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Wednesday, 24 April, 2024
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मणिपुर हिंसाः सब कुछ भूल जाने की कोशिश, एक-दूसरे की मदद करते लोग, राख हो चुके घरों के लिए दुआएं

कुकी और मैतेई दोनों मणिपुर में स्थिति के सामान्य होने की उम्मीद कर रहे हैं, क्योंकि वे याद करते कि हिंसा के समय में कैसे दोनों समुदायों ने एक दूसरे की मदद की थी. लेकिन उम्मीद के साथ-साथ दिल में दर्द भी बैठा है.

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गुवाहाटी: पिछले सप्ताह मणिपुर में जातीय संघर्षों में मरने वालों की संख्या 70 को पार कर जाने के बाद कुकी और मैतेई दोनों समुदायों के लोगों में भय और अनिश्चितता की भावना व्याप्त है. इस महीने हुई झड़पों के बाद अविश्वास और गहरा हो गया है, और इस विभाजन को पाटने के लिए केंद्र और राज्य सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर प्रयास किए जाने की संभावना है.

अब तक 46,000 से अधिक लोगों को राहत शिविरों में पहुंचाया गया है, जबकि लगभग 3,000 अन्य लोगों को विशेष फ्लाइट्स से दूसरे राज्यों में पहुंचाया गया है. मणिपुर सरकार के सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह ने रविवार को इम्फाल में मीडिया को बताया कि राज्य भर में कम से कम 385 एफआईआर दर्ज की गई है और 456 चोरी के हथियार बरामद किए गए हैं.

सोमवार को, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के दिल्ली से लौटकर यह घोषणा करने के कुछ समय बाद कि “ऐसी कोई स्थिति नहीं है जो राज्य की अखंडता को प्रभावित करेगी या बदल देगी”, सात बीजेपी विधायक सहित 10 चिन-कुकी-मिज़ो-ज़ोमी-हमार विधायकों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर “मणिपुर राज्य से अलग होने” की मांग की.

मणिपुर सरकार और उसकी पुलिस को कुकी आदिवासियों के नरसंहार के लिए दोषी ठहराते हुए उन्होंने लिखा, “इम्फाल घाटी में कोई आदिवासी नहीं बचा है, पहाड़ियों में कोई मैतेई नहीं बचा है.”

मैतेई, नागा और कुकी-चिन-मिज़ो या कुकी मणिपुर में तीन मुख्य जातीय समूह हैं. मध्य घाटी में रहने वाले मैतेई सामान्य श्रेणी के हैं, जबकि पहाड़ी जिलों में रहने वाले आदिवासी (अनुसूचित जनजाति) दो समूहों – नागा और कुकी से संबंधित हैं.

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जातीय संघर्ष को ‘पूर्व नियोजित’ करार देते हुए विधायकों ने कहा कि कुकी कॉलोनियों और घरों को चिह्नित किया गया था – कुछ साल पहले “कट्टरपंथी मैतेई समूहों” द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण द्वारा सहायता प्राप्त – और इम्फाल शहर में हमला किया गया.

दस सदस्यीय समूह में भाजपा के एक विधायक ने दिप्रिंट को बताया, “अभी तक किसी इस्तीफे की घोषणा नहीं की गई है, लेकिन अगर इसकी जरूरत पड़ती है तो हम तैयार हैं.”

‘बल्कि भूखों मरना भी पसंद करेंगे…’

चुराचंदपुर के ज़ौमुन्नुआम गांव के रहने वाले जोसेफ खुमिंगथांग और उनकी पत्नी होइनेलहिंग अपने बेटे डेविड के जल्द स्वस्थ होने की प्रार्थना कर रहे हैं, जो 12 मई से जिला अस्पताल में भर्ती है.

22 वर्षीय डेविड इंफाल में भीड़ के हमले में चमत्कारिक ढंग से बाल-बाल बचे, जिससे उनका जबड़ा टूट गया और सिर में गंभीर चोटें आईं.

14 मई को मदर्स डे के दिन अस्पताल के डॉक्टरों ने होइनेलहिंग से कहा कि उनका बेटा “ठीक हो जाएगा”. 5 मई को, डेविड का इंफाल के रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (RIMS) में एक आपातकालीन ऑपरेशन हुआ और उसे अस्पताल के न्यूरोलॉजी वार्ड में स्थानांतरित कर दिया गया.

हालांकि, उन्हें 12 मई को छुट्टी दे दी गई थी, और थोड़े समय के लिए चुराचंदपुर में घर लाया गया था, लेकिन उनकी हालत बिगड़ने पर उन्हें जिला अस्पताल ले जाया गया.

जोसेफ और डेविड, तीन अन्य दिहाड़ी मजदूरों के साथ, 3 मई की हिंसा से एक सप्ताह पहले काम के लिए इंफाल गए थे. जोसफ ने कहा कि जब हिंसा घाटी में फैल गई तो एक मैतेई ठेकेदार ने उन्हें इंफाल के एक इलाके में शरण दी.

4 मई को, मजदूरों के आधार कार्ड देखने की मांग को लेकर भीड़ ने ठेकेदार के आवास को घेर लिया. जोसेफ और एक अन्य कुकी ग्रामीण किसी तरह से भागने में सफल रहे, लेकिन डेविड और उनके दो सहकर्मियों को कथित तौर पर घसीट कर बाहर निकाल लिया गया और इतना पीटा गया कि वे बेहोश हो गए.

जोसेफ ने दिप्रिंट से कहा, “हम उससे बात कर सकते हैं, वो अब भी हमें पहचान सकता है. उसने बोलने की कोशिश भी की, लेकिन सुनाई नहीं दे रहा था. उसका जबड़ा पूरी तरह टूट गया है.”

पुलिस उस शाम जोसेफ और उसके सहयोगी को इंफाल के एक राहत शिविर में ले गई थी, जहां वे अगले पांच दिनों तक रहे. बाद में सेना ने उन्हें चुराचांदपुर पहुंचाया. दो अन्य अभी भी “लापता” बताए जा रहे हैं.

डेविड के परिवार ने उसे उस वक्त मरा हुआ मान लिया था, जब उन्होंने उसे और दो अन्य व्यक्तियों को सोशल मीडिया पर एक वीडियों में गंभीर अवस्था में सड़क पर पड़े हुए और सांस के लिए हांफते हुए देखा.

लेकिन कुछ दिनों बाद, डेविड की मां को रिम्स से फोन आया, जिसमें बताया गया कि उनका बेटा जीवित है. “मैं यह जानकर काफी हैरान था कि वह जीवित है. जब मैंने पहली बार उन्हें अस्पताल में देखा, तो मैंने उनके सिर और चेहरे पर घावों को देखा.’


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अपने बेटे और अन्य लोगों को बचाने की कोशिश करने वाले मैतेई ठेकेदार का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “वह एक अच्छा आदमी है जिसने हमें भीड़ से छिपाने में मदद की, लेकिन हम उनके लिए फिर कभी काम नहीं करेंगे.”

“हम बल्कि भूखे रहेंगे,” उसने कहा.

‘भाग्यशाली थे कि जिंदा बचे’

चुराचांदपुर जिले के खुगा तंपक गांव के एक 67 वर्षीय सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी ने कहा कि वह भाग्यशाली थे कि जीवित बचे क्योंकि भीड़ ने उनके घर को आग लगा दी थी, जिससे वे भागने पर मजबूर हो गए थे.

उन्होंने कहा, “लेकिन उन लोगों के बारे में क्या जो अपनी जान गंवा चुके हैं? मैं कुकी लोगों को भी दोष नहीं देता- यह सरकार के स्तर पर चीजों का गलत तरीके से हैंडल करने का नतीजा है.”

“जो कुछ भी हुआ वह मेरी बेतहाशा उम्मीदों से परे था. मैं चुराचंदपुर में पैदा हुआ और पला-बढ़ा हूं, और कुकी समुदाय से मेरे करीबी दोस्त हैं. अगर मुझे लौटने का मौका दिया गया तो मैं निश्चित रूप से चुराचांदपुर लौटूंगा. मुझे नहीं पता कि वह संभावना कब आएगी.

अपने परिवार के साथ, वह अब बिष्णुपुर जिले के मोइरांग शहर के पास एक जगह पर शरण ले रहा है.

‘चीजें बेहतर होने तक’

इस बीच, सेना पहाड़ी जिलों की तराई और घाटी क्षेत्रों में प्रभावित गांवों की रखवाली कर रही है.

बिष्णुपुर जिले के नंबोल उपमंडल के इरेंगबाम गांव के निवासी वरुण ने कहा कि कांगपोकपी जिले की तलहटी में कुकी समुदाय के कई गांव 3 मई की शाम को जला दिए गए थे, जिसके बाद आस-पास के गांवों के कुकी और मैतेई निवासी रात में सुरक्षित इलाकों में भाग गए थे.

उन्होंने कहा कि अब, समुदाय छोटे हथियारों और हाथ से बने हथियारों के साथ अपने क्षेत्रों की रक्षा कर रहे हैं और ग्रामीणों में डर साफ दिखाई पड़ता है.

वरुण ने दिप्रिंट को बताया,“इम्फाल घाटी के परिधीय क्षेत्रों में, मैतेई लोग घर लौटने के लिए थोड़ा अनिच्छुक और आशंकित हैं. ग्रामीणों के साथ सशस्त्र कुकी समूहों के घुलने-मिलने की भी आशंका है.”

उन्होंने कहा, “कुकी रोजाना मेरे गांव में फसल और जलाऊ लकड़ी लेकर आते थे, जिसे वे घर लौटने से पहले बेच देते थे.” अब तक कोई समस्या नहीं थी. हमने एक साथ पढ़ाई की, और सब कुछ शांतिपूर्ण था. जो कुछ हुआ, उसकी वजह से एक विषम परिस्थिति पैदा हो गई है. पिछले कुछ वर्षों से बहुत जटिल एजेंडा चल रहा है. हमें उम्मीद है कि स्थिति सामान्य होगी. बेतरतीब गतिविधियां जारी रहनी चाहिए, और जारी रखनी होंगी.”

कांगपोकपी जिले के लोइवोल खोनौ गांव के हेमिन भी ऐसी ही भावना व्यक्त करते हैं.

उन्होंने कहा कि गांव में 70 से अधिक घरों में आग लगा दी गई थी, साथ ही यह भी कहा कि कुकी और मैतेई परिवारों को अलग करने वाले आखिरी घरों के बीच की दूरी मुश्किल से 5 मीटर है.

निकटवर्ती बिष्णुपुर जिले में लगभग 200 मीटर की दूरी पर वारोइचिंग के मैतेई निवासी सुरक्षा के लिए पास के लीमाराम गांव में भाग गए. करीब 350 लोग अभी भी वहां डेरा डाले हुए हैं.

हेमिन ने कहा,“बचपन से ही मैतेई मेरे दोस्त हैं. वे ही हैं जिन्होंने हमें बताया कि भाग जाना बेहतर है क्योंकि आने वाली भीड़ बहुत बड़ी थी. हम चिरू गांव और पहाड़ियों में भाग गए.”

उन्होंने कहा, “12 गांवों में से 8 गांवों को 3 मई की रात को जला दिया गया था, जिसमें नुनखोजांग और कुकी एगेजैंग गांव शामिल थे.”

इन 12 गांवों की महिलाएं इंफाल पश्चिम जिले में लगभग 4-5 किमी दूर केथेलमनबी में असम राइफल्स कैंप में शरण ले रही हैं. इन गांवों से लगभग 405 कुकी हैं जो अपने गांव लौटने से पहले शांति लौटने का इंतजार कर रहे हैं.

सभी क़ीमती सामान और पैसे जलकर राख होने के बाद, ये परिवार अन्य चुनौतियों के साथ भोजन का प्रबंध करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि बहुत कम लोग अपने दस्तावेजों को सहेज पाते हैं.

हेमिन ने कहा, “पड़ोसी गांवों में बिना किसी सरकारी सहायता के कुकी उप-जनजातियां वर्तमान में मदद कर रही हैं.”

उन्होंने कहा, “सेना ने हर स्थिति में मदद की है. हमें उनसे भरोसा मिल रहा है. हम अपने गांवों में वापस जाने की योजना बना रहे हैं और 37 लोग वापस आ गए हैं. हमें मैतेई गांव जाने की अनुमति नहीं है और उन्हें यहां आने की अनुमति नहीं है- जब तक चीजें बेहतर नहीं हो जातीं.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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