नई दिल्ली: घरों में सप्लाई होने वाले पेयजल की गुणवत्ता की निगरानी व्यवस्था की खामियां दुरुस्त करने के उद्देश्य से केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने शनिवार को व्यापक दिशानिर्देश जारी किए जिसके तहत अगले साल तक राज्यों, जिलों और ब्लॉक स्तर पर सरकारी मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं की स्थापना की जानी है.
सभी लैब को नेशनल एक्रिडिटेशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन लैबोरेट्रीज (एनएबीएल) की तरफ से मान्यता लेनी होगी, और आम लोगों को भी यहां आकर ये पता लगाने की अनुमति होगी कि क्या वे जो पानी इस्तेमाल कर रहे हैं वो निर्धारित गुणवत्ता का है या नहीं.
मौजूदा समय में भारत में एनएबीएल मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं की खासी कमी है. देश में पेयजल की गुणवत्ता का पता लगाने के लिए 2,033 लैब हैं, जिनमें से केवल 66 को एनएबीएल की मान्यता प्राप्त है.
केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की तरफ से जारी पेयजल गुणवत्ता, परीक्षण, निरीक्षण और निगरानी संबंधी ढांचे के तहत सभी लैब को समान परीक्षण मानकों का पालन करना है. अभी देश में पानी की गुणवत्ता जांचने संबंधी मानक न केवल अपर्याप्त हैं, बल्कि उनके कोई निर्धारित मानक भी नहीं हैं.
शेखावत ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम सरकार की तरफ से मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं में पेयजल की गुणवत्ता जांचने और उस पर नजर रखने के लिए प्रोटोकॉल लेकर आए हैं. यह उन उपभोक्ताओं के लिए मददगार होगा जो अपने घर में आने वाले पानी की गुणवत्ता पता लगाना चाहते हैं क्योंकि उन्हें पता होगा कि पानी की जांच कराने के लिए कहां जाना है.’
दिशानिर्देशों में उपभोक्ताओं की तरफ से दूषित पानी का पता लगाने के लिए लैब में कराए जाने वाले विभिन्न परीक्षणों की अधिकमत दर सीमित कर दी गई है. पानी में आर्सेनिक, कोलीफॉर्म बैक्टीरिया आदि की मौजूदगी का पता लगाने के लिए कराए जाने वाले परीक्षण की अधिकतम कीमत 100 रुपये से ज्यादा नहीं हो सकती है. शेखावत ने कहा, ‘लेकिन टेस्ट पर क्या शुल्क लगेगा यह राज्य की तरफ से तय किया जाना है.’
यह सारा फ्रेमवर्क सरकार की महत्वाकांक्षी नल से जल योजना का हिस्सा है, जिसके तहत 2024 तक हर ग्रामीण परिवार को पेयजल कनेक्शन उपलब्ध कराया जाना है.
शेखावत ने जल गुणवत्ता सूचना प्रबंधन प्रणाली (डब्ल्यूक्यूआईएमएस) पर एक ऑनलाइन पोर्टल भी शुरू किया, जो केंद्रीकृत डाटाबेस है जिसमें राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों की सभी लैब पंजीकृत होंगी और उसकी निगरानी की जाएगी.
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के साथ मिलकर राष्ट्रीय जल जीवन मिशन की तरफ से विकसित डब्ल्यूक्यूआईएमएस में पानी के नमूने के परीक्षण संबंधी परिणामों का एक ऑटोमेटेड डाटा फ्लो होगा, जो पीने के पानी की सुरक्षित आपूर्ति को सुनिश्चित करने में मददगार हो सकता है.
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जिला लैब में हर महीने 250 नमूनों के टेस्ट की क्षमता होनी चाहिए
दिशानिर्देशों में कहा गया है कि लैब का नेतृत्व एक वरिष्ठ स्तर के अनुभवी चीफ केमिस्ट या चीफ वाटर एनालिस्ट या चीफ माइक्रोबॉयोलॉजिस्ट द्वारा किया जाना चाहिए.
जिला स्तर की इन सभी लैब पर भौगोलिक दृष्टि से हर क्षेत्र में समान स्तर पर और रैंडम आधार पर कम से कम पांच फीसदी पेयजल नमूनों का लैब परीक्षण करने की जिम्मेदारी होगी.
दिशानिर्देश कहता है कि यदि किसी राज्य में जिलों की संख्या 50 से अधिक है, तो राज्य प्रयोगशालाओं के लिए नमूने या स्रोतों का परीक्षण तीन प्रतिशत तक सीमित किया जा सकता है, जबकि शेष दो प्रतिशत को अन्य क्षेत्रीय या जिला स्तरीय प्रयोगशालाओं के जिम्मे किया जा सकता है.
दिशानिर्देशों के मुताबिक, ‘बड़े राज्यों के मामले में राज्य प्रयोगशालाओं के स्तर वाली दो या तीन (जरूरत के आधार पर) क्षेत्रीय प्रयोगशालाएं स्थापित करने की आवश्यकता होगी ताकि राज्य स्तरीय प्रयोगशालाओं पर बहुत ज्यादा बोझ न बढ़े.’
क्षेत्रीय प्रयोगशालाओं के प्रभारी राज्य स्तरीय प्रयोगशालाओं के चीफ केमिस्ट को रिपोर्ट करेंगे.
गाइडलाइन में कहा गया है कि जिलों में एक लैब होनी चाहिए जो भौगोलिक रूप से समान स्तर पर काम करने के साथ प्रति माह लगभग 250 जल स्रोतों या नमूनों का परीक्षण कर सकती हो.
ब्लॉक स्तर पर भी सभी स्रोतों के पानी की गुणवत्ता के मापदंडों का परीक्षण करने के लिए हर ब्लॉक में कम से कम एक लैब होनी चाहिए.
नए मानकों के मुताबिक, सैंपल लोड के आधार पर बड़े ब्लॉकों के मामले में संबंधित ब्लॉक में मौजूदा संस्थानों के साथ मिलकर और अधिक प्रयोगशालाओं को नेटवर्क में जोड़ा जा सकता है.
ग्राम पंचायत या ग्राम स्तर पर गांव की जल और स्वच्छता समितियां, जिन्हें आम तौर पर जल समिति कहा जाता है, को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके अधिकार क्षेत्र में आने वाले निजी समेत सभी जल स्रोतों का फील्ड टेस्टिंग किट के जरिये परीक्षण कराया जा सके.
इसके अलावा, निर्धारित स्थानिक मानदंडों, स्थानीय समुदायों के संगठन वाले क्षेत्रों और दुर्गम इलाकों आदि में टेस्ट के लिए सचल जल गुणवत्ता परीक्षण प्रयोगशालाओं का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
दिशानिर्देश में कहा गया है कि रासायनिक मापदंडों के लिहाज से टेस्ट में लगने वाला 24 घंटे से अधिक नहीं होना चाहिए, जबकि जैविक मापदंडों पर टेस्ट का टर्नअराउंड टाइम 48 घंटे से अधिक नहीं होना चाहिए.
सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करना होगा कि पेयजल की गुणवत्ता जांच के लिए जिला स्तर की हर एक लैब में जल विश्लेषक या केमिस्ट का कम से कम एक नियमित पद अवश्य हो.
राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को आवंटित 3.6 लाख करोड़ के कुल फंड का दो प्रतिशत तक हिस्सा टेस्ट के साथ-साथ जल गुणवत्ता की जांच करने वाली प्रयोगशालाओं को मजबूत करने के लिए निर्धारित किया गया है. वित्त वर्ष 2021-2022 में इस उद्देश्य के लिए 1000 करोड़ रुपये रखे गए हैं.
करीब 20 राज्यों में पेयजल स्रोत दूषित
केंद्रीय भूजल बोर्ड की तरफ से 2018 में किए गए एक आकलन के मुताबिक, देश के सभी ब्लॉकों में से 52 प्रतिशत में कम से कम एक दूषित भू-रसायन जैसे आर्सेनिक, क्लोराइड, फ्लोराइड, आयरन या नाइट्रेट आदि पाया जाता है.
राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की तरफ से पेयजल एवं स्वच्छता एकीकृत प्रबंधन सूचना प्रणाली विभाग को उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक मौजूदा समय में देश में करीब 49,232 बस्तियों के भूजल स्रोत में पानी की गुणवत्ता की समस्या है.
रिपोर्ट के मुताबिक, ‘भारत के लगभग 20 राज्यों में पेयजल के स्रोत आर्सेनिक, फ्लोराइड, नाइट्रेट, लोहा, लवणता या भारी धातुओं आदि के कारण दूषित हैं.’
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की तरफ से प्राथमिक आधार पर पांच राज्यों के 61 ऐसे जिलों की पहचान की गई है जो इन विषाक्त तत्वों के अलावा जापानी इंसेफेलाइटिस और एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम से प्रभावित हैं.
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