मुंबई, 16 जनवरी (भाषा) महाराष्ट्र विधान परिषद के नवनियुक्त सभापति राम शिंदे ने बृहस्पतिवार को कई विधान परिषद सदस्यों (एमएलसी) के खिलाफ दायर अयोग्यता याचिकाओं पर अपनी पहली सुनवाई की।
ये विधान परिषद के सदस्य (एमएलसी) जुलाई 2023 में शरद पवार द्वारा स्थापित पार्टी के विभाजित होने पर उपमुख्यमंत्री अजीत पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) में शामिल हो गए थे।
शिंदे ने इन एमएलसी को जवाब देने के लिए दो महीने का समय दिया।
दिलचस्प है कि विधान परिषद के सभापति का पद जुलाई 2022 से खाली था, जब मौजूदा रामराजे नाइक निंबालकर अपने कार्यकाल की समाप्ति के बाद सेवानिवृत्त हो गए थे। दिसंबर 2024 में उनकी जगह शिंदे को नियुक्त किया गया।
जुलाई 2022 से दिसंबर 2024 के बीच, उपसभापति नीलम गोरहे परिषद के दैनिक कामकाज की देखरेख कर रही थीं।
इसके कारण गोरहे, विप्लव बाजोरिया और मनीषा कायंदे के खिलाफ दायर अयोग्यता याचिकाओं पर सुनवाई लंबित थी, जो जून 2022 में बाल ठाकरे के नेतृत्व वाली पार्टी के विभाजन के बाद एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना में शामिल हो गए थे।
शिंदे ने ‘पीटीआई-भाषा’ से बात करते हुए कहा, ‘मैंने कार्यालय को गोरहे, कायंदे और बाजोरिया को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है, जिसमें उनसे सात दिनों के भीतर अपने जवाब देने को कहा गया है। उन्हें जल्द ही नोटिस मिल जाएंगे।”
उन्होंने कहा “राकांपा से परिषद के सदस्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने जवाब देने के लिए चार महीने का समय मांगा, लेकिन मैंने दो महीने का समय देने का फैसला किया है।’
इस बीच, कायंदे ने कहा, ‘जब मैं पहले परिषद का सदस्य था, तो मुझे कभी कोई नोटिस नहीं मिला। मेरा कार्यकाल समाप्त हो गया, और बाद में मुझे उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट के तहत सदस्य के रूप में फिर से नियुक्त किया गया। अगर मुझे अब कोई नोटिस मिलता है, तो भी मैं अपना जवाब प्रस्तुत करूंगा।’
विधान भवन के सूत्रों ने कहा कि कायंदे और बाजोरिया का कार्यकाल तब समाप्त हो गया था जब वे उद्धव ठाकरे के गुट से शिंदे के नेतृत्व वाले गुट में शामिल हो गए थे।
भाषा
नोमान माधव
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