नयी दिल्ली, 17 फरवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि दुर्भावनापूर्ण झूठ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं हो सकता है और इसके साथ ही अदालत ने एक कोचिंग संस्थान के प्रतिस्पर्धी को अपने यूट्यूब वीडियो के कुछ हिस्सों को हटाने का निर्देश दिया जिसमें प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ गलत आरोप लगाया गया था।
न्यायमूर्ति आशा मेनन ने कहा कि अतिशयोक्तिपूर्ण और प्रशंसनीय अभिव्यक्ति के लिए कुछ छूट हो सकती है लेकिन प्रतिद्वंद्वी को बदनाम करने का किसी को लाइसेंस नहीं दिया जा सकता है। अदालत फिटजी कोचिंग द्वारा प्रतिवादी विद्या मंदिर क्लासेस और अन्य के खिलाफ दायर मुकदमे की सुनवाई कर रही थी।
अदालत ने कहा कि किसी अन्य के उत्पादों को कमतर बताने या उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने से बचने के लिए सावधानी बरती जानी चाहिए। अदालत ने 16 फरवरी को पारित अपने आदेश में कहा, ‘‘ अपने उत्पादों का प्रचार करने के दौरान, दूसरे के उत्पादों को कमतर बताने या किसी प्रतिद्वंद्वी द्वारा कायम सद्भावना और प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने से बचने के लिए सावधानी बरती जानी चाहिए। दुर्भावनापूर्ण झूठ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं बन सकता है।”
वादी ने अपनी याचिका में अनुरोध किया कि प्रतिवादियों को उसके खिलाफ झूठे, मानहानिकारक यूट्यूब वीडियो को तुरंत हटाने का निर्देश दिया जाए।
न्यायमूर्ति मेनन ने कहा कि वर्णित वीडियो में, प्रतिवादी ने वादी के खिलाफ ‘बहुत आपत्तिजनक शब्दों’ का इस्तेमाल किया है जो अनुचित है और उन्हें बने रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
भाषा अविनाश देवेंद्र
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