नई दिल्लीः मणिपुर में हुई हालिया हिंसा के मामले में अब तक 60 लोगों की मौत हो गई और 231 लोग घायल हुए हैं. राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने सोमवार को यह जानकारी दी.
राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने कहा, ‘‘3 मई की दुर्भाग्यपूर्ण घटना में लगभग 60 निर्दोष लोगों की जान चली गई, 231 लोगों को चोटें आईं और लगभग 1700 घर जल गए. ’’
गौरतलब है कि मणिपुर में बहुसंख्यक मेइती समुदाय द्वारा उसे अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में ‘ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर’ (एटीएसयूएम) की ओर से बुधवार को आयोजित ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के दौरान चुराचांदपुर जिले के तोरबंग क्षेत्र में हिंसा भड़क गई थी, जो रातों-रात पूरे राज्य में फैल गई.
उल्लेखनीय है कि जनजातीय लोग 27 मार्च को मणिपुर हाईकोर्ट के आदेश के बाद मेइती समुदाय को आरक्षण दिए जाने का विरोध कर रहे हैं. हाई कोर्ट ने समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के लिए राज्य सरकार को चार हफ्तों के अंदर केंद्र को एक सिफारिश भेजने का निर्देश दिया था.
सीएम ने कहा कि प्रभावित लोगों को उनके घर पहुंचाया जा रहा है. ‘‘मैं लोगों से राज्य में शांति लाने की अपील करता हूं. फंसे हुए लोगों को उनके संबंधित स्थानों तक पहुंचाने का काम शुरू हो गया है.’’
कड़ी मशक्कत के बाद सरकार हालातों पर काबू पाने की कोशिश कर रही है. हिंसा प्रभावित क्षेत्र में सोमवार को सुबह कुछ घंटों के लिए कर्फ्यू में ढील देने के साथ ही जनजीवन धीरे धीरे सामान्य स्थिति में लौटने लगा है.
अधिकारियों ने बताया कि इंफाल में लोग ज़रूरी सामान खरीदने के लिए अपने घरों से निकले थे.
अधिकारियों ने बताया कि कर्फ्यू में ढील के दौरान सेना के ड्रोन और हेलीकॉप्टरों के जरिए स्थिति पर नज़र रखी गई. पिछले कुछ दिनों से जातीय हिंसा से प्रभावित विभिन्न क्षेत्रों में सेना और असम राइफल्स के जवानों ने फ्लैग मार्च किया.
सीएम ने कहा, ‘‘मणिपुर में विभिन्न स्थानों पर फंसे सभी व्यक्तियों को सुरक्षित स्थानों और आश्रय शिविरों में सर्वोत्तम संभव देखभाल और सहायता प्रदान की जा रही है.’’
उन्होंने कहा, ‘‘अब तक 20,000 फंसे हुए लोगों को निकाला जा चुका है. करीब 10,000 लोग फंसे हुए हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह घटना के दिन से लेकर आज तक स्थिति पर नज़र रखे हुए हैं. उन्होंने केंद्रीय बलों की कई कंपनियां भेजी हैं.’’
सीएम ने कहा, ‘‘हिंसा भड़काने वाले व्यक्तियों/समूहों और अपनी जिम्मेदारियों को पूरा नहीं करने वाले सरकारी सेवकों पर जिम्मेदारी तय करने के लिए एक उच्च स्तरीय जांच की जाएगी. ’’
उन्होंने लोगों से अफवाहों पर भरोसा नहीं करने की भी अपील की. ‘‘मैं सभी से अपील करता हूं कि वे निराधार अफवाहें न फैलाएं और न ही उन पर विश्वास करें. अब तक 1593 छात्रों सहित 35,655 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है.’’
यह भी पढ़ेंः ‘मेरा राज्य जल रहा है’, मणिपुर में बढ़ती हिंसा के बीच बॉक्सर मैरी कॉम की PM मोदी और केंद्र से गुहार
मणिपुर की कुल आबादी में मेइती समुदाय की 53 प्रतिशत हिस्सेदारी होने का अनुमान है. इस समुदाय के लोग मुख्यत: इंफाल घाटी में रहते हैं. वहीं, नगा और कुकी सहित अन्य आदिवासी समुदायों की आबादी 40 प्रतिशत के करीब है तथा वे मुख्यत: इंफाल घाटी के आसपास स्थित पहाड़ी जिलों में रहते हैं.
इससे पहले दिन में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हिंसा प्रभावित मणिपुर की मौजूदा स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए सोमवार को आरोप लगाया था कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार पूर्वोत्तर राज्य में मरने वालों का स्पष्ट आंकड़ा नहीं दे रही है, जहां देखते ही गोली मारने का आदेश लागू है.
बनर्जी ने स्थिति की समीक्षा के लिए मणिपुर में एक भी प्रतिनिधि नहीं भेजने के लिए भी केंद्र की भाजपा सरकार पर निशाना साधा था.
उन्होंने कहा, ‘‘मैं मणिपुर की स्थिति से काफी तनाव में हूं. हमें देखते ही गोली मारने (के आदेश) से हुई मौतों का स्पष्ट पता नहीं चल रहा है क्योंकि राज्य सरकार कोई सूचना नहीं दे रही है.’’
बनर्जी ने दावा किया कि मणिपुर हिंसा मानव निर्मित संकट है. इस बीच विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री प्रदेश के लोगों को वापिस बुलाने के लिए जद्दोजहद में जुटे हुए हैं.
अरविंद केजरीवाल ने कहा, ‘‘मणिपुर में चार छात्र दिल्ली से हैं. वे सुरक्षित हैं. उन्हें कल वापस लाया जाएगा क्योंकि आज कोई उड़ान उपलब्ध नहीं है. मैं मणिपुर के मुख्यमंत्री से भी बात करूंगा.’’
बाद में, मुख्यमंत्री ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘मणिपुर के माननीय मुख्यमंत्री से बात की. उन्होंने बहुत ही सौहार्दपूर्ण तरीके से बात की और उन्होंने हमारे छात्रों को हरसंभव मदद का आश्वासन दिया. आपका धन्यवाद सर.’’
10 दिन में दें रिपोर्ट राज्य सरकार
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र और मणिपुर सरकार को पूर्वोत्तर के इस राज्य में जातीय हिंसा से प्रभावित हुए लोगों की सुरक्षा बढ़ाने, उन्हें राहत सहायता मुहैया कराने तथा उनके पुनर्वास के लिए आवश्यक कदम उठाने को कहा है.
अदालत का यह निर्देश इन दलीलों पर संज्ञान लेने के बाद आया कि बीते दो दिनों में वहां कोई अप्रिय घटना नहीं हुई है.
प्रधान न्यायाधीश डी. वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने हिंसा के बाद की स्थिति को मानवीय समस्या करार देते हुए कहा कि राहत शिविरों में उपयुक्त इंतजाम किए जाएं और वहां शरण लेने वाले लोगों को भोजन, राशन तथा चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं.
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हम जानमाल को हुए नुकसान को लेकर बहुत चिंतित हैं.’’
अदालत ने निर्देश दिया कि विस्थापित लोगों के पुनर्वास के लिए सभी ज़रूरी कदम उठाए जाएं और उपासना स्थलों की सुरक्षा के लिए हरसंभव प्रयास किए जाएं. केंद्र और राज्य की ओर से न्यायालय में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हिंसा से निपटने के लिए उठाये गये कदमों से पीठ को अवगत कराया.
उन्होंने बताया कि सेना और असम राइफल्स की टुकड़ियों के अलावा केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) की 52 कंपनियां हिंसा प्रभावित इलाकों में तैनात की गई हैं.
हालांकि, शीर्ष अदालत ने मेहता की दलीलों पर संज्ञान लेते हुए मणिपुर हिंसा से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई 17 मई के लिए निर्धारित कर दी और केंद्र तथा राज्य को उस वक्त तक अद्यतन स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया.
सुनवाई के दौरान पीठ ने सवाल किया कि कितने राहत शिविर स्थापित किए गए हैं और वहां कितने लोगों को रखा गया है. पीठ ने कहा, ‘‘हम जानना चाहते हैं कि इन राहत शिविरों में किस तरह के इंतजाम किए गए हैं क्योंकि ये मानवीय मुद्दे हैं.’’
कोर्ट मणिपुर की स्थिति संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. इनमें, सत्तारूढ़ भाजपा के विधायक डिंगंगलुंग गंगमेई द्वारा दायर याचिका भी शामिल है, जिसमें मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिये जाने के मुद्दे पर हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई है.
यह भी पढ़ेंः पश्चिम बंगाल सरकार ने ‘द केरला स्टोरी’ फिल्म पर लगाया प्रतिबंध तो विपुल शाह बोले-लीगल एक्शन लेंगे