार एसी चाहते हैं, कृपया इसे जल्दी करवाएं’

जब 2014 के अंत में रिपोर्टर अपना परिचय देने के लिए उनके कमरे में दाखिल हुआ था, तब रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर के विशेष कार्य अधिकारी उपेंद्र जोशी को किसी और के होने की उम्मीद थी.

बातचीत करने के लिए रिपोर्टर उत्सुक था, मैंने हिंदी में पूछा ‘क्या हुआ?’ क्या उन्होंने आवश्यकता से कम एसी लगाए हैं? ‘उन्होंने हंसते हुए कहा ‘बॉस’ जैसा कि पर्रिकर के कर्मचारियों ने उन्हें फोन किया तो पता चला कि घर में 12 एयर कंडीशनर थे और वे चाहते थे कि केवल चार एसी ही लगाए जायें.

देश के रक्षामंत्री से ऐसा कुछ अपेक्षित नहीं था. इससे पहले मैं निश्चित रूप से नेताओं के बारे में एक अलग राय रखता था, मैंने भारतीय राजनेताओं की सनक और ज़िद्दीपन के बारे में देखा और सुना था.

जोशी रिपोर्टर का परिचय करने के लिए मंत्री के कार्यालय में ले गए ग्रे पैंट, नीली शर्ट, और उनके ट्रेडमार्क चमड़े के सैंडल में पहने पर्रिकर ने खड़े होकर रिपोर्टर को बैठने के लिए कहा.

बातचीत 10 मिनट से भी कम समय तक चली और उस बैठक से यह निकला कि पर्रिकर एक सरल और बुद्धिमान व्यक्ति हैं.

अगले कुछ हफ्तों और महीनों के दौरान रिपोर्टर ने कई बार तत्कालीन रक्षामंत्री से उनके कार्यालय और आवास पर निश्चित रूप से विभिन्न आयोजनों में मुलाकात की.

मछली और पेन से प्यार

पहली बार जब मैं पर्रिकर के घर गया तो मुझे यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि बहुत ही खाली था. एक और आश्चर्य की बात थी कि जोशी और रक्षामंत्री की टीम के दो अन्य सदस्य पर्रिकर के आवास पर तब तक रहे, जब तक उन्हें दिल्ली में अपना घर नहीं मिल जाये.

पर्रिकर मछली से प्यार करते थे और अक्सर भोजन की मेजबानी करते थे, जहां पर स्टार आकर्षण हमेशा गोवा फिश करी हुआ करती थी.

मार्च 2016 में गोवा में रक्षा प्रदर्शनी के दौरान, उन्होंने उस होटल की ओर रुख किया जहां रिपोर्टर और कुछ अन्य पत्रकार ठहरे हुए थे. पर्रिकर ने इस समूह को ‘ विशेष गोवा व्यंजन’ का भोज दिया.

रक्षामंत्री और रिपोर्टर दोनों की एक जैसी पसंद थी. रिपोर्टर और मंत्री अक्सर उन विशेष ब्रांडों पर चर्चा करते थे जिसे वह पसंद करते थे और पेन रखते भी थे.

रक्षामंत्री ने खरीदारी की तारीख और जगह का उल्लेख करते हुए कहा कि ऐसा कभी मत सोचना कि ये पेन किसी के द्वारा गिफ्ट की गई पेन हैं.

आरएसएस, वामपंथ और हास्य

एक बार रिपोर्टर को कमर्शियल एयरलाइन में रक्षामंत्री के साथ गोवा की यात्रा करने का अवसर प्राप्त हुआ. उसको पता ही नहीं था कि मंत्री उसी फ्लाइट में यात्रा कर रहे थे, मैंने उन्हें तभी देखा जब वह अन्य यात्रियों के साथ बस से उतर रहे थे.

यात्रा के दौरान मैं उनके पास गया और पूछा कि क्या मैं मंत्री के बगल में बैठ सकता हूं. पर्रिकर ने तुरंत अपने कर्मचारियों से सीट बदलने को कहा.

अगले घंटो में कई मुद्दे सामने आए जिनमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और तत्कालीन ‘बीफ विवाद’ भी शामिल थे। उनका एक उदार रूप सामने आया.

मैंने मजाक में कहा कि पर्रिकर ‘आरएसएस में वामपंथी” हैं. जिस पर मंत्री ने भारतीय जनता पार्टी के मूल संगठन और वाम दलों के बीच के मतभेदों को समझाया.

पर्रिकर एक ऐसे व्यक्ति थे जो अपनी बुद्धि के लिए जाने जाते थे. उन्हें चुटकुले पसंद थे और इन्हीं चुटकुलों की वजह से कई बार वह मुसीबत में भी फंस जाया करते थे.

गोवा यात्रा और उपलब्धियां

जब वह भारत के रक्षामंत्री थे. तब रिपोर्टर ने उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों को देखा, वे बहुत ही साधारण व्यक्ति थे. वह बिना पलक झपकाए किसी अत्यंत समझदार व्यक्ति में बदल जाते थे.

उन्होंने अकेले ही भारतीय वायु सेना (आईएएफ) को पुनर्जीवित करने और लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस को शामिल करना रक्षामंत्री के रूप में उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक हैं.

‘विवादास्पद’ राफेल सौदा पिछले कुछ महीनों से बातचीत का मुद्दा बना हुआ है, लेकिन पर्रिकर एक जटिल मध्यस्थ थे. रक्षा अनुबंध पर हस्ताक्षर करने में देरी के लिए उन्हें श्रेय दिया दिया जा सकता है या उनकी आलोचना भी की जा सकती है.

पर्रिकर की मध्यस्थता के बारे में फ्रांसीसी अक्सर मजाक करते थे और 50 प्रतिशत ऑफसेट क्लॉज सहित पर्रिकर के मंत्रालय द्वारा कुछ सख्त शर्तों के साथ निश्चित रूप से उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था.

रक्षा मंत्रालय भी मंत्रालय के भीतर नौकरशाही प्रक्रिया के बारे में चिंतित थे और कई फैसलों के लिए व्यक्तिगत जिम्मेदारी संभालने के बाद अक्सर नौकरशाहों पर निगरानी रखते थे.

उनके लिए एक बड़ा झटका यह था कि रक्षा मंत्रालय में वे कुछ सुधार लाना चाहते थे लेकिन ला नहीं पाए इसमें कोई संदेह नहीं है कि उन्होंने स्ट्रेटजिक पार्टनरशिप मॉडल सहित कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लिए बिना ही मंत्रालय छोड़ दिया.

लेकिन तब तक पर्रिकर टिपिकल दिल्ली के राजनेता नहीं थे.

रिपोर्टर के साथ एक बार बातचीत के दौरान पर्रिकर ने कहा कि मीडिया ने गोवा में उनकी सप्ताहांत यात्राओं के लिए गलत तरीके से उनकी आलोचना की थी.

क्या आपने कभी सोचा है कि मेरे दोस्त और परिवार गोवा में हैं. मैं अब सिर्फ एक रक्षा मंत्री हूं. मैं दिल्ली में किसी भी सामाजिक सभा में नहीं जाता हूं क्योंकि हर कोई मुझसे दोस्ती करना चाहता है, वह मुझसे नहीं बल्कि मेरे ओहदे से  दोस्ती करना चाहते हैं.’

इस रिपोर्टर की जिस समय पर्रिकर से मुलाकात हुई उस दौरान यानी 2017 में वह वापस गोवा के मुख्यमंत्री के रूप में वापस जाने के लिए तैयार थे, वह खुशी, राहत और पछतावे के साथ ऐसा कर रहे थे, इसमें कुछ निराशा के संकेत भी थे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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