नयी दिल्ली, 18 अप्रैल (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने कहा है कि ऐसे समाज में रहना ‘बहुत डरावना’ है, जहां बच्चे असुरक्षित हैं और ‘गिद्ध’ जैसे लोगों द्वारा उनका ‘शिकार’ किया जाता है। इसके साथ ही अदालत ने एक व्यक्ति को 16-वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार कर उसे गर्भवती करने के लिए सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनाई है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश बबीता पुनिया पॉक्सो अधिनियम की धारा-छह (गंभीर यौन उत्पीड़न) और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के बलात्कार प्रावधानों के तहत दोषी ठहराए गए 45-वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ सजा पर सुनवाई कर रही थी।
अदालत ने कहा, ‘‘यह बहुत डरावना है कि हम ऐसे समाज में रहते हैं, जहां बच्चे सुरक्षित नहीं हैं और ऐसे (दोषी जैसे) लोग अपनी हवस मिटाने के लिए उन पर गिद्धों की तरह नज़र रखते हैं।’’
अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि व्यक्ति ने जनवरी 2025 तक एक साल से अधिक समय तक लड़की के साथ बार-बार बलात्कार किया और उसने फरवरी में बच्चे को जन्म दिया।
अदालत ने 16 अप्रैल के अपने आदेश में कहा, ‘‘दोषी ने अपनी हवस मिटाने के लिए एक मासूम और कमजोर बच्ची का शोषण किया। उसने पीड़िता को बार-बार अपनी हवस का शिकार बनाया और उसे गर्भवती कर दिया, जिससे उसे कम उम्र में प्रसव पीड़ा से गुजरना पड़ा।’’
अदालत ने पाया कि बच्ची भी अपराध की शिकार थी और इसने बार-बार बलात्कार, पीड़िता और आरोपी के बीच उम्र के अंतर के अलावा इस तथ्य पर भी विचार किया कि आरोपी ने उसे उपहार, भोजन और मोटरसाइकिल की सवारी का लालच दिया था।
दोषी को सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए, अदालत ने बाहरी चोट नहीं होने के आधार पर नरमी बरते जाने संबंधी दोषी की याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि उसने ‘‘पीड़िता को जानबूझकर अपने साथ अपने घर ले गया था ताकि वह उस पर यौन हमला कर सके।’’
फैसले में कहा गया, ‘‘उसने काफी समय तक बलात्कार किया, इस दौरान उसे अपने कृत्यों पर पुनर्विचार करने और अपनी चेतना में आने का पर्याप्त अवसर था। बलात्कार अपने आप में एक हिंसक अपराध है, जो न केवल शरीर पर, बल्कि पीड़िता के मन और आत्मा पर भी निशान छोड़ता है और केवल यह तथ्य कि कोई अतिरिक्त शारीरिक चोट नहीं है, इस अपराध को कम करने वाला कारक नहीं बनाता है।’’
आदेश में कहा गया कि दोषी का अशिक्षित होना भी कम करने वाला कारक नहीं है।
अदालत ने कहा, ‘‘बच्चों के साथ बलात्कार न केवल कानूनी रूप से दंडनीय है, बल्कि नैतिक रूप से घृणित भी है। सिर्फ़ इसलिए कि दोषी स्कूल नहीं गया है, उसने जो जघन्य अपराध किया है, उसे उचित नहीं ठहराया जा सकता। इसके अलावा, रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे पता चले कि उसकी निरक्षरता ने उसे अपराध करने के लिए प्रेरित किया।’’
पीड़िता को 19.5 लाख रुपये का मुआवजा देते हुए अदालत ने कहा कि हालांकि उसकी पीड़ा की भरपाई मौद्रिक रूप से नहीं की जा सकती, लेकिन वित्तीय सहायता से वह खुद को शिक्षित कर सकेगी और कुछ हद तक आत्मनिर्भर बन सकेगी।
इस मामले में प्राथमिकी मार्च में दर्ज की गई थी, लेकिन दोषी को 15 अप्रैल को दोषी ठहराया गया और अगले दिन फास्ट-ट्रैक अदालत ने उसे सजा सुनाई।
भाषा रंजन सुरेश
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