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Monday, 25 November, 2024
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मणिपुर सरकार म्यांमार से आए नागरिकों के लिए ‘मानवीय आधार’ पर 2 शेल्टर होम बनाएगी

मणिपुर के मंत्री लेतपाओ हाओकिप का कहना है कि सीमा से सटे पड़ोसी इलाकों में हिंसा की खबरों के बाद युद्धग्रस्त म्यांमार से आने वाले नागरिकों को शरण देने का फैसला किया गया है.

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गुवाहाटी: मणिपुर सरकार युद्धग्रस्त म्यांमार से आने वाले शरणार्थियों के लिए दो अस्थायी आश्रयों की स्थापना कर रही है. सरकार इसमें से एक की स्थापना टेंग्नौपाल जिले के मोरेह उप-मंडल के तहत होलेनफाई गांव में और दूसरा चंदेल जिले के गमफाजोल गांव में करेगी.

मणिपुर के आदिवासी मामलों और पहाड़ी क्षेत्रों के मंत्री लेतपाओ हाओकिप के अनुसार, यह फैसला ‘मानवीय विचारों (एसआईसी)’ को देखते हुए म्यांमार से आने वाले शरणार्थियों के लिए भाजपा की अगुवाई वाली राज्य सरकार को केंद्र की ‘हरी झंडी’ मिलने के बाद लिया गया है.

दिप्रिंट से बात करते हुए, हाओकिप, जो मामले का समाधान करने के लिए बनाई गई एक कैबिनेट उप-समिति के प्रमुख भी हैं, ने कहा कि यह निर्णय ‘मानवीय दृष्टिकोण देखते हुए यह फैसाल ‘राज्य सरकार के नीतिगत मामले’ के रूप में आया है.

उन्होंने कहा, ‘यह दुनिया भर में होता है. क्रोएशिया से करोड़ों लोग रोमानिया गए हैं. मानवीय आधार पर हमने फिलहाल शरणार्थियों को शरण देने पर विचार किया है. म्यांमार में युद्ध समाप्त होने के बाद उन्हें उनके देश वापस भेज दिया जाएगा. हमने केंद्र सरकार से अनुमति मांगी थी जिसमें हमें मौखिक रूप से हरी झंडी मिल गई है.’

मार्च 2021 में, गृह मंत्रालय (एमएचए) ने बताया था कि भारत शरणार्थियों की स्थिति और इसके 1967 के प्रोटोकॉल से संबंधित 1951 के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के समझौता पर हस्ताक्षर नहीं किया था. इसमें कहा गया था कि राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन के पास किसी विदेशी को ‘शरणार्थी’ का दर्जा देने का कोई अधिकार नहीं है.

मंत्री ने कहा, ‘इस वजह से हम फैसले लेने को लेकर आशंकित थे.’

हाओकिप ने दिप्रिंट को बताया कि 2021 में म्यांमार में तख्तापलट के बाद से लगभग 4,000-5,000 शरणार्थी वहां से आए. सागैंग क्षेत्र के तामू कस्बे में पिछले महीने हवाई हमले के बाद से आंदोलन तेज हो गया है. मंत्री ने कहा कि उनमें से लगभग 1,600 चंदेल में रह रहे हैं, जबकि लगभग 3,000 वर्तमान में टेंग्नौपाल क्षेत्र में हैं.

राज्य सरकार के मुताबिक, पिछले साल की शुरुआत से लेकर फरवरी 2023 तक 210 ‘अवैध प्रवासियों’ ने मणिपुर में प्रवेश किया है. 24 फरवरी को विधानसभा में सुगनू के विधायक कंगुजम रंजीत के एक सवाल का जवाब देते हुए, मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने कहा था कि मणिपुर में 393 ने ‘अवैध प्रवासियों’ का दस्तावेजीकरण किया गया, जिनमें से एक को म्यांमार वापस भेज दिया गया है, 107 न्यायिक हिरासत में हैं, 105 हिरासत केंद्रों में हैं जबकि 180 को जमानत पर रिहा कर दिया गया है.

हाओकिप ने कहा कि शरणार्थियों को अस्थायी आश्रय देने का फैसला सीमा नजदीकी इलाकों में हिंसा की खबरों के बाद आया है.

हिंसा में बढ़ोतरी

23 मार्च को म्यांमार की सेना ने मणिपुर से लगभग 4 किमी दूर तामू के कौंटोंग गांव में भारत-म्यांमार सीमा के बॉर्डर पिलर संख्या 81 के पास पीपुल्स डिफेंस फोर्स (पीडीएफ) के शिविर पर भारी बमबारी की.

हमलों में तीन पीडीएफ लड़ाके मारे गए. म्यांमार के नागरिक सूत्रों ने फोन पर दिप्रिंट को बताया कि 26 मार्च की रात को कथित तौर पर म्यांमार की सेना द्वारा लगभग पूरे गांव को जला दिया गया था.

इन झड़पों के बाद मणिपुर सरकार ने अंतरराष्ट्रीय सीमा पर अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात किए.

मणिपुर में शरणार्थी ज्यादातर सागैंग क्षेत्र, चिन राज्य और म्यांमार के मैगवे क्षेत्र से हैं. वे काफी हद तक कुकी-चिन-ज़ोमी-मिज़ो जनजाति के एक ही जातीय समूह से संबंधित हैं, जो एक-दूसरे से जातीय और पारिवारिक संबंधों से बंधे हैं.

फरवरी 2021 के तख्तापलट के बाद से जुंटा (सैन्य) के अत्याचारों से भागे परिवारों को बसाने में स्थानीय समुदाय के सदस्य भी मदद कर रहे हैं. हाओकिप ने दिप्रिंट को बताया कि एक स्वास्थ्य शिविर लगाया जाएगा और शरणार्थियों को पहचान पत्र भी दिए जाएंगे.

उन्होंने कहा, ‘ग्राम प्रधानों ने आश्रय स्थल के निर्माण के लिए लकड़ी की पेशकश की है. हर कोई हमारी मदद कर रहा है. हम मणिपुर के लोगों, विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों के आदिवासियों का धन्यवाद करते हैं.’

हाओकिप ने कहा कि राज्य सरकार ने पांच जिलों- फिरजावल, चुराचंदपुर, कामजोंग, टेंग्नौपाल और चंदेल- के लिए 20 लाख रुपये का शरणार्थी कोष जारी किया है, जहां म्यांमार के नागरिकों ने आवास लिया है.

हालांकि इस बीच राज्य अस्थायी आश्रयों की स्थापना कर रहा है क्योंकि कई शरणार्थी शिविरों में नहीं रहना चाहते हैं और उन्होंने पहाड़ियों में किराए का आवास लिया है.

मोरेह के एक बर्मी अधिकार कार्यकर्ता ने अपना नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘उनमें से अधिकांश (शरणार्थी) स्कूलों के पास या जहां वह काम करते हैं वहां किराए के आवास में रह रहे हैं. कई लोग विभिन्न कारणों से शिविरों में नहीं रहना चाहते हैं.’ 

उन्होंने कहा, ‘ऐसा लगता है कि वे (भारतीय अधिकारी) स्थिति के बारे में अधिक समझदार हो गए हैं, लेकिन शरणार्थियों की वास्तविक संख्या उनके अनुमान से कहीं अधिक होगी.’


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नीति में परिवर्तन

मणिपुर सरकार ने 27 जनवरी को मोरेह सब-डिवीजन से शरणार्थियों को गिरफ्तार करना शुरू किया था. 26 फरवरी को इंफाल पूर्वी जिले में सजीवा जेल के पास फॉरेनर डिटेंशन सेंटर में एक शरणार्थी की मौत ने भी म्यांमार के नागरिकों के लिए शरणार्थी अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए कई अधिकार समूहों ने अपील की.

म्यांमार शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए सरकार ने पिछले महीने हाओकिप की अध्यक्षता में एक कैबिनेट उप-समिति का गठन किया था.

उप-समिति में जल संसाधन मंत्री अवांगबो न्यूमई और कानून मंत्री थौनाओजम बसंत कुमार भी हैं. टीम ने पहले निरीक्षण के लिए 26 मार्च को होलेनफाई गांव का दौरा किया और वहां शरणार्थियों के साथ बातचीत की.

29 मार्च को टीम ने अस्थायी आश्रय के लिए दूसरी जगह चंदेल के गमफज़ोल गांव का दौरा किया.

उन्होंने पिछले शनिवार को चुराचांदपुर जिले के सिंगघाट में अस्थायी केंद्र स्थापित करने के लिए निरीक्षण भी किया था.

शरणार्थी संकट के दो साल

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 25 फरवरी 2021 को मिजोरम, नागालैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के मुख्य सचिवों को म्यांमार से अवैध घुसपैठ को रोकने के लिए लिखा था. सरकार द्वारा असम राइफल्स सहित भारत-म्यांमार सीमा पर सीमा सुरक्षा बलों को ‘सतर्क रहने और भारतीय क्षेत्र में संभावित घुसपैठ को रोकने के लिए उचित कार्रवाई करने’ की सलाह भी जारी की गई थी.

उसी वर्ष 26 मार्च को तत्कालीन विशेष सचिव (गृह) एम. ज्ञान प्रकाश ने चंदेल, टेंग्नौपाल, कामजोंग और उखरुल के उपायुक्तों को पत्र लिखकर निर्देश दिया कि वे भोजन और आश्रय के लिए कोई शिविर न खोलें और शरण चाहने वालों को दूर रखें. हालांकि, मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, पत्र में यह भी कहा गया है कि गंभीर चोटों के मामले में, शरणार्थियों को ‘मानवीय विचारों को देखते हुए चिकित्सा’ प्रदान किया जाना चाहिए.

स्थानीय मीडिया ने बताया कि अधिसूचना के बाद, 27 मार्च, 2021 को टेंग्नौपाल जिले में पुलिस और असम राइफल्स के सैनिकों द्वारा कड़ी चेकिंग की गई. सुरक्षा बलों ने कथित तौर पर सीमा पार करने की कोशिश कर रहे म्यांमार के कुछ नागरिकों को वापस भेज दिया था.

29 मार्च, 2021 को केंद्र सरकार ने अपने पहले के पत्र- ‘गलतफहमी से बचने के लिए’ को वापस लेने का फैसला किया. विशेष सचिव (गृह) ने कहा कि ‘पत्र की सामग्री को गलत तरीके से समझा गया है और इसकी अलग तरह से व्याख्या की गई है’ और मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, राज्य सरकार सभी मानवीय कदम उठा रही है, जिसमें घायल म्यांमार के नागरिकों का इलाज भी शामिल है.

उस वर्ष 30 मार्च को, द टेलीग्राफ, लंदन के ऑनलाइन संस्करण ने रिपोर्ट दी थी कि नियम में परिवर्तन ‘लीक मेमो पर अंतर्राष्ट्रीय आक्रोश’ का परिणाम था. यह राज्य सरकार के 26 मार्च के एक पत्र का जिक्र कर रहा था.

लगभग उसी समय, म्यांमार के अधिकांश चिन शरणार्थियों को तियाउ नदी के दोनों किनारों पर उनके समुदायों के बीच मजबूत जातीय और पारिवारिक संबंधों के कारण मिजोरम में आश्रय मिला था, जो भारत और म्यांमार के बीच की सीमा को चिह्नित करता है. स्थानीय लोग स्वेच्छा से म्यांमार से आए नागरिकों की मदद करते रहे हैं.

भारत और म्यांमार में फ्री मूवमेंट रिजीम (FMR) है, जो सीमा पर रहने वाले लोगों को बिना वीजा के एक-दूसरे के क्षेत्र में 16 किमी की यात्रा करने की अनुमति देता है. 1,643 किलोमीटर लंबी भारत-म्यांमार सीमा तस्करों और विद्रोहियों के लिए भी एक व्यवहार्य विकल्प बनी हुई है.

म्यांमार और भारत की सीमा पर अधूरी बाड़ और कृत्रिम सीमा रेखा ने दोनों देशों के लोगों के लिए दोनों तरफ से पार करना आसान बना दिया है. निर्बाध आवाजाही ने सीमा पार से होने वाली तस्करी को भी बढ़ावा दिया है जिसमें ज्यादातर मणिपुर के टेंग्नौपाल जिले और मिजोरम के चम्फाई जिले में होते हैं.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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