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Sunday, 3 November, 2024
होमदेशबड़ी संख्या में ड्रॉपआउट, 50 महीनों से सैलरी नहीं: UP के मदरसों में क्यों छाया बुलडोजर चलने का डर

बड़ी संख्या में ड्रॉपआउट, 50 महीनों से सैलरी नहीं: UP के मदरसों में क्यों छाया बुलडोजर चलने का डर

सरकार के साथ रजिस्ट्रर्ड 'आधुनिक मदरसों' में लगभग पांच हजार से ज्यादा 'आधुनिक टीचर्स को लगभग पिछले चार साल से सैलरी नहीं मिली है, जो इन मदरसों में इस्लाम से जुड़ी शिक्षा के साथ-साथ साइंस और मैथ्स पढ़ाते हैं.

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मेहताब आलम, उत्तर प्रदेश के हापुड में पिलखवा गांव के मदरसा इक़रा पब्लिक स्कूल में आधुनिक टीचर हैं, जो अपने जिले में गैर मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे करने के लिए 12 सवालों के साथ दौरे पर निकले हुए हैं. इस विवादास्पद सर्वे की घोषणा योगी आदित्यनाथ ने इस साल अगस्त में की थी जिसमें गैर मान्यता प्राप्त मदरसों की स्थिति और फंडि़ंग का स्रोत जानने की बात कही गई थी. लेकिन मेहताब का कहना है कि इस सर्वे फॉर्म में एक भी सवाल उनकी मौजूदा समस्याओं से जुड़ा हुआ नहीं है.

सरकार के साथ रजिस्ट्रर्ड ‘आधुनिक मदरसों’ में लगभग पांच हजार से ज्यादा ‘आधुनिक टीचर्स को लगभग पिछले चार साल से सैलरी नहीं मिली है, जो इन मदरसों में इस्लाम से जुड़ी शिक्षा के साथ-साथ साइंस और मैथ्स पढ़ाते हैं. हालांकि, सर्वे में नॉन रजिस्टर्ड मदरसों की फंडिंग पर ज्यादा जोर दिया गया है.

मेहताब पूछते हैं, ‘सरकार सिर्फ मदरसों की जांच या सर्वे कराती रहती है, जब जांच में सब कुछ ठीक निकलता है तो फिर सैलरी क्यों नहीं दे रहे है?’

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने यूपी के मदरसों में बाल अधिकारों के उल्लंघन और यौन उत्पीड़न के मामलों की कई शिकायतों के बाद सर्वे का अनुरोध किया था जिसे योगी सरकार ने मंजूरी दे दी. हालांकि इस घोषणा के बाद से ही मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया है.

योगी सरकार के इस फैसले ने राज्य के मदरसों को एक कड़ा संदेश दिया है जिसके बाद से पूरे प्रदेश में डर का माहौल है. मुस्लिम समुदाय का कहना है कि इसके जरिए उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने इस सर्वे को ‘मिनी एनआरसी‘ बताया है. राज्य के इन निजी मदरसों के मालिकों ने दमन और योगी सरकार द्वारा उनके मदरसों पर बुलडोजर चलाए जाने की आशंका जताई है.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि योगी सरकार को गुरुकुल्स को भी जांच के दायरे में लाना चाहिए. हालांकि जमीयत उलेमा-ए-हिंद और दारुल उलूम देवबंद ने इसका स्वागत किया है.

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए मदरसा सालों से एक राजनीतिक मुद्दा रहा है. इन्हें राजनीतिक भाषणों, टीवी चैनल्स और सोशल मीडिया पर जिहादी फैक्ट्री बताकर बदनाम किया जाता रहा है. साथ ही इन्हें नियमित पाठ्यक्रम के साथ आधुनिक बनाने और उन्हें सरकार के जांच के दायरे में लाने के लिए कहा जाता रहा है.

उत्तर प्रदेश के मदरसों के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती है, वो है टीचर्स की रुकी हुई सैलरी और बड़ी संख्या में बच्चों का ड्रॉपआउट. यूपी मदरसा बॉर्ड के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2016 में मदरसों की परीक्षा देने आए छात्रों की तादाद 3,17,046 थी जो साल 2021 में घटकर 1,22,132 हो गई. यह पांच साल में 61 फीसदी की गिरावट है.

उधर, इस्लामिक मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक संघ (आईएमएएएस) के अध्यक्ष ने कहा, ‘सरकार अगर सौ बार सर्वे कराना चाहती है तो कराए लेकिन वो आधुनिक टीचर्स की सैलरी तो दे दे.’

मेहताब आलम, उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के पिलखुवा गांव में मदरसा इकरा पब्लिक स्कूल में बच्चों को पढ़ाते हुए | हिना फ़ातिमा/दिप्रिंट

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सवाल नंबर 9 का डर

इस साल मई में, पैरों में पड़ी लोहे की बेड़ियों के साथ दो नाबालिग बच्चे बाराबंकी के अपने गांव में पहुंचे, उन्होंने दावा किया कि 35 किलोमीटर दूर गोसाईंगंज के एक मदरसे में उन्हें जंजीरों में जकड़ कर रखा गया और उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया. लेकिन बच्चों के माता-पिता ने पुलिस से मौलाना के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई से इनकार कर दिया क्योंकि उन्होंने खुद उनसे अपने बच्चों के साथ सख्ती बरतने के लिए कहा था.

यूपी स्टेट कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स ने इस मामले की जांच शुरू की जिसमें उन्हें अयोग्य शिक्षकों द्वारा कथित तौर पर कट्टरपंथी विचारों का प्रचार करने जैसे ‘चिंताजनक’ संकेत मिले. आयोग ने सरकार को अपनी रिपोर्ट में गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों और बच्चों के साथ दुर्व्यवहार पर चिंता जताई थी.

इसके बाद से ही राज्य में सर्वे कराने की मांग ने तूल पकड़ा.

सर्वे का सबसे चौंकाने वाला हिस्सा सवाल नंबर 9 है जिसमें गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के फंडिंग स्रोत के बारे में पूछा गया है. यही वो सवाल है जिसने मुस्लिम समुदाय में डर की भावना को पैदा कर दिया है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक नेता ने कह चुके हैं कि हजारों मदरसे बिना किसी के जांच के चल रहे हैं. जिलाधिकारियों के पास उनकी कोई लिस्ट नहीं है, इससे अज्ञात फंडिंग स्रोतों के बारे में आशंका बढ़ रही है, स्कूल पर कितना खर्च किया जा रहा है.

समुदाय में कई लोगों ने माना कि कुछ मदरसे व्यक्तिगत जागीर के रूप में काम कर रहे हैं और कुछ बहुत भ्रष्टाचार में भी लिप्त हैं. सरकारी अधिकारियों का यह भी तर्क है कि कुछ मदरसों को विदेश से भी फंड मिल रहा है जो ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं.

यूपी के अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री दानिश आजाद अंसारी ने एबीपी लाइव पर कहा कि सर्वे का मकसद और फंड का सवाल मदरसा व्यवस्था में दखल देना नहीं बल्कि छात्रों को बेहतर सुविधाएं मुहैया कराना है.

मदरसों में खौफ ऐसा है कि कुछ लोग तो सर्वे में हिस्सा लेने से भी कतरा रहे हैं.

भ्रष्टाचार भी इसके पीछे एक वजह है.

एक सर्वे में मौजूद एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि लोगों को को सर्वे के सवाल नंबर 9 से समस्या है. उन्होंने बताया कि कुछ मदरसे अपने फंडि़ंग के स्रोतों के बारे में नहीं बताना चाहते हैं. गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे ज्यादातर इस्लाम से जुड़ी शिक्षा देते हैं. इसीलिए भी उन्हें लगता है कि इसमें सरकारी दख़ल की कोई जरूरत नहीं है.

ज्यादातर मदरसों ने बताया है कि उन्हें ज़कात (इस्लाम में दान) से पैसा मिल रहा है. जो,
अनौपचारिक और गैर-पारदर्शी स्रोतों के कारण शक के दायरे में है.

कई मदरसों के प्रबंधन अधिकारियों ने ज़कात की ओर इस ‘अनैतिक दृष्टिकोण’ पर नाराजगी जताई है, जिसके बिना उन्हें छात्रों को पढ़ाना मुश्किल हो जाएगा.

खासतौर से छोटे मदरसे जिनमें गरीब और यतीम बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं, यह फंड के लिए समुदाय के सदस्यों, दोस्तों और परिवार पर निर्भर हैं. वो पूछते हैं कि यह कैसे दूसरे चैरिटी पर चलने वाले संगठनों से अलग हैं.

देवबंद में मदरसा जामिया तुश शेख हुसैन अहमद अल मदनी के प्रबंधक मौलाना मुज़्ज़मिल अली कहते हैं, ‘हम मदरसों के बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए जकात का इस्तेमाल करते हैं. हम पहले ही इंटेलिजेंस ब्यूरो और सरकार को अपने बच्चों और फंड के बारे में जानकारी दे चुके हैं. हमारे पूरे फंड की देखभाल एक चार्टर्ड एकाउंटेंट द्वारा की जाती है. सब कुछ साफ है.’

भारत के मदरसों पर 2021 की ओआरएफ रिपोर्ट में कहा गया है कि कई अपंजीकृत मदरसों द्वारा लिए गए या खर्च किए गए फंड में पारदर्शिता और जवाबदेही नहीं है. एक औपचारिक चैनल का भी अभाव है जिसके माध्यम से ज़कात का उपयोग किया जाता है.

मेहताब आलम कहते हैं, ‘ज़कात चोरी नहीं हुई है.’ लेकिन वह मानते हैं कि जवाबदेही भी जरूरी है. वे आगे कहते हैं, ‘कुछ लोगों को सौ बच्चों पर खर्च करने के लिए ज़कात मिलता है लेकिन वो सिर्फ 20 पर ही खर्च किया जाता है. यह दूसरे बच्चों का शिक्षा का अधिकार छीनने जैसा है.’

वो कहते हैं कि मदरसों को सवाल नंबर 9 से इसीलिए भी दिक्कत है क्योंकि कुछ मदरसों ने अपने ज़्यादा खर्चे दिखाए हुए हैं.

उन्होंने समझाते हुए बताया कि अक्सर ऐसा होता है कि मदरसे जकात तो ले लेते हैं लेकिन उसे बच्चों पर खर्च नहीं करते हैं. कुछ मदरसे अपने छात्रों से ही साफ-सफाई जैसे अन्य काम करा कर पैसा बचा लेते हैं जिसको वो अपनी निजी जरूरतों पर खर्च करते हैं.

छोटे मदरसों की जमीन भी एक बड़ा मुद्दा है. छोटे मदरसों की जमीन वक्फ नहीं कराई गई है. इन मदरसों की जमीन पर एक शख्स का मलिकाना अधिकार है. इसलिए भी यह मदरसों को रजिस्टर कराने से हिचकिचा रहे हैं. दरअसल वक्फ कोई भी चल या अचल संपत्ति होती है, जिसे इस्लाम को मानने वाला कोई भी व्यक्ति धार्मिक कार्यों के लिए दान कर देता है. इस दान की हुई संपत्ति की कोई भी मालिक नहीं होता है. जमीन वक्फ कराने के मदरसे के मालिक उसकी जमीन से अपना अधिकार खो देंगे.

मिनिस्टरी ऑफ माइनोरिटी अफेयर्स में प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड के सदस्य मुफ्ती शमून कासमी का कहना है, ‘मदरसों का मकसद गरीब बच्चों को शिक्षा देना है लेकिन कुछ लोगों ने इसे अपना बिजनेस बना लिया है जिसके कारण ड्रॉपआउट की समस्या भी आ रही है.’

यूपी मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष, इफ्तिखार जावेद ने कहा, ‘पहले कुछ मदरसे पहले सिर्फ पेपर्स पर काम कर रहे थे हकीकत में थे नहीं. जब जांच पड़ताल की गई तो उनका नाम कटने से संख्या में कमी आई है.’

पूरे यूपी में 16,500 मान्यता प्राप्त मदरसे हैं, जिनमें से 7,000 से अधिक ‘आधुनिक मदरसे’ हैं. यहां, मदरसे को चलाने के लिए प्रबंधन स्कूल की फीस (कहीं भी 100 रुपये से 400 रुपये या उससे भी कम के बीच) और जकात पर निर्भर करते हैं, लेकिन सरकार का उन पर कोई मालिकाना अधिकार नहीं है. सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों के मामले में ऐसा नहीं है, जिन्हें सरकार द्वारा फंड दिया जाता है और नियंत्रित किया जाता है. यूपी में 558 सहायता प्राप्त मदरसे हैं, जिनमें से कई ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की शिक्षा देते हैं.


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आधुनिक टीचर्स को सैलरी कब मिलेगी?

‘आधुनिक मदरसा’ शब्द में एक विरोधाभास नजर आता है, लेकिन इसका प्रयोग यूपी में उन मदरसों के लिए किया जाता है जो रजिस्टर्ड हैं, सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हैं और नियमित पाठ्यक्रम – अंग्रेजी, साइंस और मैथ्स – के अलावा कुरान या इस्लाम से जुड़ी किताबें पढ़ाते हैं. सरकार इन मदरसों में मॉर्डन विषयों को पढ़ाने के लिए एक निश्चित संख्या में फैकल्टी सदस्यों की नियुक्ति करती है और सिर्फ इन्हीं टीचर्स को सैलरी देती है. बाकी टीचर्स और कर्मचारियों को मदरसा प्रबंधन वेतन देता है.

लेकिन आधुनिक टीचर्स को वेतन नहीं मिल रहा है.

इसके अलावा, 2018 की संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में मदरसों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की योजना के तहत भुगतान किए गए शिक्षकों की संख्या वित्त वर्ष 2015-16 में 50,957 से घटकर वित्त वर्ष 2017-18 में 12,518 हो गई है. इसी अवधि के दौरान यूपी में यह आंकड़ा 37,824 से गिरकर 10,724 हो गया.

इनकी नियुक्ति साल 2009 में स्कीम टू प्रोवाइड क्वेलिटी एजुकेशन इन मदरसा (SPQEM) के तहत मदरसों में आधुनिक टीचर्स के तौर पर की गई थी. जिन्हें अंग्रेजी, साइंस जैसे विषय पढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई.

SPQEM पहले योजना मानव एवं संसाधन विकास मंत्रालय के तहत संचालित थी, लेकिन बाद में एक अप्रैल 2021 से यह अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के तहत संचालित है. योजना की शुरुआत में सैलरी केंद्र सरकार की ओर से दी जाती थी, लेकिन वित्त वर्ष 2018-2019 में फंडिंग पैटर्न में बदलाव के बाद से केंद्र सरकार मानदेय राशि का सिर्फ 60 फीसदी हिस्से का ही भुगतान कर रही है, बाकी वेतन का 40 फीसदी हिस्सा राज्य सरकारों द्वारा दिया जाता है .

उत्तर प्रदेश सरकार योजना के तहत अपने हिस्से की सैलरी के साथ-साथ ग्रेजुएट शिक्षकों को प्रति महीने 2 हजार रुपए और पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षकों को हर महीने 3 हजार रुपए का अतिरिक्त भुगतान भी कर रही है. यानी ग्रेजुएट टीचर्स को 6 हजार रुपए की तुलना में हर महीने 8 हजार रुपए और पोस्ट ग्रेजुएट टीचर्स को 12 हजार रुपए तुलना में 15 हजार रुपए प्रति महीना मिलते हैं.

यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार तो अपनी तरफ से सैलरी का भुगतान कर रही है लेकिन केंद्र की तरफ से इनकी सैलरी रुकी हुई है.

सैलरी न आने से टीचर्स आर्थिक तंगी ही नहीं बल्कि भुखमरी और पारिवारिक संकट का भी सामना कर रहे हैं. इनमें से ज्यादातर टीचर्स कर्ज के बोझ तले दब गए हैं.

आधुनिक टीचर्स मदरसों में पढ़ाने के अलावा अलग अतिरिक्त काम भी करते हैं. ताकि उनका गुजर बसर हो सके. टीचर्स का कहना है कि वो मदरसों में पढ़ाने के बाद ट्यूशन, मजदूरी, रिक्शा चलाने और सब्जी बेचने का काम करते हैं ताकि उससे अपने घर का खर्चा निकाल सकें.

देवबंद के मदरसे में मैथ्स पढ़ाने वाले अब्दुल रहमान बताते है कि सैलरी न मिलने के कारण उनके शादी के लिए सात रिश्ते टूट चुके हैं. वो कहते हैं, ‘लड़की वाले जब मेरे बारे में छानबीन करते थे और उन्हें पता चलता था कि मैं आधुनिक टीचर हूं तो वो रिश्ता तोड़ देते थे. वो कहते थे इसकी तो सैलरी ही नहीं आती है. यह हमारी बेटी की देखभाल कैसे करेगा.’

देवबंद से मॉर्डन टीचर रहमान | हिना फ़ातिमा/दिप्रिंट

मेहताब और तमन्ना, पति-पत्नी हैं और पिलखवा गांव के मदरसा इक़रा पब्लिक स्कूल में पढ़ाते हैं, यह गुजर-बसर करने के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर घर का खर्चा निकालते हैं. लेकिन ट्यूशन से मिलने वाले पैसा भी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए नाकाफी है. उन्हें अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल से निकाल कर सरकारी स्कूल में दाखिला दिलाना पड़ा.

टीचर्स के संगठनों ने योगी आदित्यनाथ और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और वर्तमान केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी से मुलाकात की है, लेकिन वेतन अभी भी लंबित है.

कुछ टीचर्स नौकरी छोड़ने के सवाल पर गांव में इस पेशे के साथ जुड़े ‘मास्टर जी’ के तमगे और इज्जत के जाने के साथ-साथ समाजिक डर का भी इजहार करते हैं. मेरठ में ललियाना के आलिया मदरसा हदीसुल कुरआन में साइंस पढ़ाने वाले जर्रार कहते हैं ‘गांव में हमें सभी मास्टर जी कह कर संबोधित करते हैं. अगर हम यह काम छोड़ देंगे तो किसे शक्ल दिखाएंगे. इस काम से हमारी इज्जत जुड़ी हुई है.’

ललियाना के एक मदरसे में पढ़ाने वाले वीरेंद्र कहते हैं, ‘हमारी उम्र 40 साल से ऊपर हो रही है अगर हम यह नौकरी छोड़ कर जाएंगे तो आगे क्या काम करेंगे? इस उम्र में कौन हमें नौकरी देगा? और आज कल नौकरी भी नहीं है.’

कुछ सरकारी अधिकारियों के मुताबिक सैलरी मिलने में देरी टेक्निकल दिक्कत के कारण हो रही है. प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड के सदस्य मुफ्ती शामून क़ासमी कहते हैं, ‘120 करोड़ रुपए उनकी सैलरी के लिए जारी किए गए थे लेकिन कुछ टेक्निकल दिक्कतों के कारण उन को सैलरी नहीं मिल पाई है. 1559 मदरसों के यूडाइज नंबर में गड़बड़ियों के कारण यह समस्या पैदा हुई है.’

तमन्ना हापुड़ के पिलखुवा गांव के मदरसा इकरा पब्लिक स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाती हैं | हिना फ़ातिमा/दिप्रिंट

यूडाइज कोड, जिला स्तर के लिए सूचना प्रणाली है यह देश भर में सभी स्कूल डेटा को व्यवस्थित और वर्गीकृत करने में मदद करता है. टीचर्स का कहना है कि सरकार के पोर्टल पर अपने मदरसे के यूडाइज नंबर अपडेट करते समय कुछ तकनीकी एरर या एक अंक भी गलत हो गया, तो सरकार ने हमें वेतन देने से इनकार कर दिया. इसको लेकर हम कई बार शिकायत कर चुके हैं लेकिन अब तक इस समस्या का समाधान नहीं हुआ है.

तमन्ना पूछती हैं, ‘सरकार हमें अन्य सरकारी स्कूलों की तरह ही सारी जिम्मेदारी सौंपती है चाहे वो इलेक्शन या एग्जाम में देखरेख क्यों न हो. फिर हमें उनकी तरह सुविधाएं और सैलरी क्यों नहीं मिलती है?’


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ड्रॉपआउट का इकोसिस्टम

सैलरी ना मिलने और ड्रॉपआउट की दोहरी मार ने मदरसे के इकोसिस्टम को अस्त-व्यस्त कर दिया है.

मदरसों के टीचर्स का कहना है कि ज्यादातर ड्रॉपआउट गैर मान्यता प्राप्त मदरसों में हुआ है. क्योंकि इनमें अधिकतर दूसरे राज्यों से आने वाले गरीब-यतीम बच्चे पढ़ते हैं. लॉकडाउन के दौरान ज्यादातर बच्चों की पढ़ाई छूट गई है. कुछ बच्चों ने पढ़ाई छोड़ कर मजदूरी करना शुरू कर दिया है.

मौलाना मुजम्मिल अली के अनुसार उनके मदरसे में लॉकडाउन से पहले 1800 से ज्यादा बच्चे पढ़ने आते थे लेकिन अब यह तादाद घटकर 1200 से 1300 हो गई है. इनमें ज्यादातर लड़कियां हैं जिनका ड्रॉप आउट हुए है.

मदरसा प्रबंधकों का मानना है कि बच्चों की घटती तादाद में सिर्फ लॉकडाउन या महामारी ही नहीं बल्कि मदरसों का ‘राजनीतिकरण’ और ‘प्रबंधकों का गैर जिम्मेदाराना रवैया’ भी वजह है. एक टीचर, जो अपना नाम जाहिर नहीं करना चाहते हैं, ने कहा कि जिस तरह से मदरसों को लेकर राजनीति की जा रही है. वो भी ड्रॉप आउट की बड़ी वजह है. मां बाप ने बच्चों को मदरसे से निकल कर दूसरे स्कूलों में एडमिशन करा दिया है.

मेरठ के ललियाना गांव में मदरसा फैज-ए-आम प्राइमरी स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाने वाले वीरेंद्र कहते हैं कि लॉकडाउन से पहले उनके मदरसे में 30 हिन्दू बच्चे पढ़ा करते थे लेकिन अब उनकी संख्या घटकर दस हो गई है. मदरसे में पढ़ाने वाले वीरेंद्र जैसे कई हिंदू शिक्षक मानते हैं कि साम्प्रदायिकरण और राजनीतिकरण करने से उनके और बच्चों की मानसिकता पर  गलत प्रभाव पड़ता है.

मेरठ के ललियाना गांव के मदरसा फैज-ए-आम प्राइमरी स्कूल में वीरेंद्र छात्रों को एकस्ट्रा क्लास में अंग्रेजी पढ़ाते हुए | हिना फ़ातिमा/दिप्रिंट

यूपी के कैबिनेट मंत्री धर्मपाल सिंह ने दि इंडियन एक्सप्रेस को एक इंटरव्यू में कहा कि बीजेपी मदरसा के छात्रों को ‘आदर्श नागरिक, इंजीनियर, डॉक्टर बनाना चाहती है, न कि पत्थरबाजी करने वाला’ ऐसे बयानों की कोई कमी नहीं है. न सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया भर में पिछले कुछ सालों से ‘मदरसा’ शब्द की ‘खतरे’ के रूप में कल्पना की गई है.

मेरठ के ललियाना गांव में एक मदरसे में टीचर, जर्रार कहते हैं, ‘राजनीति से मदरसे बदनाम हो रहे हैं और इससे बच्चों के इनरोलमेंट में कमी आ रही है. मां-बाप अपने बच्चों को मदरसे भेजने से डर रहे हैं.’

ओआरएफ की 2021 की रिपोर्ट में, लेखक राशिद किदवई और अयाज़ वानी ने लिखा है कि मदरसा के 90 प्रतिशत छात्र गरीब परिवारों के हैं, और कई पैसों के लिए संघर्ष कर रहे हैं. 2018 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सरकार चाहती है कि मुस्लिम युवाओं के एक हाथ में कुरान और दूसरे में कंप्यूटर हो, तर्कसंगत और वैज्ञानिक शिक्षा की जरूरत पर जोर दिया था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि यूपी, बिहार, एमपी, छत्तीसगढ़, बंगाल और असम जैसे प्रदेशों में कई मदरसे राज्य द्वारा फंडिड हैं. फिर भी, बड़ी संख्या में निजी तौर पर मदरसे चलाए जा रहे हैं. केरल में अधिक मदरसों ने मॉर्डन करिकुलम और टीचिंग मेथड को अपनाया है, जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार इस मामले में काफी पीछे है.


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करिकुलम पर विवाद

देवबंद के खानकाह इलाके में एक अपंजीकृत मदरसे में करीब 30 छात्र बैठते थे. एक ओर लड़के थे तो दूसरी तरफ लड़कियां – दोनों चटाई पर अलग-अलग बैठे थे. उनके सामने एक मौलाना थे जो छात्रों को कुरान की आयतों का तरजुमा (अर्थ) समझा रहा थे.

मदरसा पाठ्यक्रम का सवाल हमेशा विवादों का केंद्र रहा है. यूपी में, क्या पढ़ाया जाए, इसपर लगातार बहस होती रहती है – भागवत गीता, एनसीईआरटी पाठ्यक्रम अक्सर विवाद का विषय बन जाता हैं.

2018 में, राज्य सरकार ने मदरसों में एनसीईआरटी पाठ्यक्रम लागू किया लेकिन किताबें अब तक उपलब्ध नहीं कराई गई हैं.

एजाज कहते हैं, ‘मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे बेहद गरीब परिवार से आते हैं. ऐसे बच्चे किताब नहीं खरीद सकते और सरकार इन्हें एनसीआरटी की किताबें भी नहीं दे पा रही है. अब यह बच्चे कैसे शिक्षा हासिल करें?’

एजाज अहमद बहराइच के बैजपुर गांव में मदरसा गुलशन-ए-बरकत में पढ़ाते हुए | हिना फ़ातिमा/दिप्रिंट

मदरसा vs मदरसा

यूपी सरकार के सर्वे ने मदरसों के बीच प्रतिस्पर्धा के दरवाजों को भी खोल दिया है. न केवल हिंदू गुरुकुलों को बल्कि पंजीकृत और आधुनिक मदरसों को भी जांच से बाहर रखने से काफी नाराजगी है.

मौलाना मुजम्मिल अली सरकार से सवाल करते हैं कि आखिर हमारे बच्चों की ही डिटेल आपको क्यों चाहिए? वो आगे कहते हैं, ‘जिन मदरसों को आप (सरकार) फंड दे रहे हैं या अपने दूसरे संस्थानों का भी सर्वे करा कर उनकी हालत देख लेते.’

वहीं पीछे, किताबों से खचाखच भरे एक क्लासरूम में लगभग 60 छात्र बैठकर पढ़ाई कर रहे थे. जिन में से ज्यादातर ने सफेद रंग का कुर्ता पजामा पहना हुआ था. उन सभी के सामने तख्तनुमा एक सीट पर मौलाना बैठे थे जो माइक के जरिए उन्हें कुरान पढ़ा रहे थे.

मदरसा प्रबंधक, योगी सरकार द्वारा लक्षित या प्रोफाइल किए जाने का डर व्यक्त करते हैं. नाम न छापने की शर्त पर एक मदरसा अधिकारी कहते हैं, ‘सरकार का दावा है कि वे मदरसों का विकास करना चाहती है लेकिन इस सरकार की कथनी और करनी में बहुत फर्क है. हमने उनका रवैया पहले देखा है. इसलिए हमें उनपर शक होता है.’

मुफ्ती शमून कासमी का कहना है कि मदरसे से जुड़े लोगों को इसपर संदेह नहीं करना चाहिए. लोगों को गुमराह नहीं होना चाहिए. उन्होंने आरोप लगाया कि राजनीति से जुड़े लोग इस सर्वे के बारे में भ्रम फैला रहे हैं. वो जोर देते हुए कहते हैं कि इस मामले में सरकार सिर्फ इतना चाहती है कि मदरसों से जुड़ी हुई समस्याएं उसे पता हों और उन्हें बुनियादी सुविधआएं दी जा सकें.

मौलाना अली ने दिप्रिंट से कहा, ‘अभी सरकार ने 12 सवाल किए हैं उनसे हमें कोई दिक्कत नहीं है. यह सभी सवाल ठीक हैं. लेकिन अगर सरकार आगे बढ़ेगी, ज्यादा दखलअंदाजी करेगी या हमें परेशान करने की कोशिश करेगी तो हम कोई कड़ा कदम उठाएंगे.’

सर्वे टीम 10 अक्टूबर को अपनी रिपोर्ट जिला प्रशासन के अधिकारियों को सौंपेंगी. देवबंद में दारुल उलूम चौक के करीब एक मदरसे के संचालक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘सब बेहद डरे हुए हैं. इस इलाके में अधिकतर मदरसे गैर मान्यता प्राप्त हैं. लोगों को डर है कि पुलिस उनपर छापेमारी करेगी और फिर उनको प्रताड़ित किया जाएगा.’

(इस फीचर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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