मुंबई, 22 अप्रैल (भाषा) महाराष्ट्र सरकार ने विभिन्न वर्गों के विरोध के मद्देनजर मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा एक से पांच तक के विद्यार्थियों के लिए हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य बनाने के अपने आदेश पर रोक लगा दी है।
राज्य के स्कूल शिक्षा मंत्री दादा भुसे ने मंगलवार को सरकारी आदेश (जीआर) पर रोक लगाने की घोषणा की।
उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हम अनिवार्य शब्द (जैसा कि सरकारी आदेश में उल्लेख किया गया है) पर रोक लगा रहे हैं। हम संशोधित सरकारी आदेश जारी करेंगे।’’
भूसे ने कहा कि तीसरी भाषा के रूप में हिंदी सीखना स्वैच्छिक होगा।
यह कदम महाराष्ट्र सरकार की भाषा परामर्श समिति द्वारा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से निर्णय को वापस लेने का आग्रह करने के कुछ दिनों बाद उठाया गया है।
राज्य के मराठी और अंग्रेजी माध्यम के सरकारी स्कूलों में पहली से पांचवीं तक के विद्यार्थियों के लिए हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य बनाने को लेकर पिछले सप्ताह सरकार द्वारा लिये गए निर्णय का विपक्षी दलों सहित विभिन्न वर्गों द्वारा विरोध किया जा रहा था।
मंत्री भुसे ने यह भी कहा कि राज्य में मराठी भाषा सीखना अनिवार्य किया जाएगा और शिक्षा विभाग यह सुनिश्चित करेगा कि इसे प्रभावी ढंग से लागू किया जाए।
उन्होंने इस बात पर बल दिया कि केंद्र ने राज्य पर हिंदी ‘‘थोपने’’ का दबाव नहीं बनाया।
हिंदी को अनिवार्य बनाने संबंधी पहले के सरकारी आदेश पर भुसे ने कहा कि हिंदी और मराठी दोनों की देवनागरी लिपि है और इससे छात्रों को भाषा सीखने में आसानी होती।
जब राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद के निदेशक राहुल रेखावर से पूछा गया कि कक्षा एक से तीसरी भाषा क्यों शुरू की गई तो उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयास किए जाएंगे कि बच्चों पर तीसरी भाषा सीखने का कोई दबाव न पड़े।
उन्होंने कहा कि तीसरी भाषा केवल बोलने और सुनने के लिए होती है।
पहली से पांचवीं कक्षा के लिए त्रि-भाषा फॉर्मूला राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत नए पाठ्यक्रम लागू करने का एक हिस्सा है।
भाषा
खारी पवनेश
पवनेश
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