नयी दिल्ली, पांच अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मणिपुर में जातीय हिंसा के पीड़ितों के राहत और पुनर्वास की निगरानी के लिए गठित न्यायमूर्ति गीता मित्तल समिति का कार्यकाल सोमवार को छह महीने के लिए बढ़ा दिया।
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने समिति का कार्यकाल बढ़ा दिया, जब पीठ को सूचित किया गया कि इसका कार्यकाल 15 जुलाई को समाप्त हो गया है।
पीठ ने कहा, “न्यायमूर्ति गीता मित्तल की अध्यक्षता वाली समिति का कार्यकाल छह महीने के लिए बढ़ाया जाता है।”
पिछले साल सात अगस्त को पीठ ने पीड़ितों के राहत और पुनर्वास तथा उन्हें मुआवजा देने की निगरानी के लिए उच्च न्यायालय की तीन पूर्व महिला न्यायाधीशों की एक समिति गठित करने का आदेश दिया था।
इसके अलावा, महाराष्ट्र के पूर्व पुलिस प्रमुख दत्तात्रेय पडसलगीकर को आपराधिक मामलों की जांच की निगरानी करने को कहा था।
समिति को अपनी रिपोर्ट सीधे शीर्ष अदालत को सौंपने के लिए अधिकृत किया गया था, जो जातीय संघर्ष से संबंधित मामलों की निगरानी कर रही है।
जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय की पूर्व मुख्य न्यायाधीश मित्तल की समिति में बंबई उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) शालिनी पी. जोशी और दिल्ली उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश आशा मेनन शामिल हैं।
तीन सदस्यीय समिति का गठन शीर्ष अदालत द्वारा राज्य में महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाये जाने के वीडियो को ‘बेहद परेशान करने वाला’ करार दिए जाने के कुछ दिनों बाद किया गया था।
राज्य में तीन मई, 2023 को जातीय हिंसा पहली बार भड़कने के बाद से 200 से अधिक लोग मारे गए हैं, कई घायल हुए हैं और हजारों लोग विस्थापित हुए हैं। हिंसा तब भड़की जब बहुसंख्यक मेइती समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ का आयोजन किया गया था।
भाषा
अमित प्रशांत
प्रशांत
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.