जालना (महाराष्ट्र), 19 मई (भाषा) महाराष्ट्र के जालना जिले में प्रवासी मजदूरों के परिवारों के 6,000 से अधिक बच्चे समर्पित युवा स्वयंसेवकों के अथक प्रयासों के कारण अपनी शिक्षा जारी रखे हुए हैं। एक अधिकारी ने सोमवार को यह जानकारी दी।
ये बच्चे पहले अपने माता-पिता के साथ गन्ने के खेतों या निर्माण स्थलों पर जाते थे।
जिलाधिकारी डॉ. श्रीकृष्ण पांचाल ने पिछले सप्ताह यहां आयोजित एक कार्यक्रम में इन युवा स्वयंसेवकों या बालमित्रों को उनके काम के लिए सम्मानित किया।
बालमित्र यूनिसेफ (संयुक्त राष्ट्र बाल कोष), जालना जिला प्रशासन और दो स्थानीय गैर सरकारी संगठनों द्वारा समर्थित एक सहयोगी पहल का हिस्सा हैं।
पांचाल ने कहा, ‘‘पूर्व में अपने मूल अधिकारों से वंचित बच्चों को शिक्षा और सुरक्षा दिलाने में बालमित्रों के प्रयास बेहद सराहनीय हैं।’’
अधिकारी ने बताया कि जिले के 260 गांवों में कम से कम 450 बालमित्रों ने प्रवासी परिवारों की पहचान की है और यह सुनिश्चित करने के लिए घर-घर जाकर अभियान चलाया है कि बच्चे शिक्षा से वंचित न रहें।
इन गांवों के 18 से 25 वर्ष की आयु के युवा स्वयंसेवक पिछले आठ वर्षों से जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं।
अधिकारियों ने बताया कि स्वयंसेवक प्रवासी श्रमिकों को अपने बच्चों को गन्ने के खेतों, ईंट भट्टों या निर्माण स्थलों पर ले जाने के बजाय दादा-दादी या रिश्तेदारों की देखभाल में छोड़ने के लिए मनाते हैं।
उन्होंने बताया कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और गांव के सरपंचों की मदद से बालमित्र पलायन करने वाले संभावित परिवारों की पहचान करते हैं, आंकड़ा रखते हैं और घर-घर जाकर जागरूकता अभियान चलाते हैं।
भाषा सुरभि मनीषा
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