पुणे: कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरे ने आम जनजीवन को पूरी तरह प्रभावित कर दिया है. इसके कारण असंगठित और विशेष क्षेत्रों में कार्यरत कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति गड़बड़ा गई है.
सरकारी अधिकारी व कर्मचारियों के वेतन में 20 से 50 प्रतिशत की कटौती की जा रही है. लेकिन, कई क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां पिछले अप्रैल महीने से कर्मचारियों को वेतन ही नहीं मिल रहा है.
यही हालत है महाराष्ट्र में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कार्यरत करीब छह लाख शिक्षकों की. महाराष्ट्र में अंग्रेजी स्कूल संघ के प्रदेश अध्यक्ष राजेंद्र दायमा के अनुसार राज्य में ठीक परीक्षा के दौरान स्कूल बंद कर दिए गए थे. इसलिए, अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में 30 से 40 प्रतिशत पालकों ने फीस नहीं दी है.
बता दें कि कोरोना वैश्विक महामारी को रोकने के लिए देश भर में भले ही पिछली 24 मार्च से लॉकडाउन की घोषणा हुई थी. लेकिन, राज्य सरकार ने महाराष्ट्र के सभी स्कूलों को पिछली 14 मार्च से ही बंद करने के आदेश दे दिए थे.
अंग्रेजी स्कूल संघ के मुताबिक राज्य के ग्रामीण अंचल में स्थिति ज्यादा खराब है. वजह, राज्य के गांवों में संचालित अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में 50 प्रतिशत तक पालकों (अभिभावक) ने फीस नहीं दी है.
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संघ के कोषाध्यक्ष राजेंद्र सिंह बताते हैं कि कई ग्रामीण भागों में पालक (अभिभावक) अप्रैल महीने में फीस की किस्त जमा करते हैं. लेकिन, इस बार वे फीस जमा करने से बच रहे हैं.
वे कहते हैं, ‘सरकार ने कहा है कि स्कूल पालकों से फीस वसूलने के लिए सख्ती न करें. इसलिए, हम पालकों से इस बारे में कुछ नहीं कह रहे हैं. लेकिन, इसके कारण स्कूलों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई है. कई जगह से सूचनाएं मिल रही हैं कि अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाने वाले शिक्षकों को मार्च के बाद से वेतन देने में दिक्कत आ रही है.’
महाराष्ट्र में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में करीब छह लाख शिक्षक कार्यरत हैं. इसके अलावा, 80 हजार से ज्यादा ड्राइवर और एक लाख से अधिक चपरासी हैं.
इनके वेतन के लिए कुल 120 करोड़ रुपए महीने की जरूरत पड़ती है. लेकिन, पिछले दो महीने से वेतन देने में आर्थिक समस्या आने के कारण यह राशि बढ़कर 240 करोड़ रूपए हो गई है. संघ का सवाल है कि यह राशि समय पर हासिल नहीं हुई तो शिक्षक आदि का वेतन देने के लिए राशि कहां से आएगी.
घर चलाना होगा मुश्किल
महाराष्ट्र के सांगली शहर में तक्षशिला पब्लिक स्कूल में पदस्थ एक शिक्षक अमोल ताटे कहते हैं कि उनके स्कूल में ज्यादातर किसान परिवारों के बच्चे पढ़ते हैं, जो उनकी सुविधा के अनुसार हर साल मार्च व अप्रैल में बच्चों की परीक्षाएं हो जाने के बाद फीस देने की स्थिति में होते हैं.
उनके मुताबिक, ‘इस बार कई कक्षाओं की परीक्षाएं बीच में ही स्थगित कर दी गईं.अब हालत यह है कि कोई नहीं जानता स्कूल कब खुलेंगे. इस समय परिजन के साथ बैठक आयोजित करना भी संभव नहीं. इस बारे में उनसे बार-बार संपर्क करना भी ठीक नहीं. स्थिति यह है कि ज्यादातर परिजन फीस नहीं दे रहे हैं. हो सकता है उनमें से ज्यादातर फीस देने की हालत में हो भी न! लेकिन, इस वजह से हमारा वेतन रुक गया है. अगले कुछ महीने ऐसा ही रहा तो घर चलाना मुश्किल होगा.’
इसी स्कूल में मिनी बस चलाने वाले अर्णव शिंदे बताते हैं कि अप्रैल में बच्चों के कुछ परिजनों ने उन्हें आधा भुगतान किया है, जबकि कुछ ने बाद में पैसे देने की बात की है.
संघ के सचिव भरत भांदरगे बताते हैं कि उन्होंने इस बारे में राज्य की शिक्षा मंत्री से संपर्क साधा है. बात राज्य के छह लाख से अधिक परिवारों की माली हालत की है. इसलिए, उन्होंने राज्य की शिक्षा मंत्री से संकट की इस हालत से उबरने के लिए उचित विकल्प निकालने का आग्रह किया है.
(लेखक शिक्षा के क्षेत्र में काम करते हैं.)