मुंबई: महाराष्ट्र की कीमत पर गुजरात में बड़े पैमाने पर निवेश होने को लेकर छिड़ी तीखी राजनीतिक बहस के बीच केंद्र सरकार के आंकड़े दर्शाते हैं कि महाराष्ट्र विदेशी निवेश आकृष्ट करने तो हमेशा से आगे रहा है लेकिन समृद्धता के लिहाज से आगे बढ़ने की बात हो तो गुजरात का कोई सानी नहीं है.
दोनों राज्यों के उद्योगों से जुड़े अंदरूनी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि महाराष्ट्र विदेशी निवेश आकर्षित करने में तो हमेशा अग्रणी रहा है लेकिन इस राज्य की आत्मसंतुष्टि की भावना और 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद से जारी राजनीतिक अस्थिरता ने इसमें कोई मदद नहीं की, जब राज्य में शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस की महाविकास अघाड़ी सरकार रही और फिर इस साल के शुरू में शिवसेना के बागी गुट ने उद्धव सरकार गिरा दी.
साथ ही दावा किया कि इस दौरान गुजरात ने राज्य को लेकर केंद्र सरकार की मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति का लाभ उठाकर निवेश आकर्षित करने की दिशा में म जबूती से कदम बढ़ाया.
खोडियार समूह के तहत कई कंपनियां चलाने वाले एक उद्यमी और फेडरेशन ऑफ इंडस्ट्रीज एंड एसोसिएशन, गुजरात के अध्यक्ष कांतिभाई पटेल कहते हैं, ‘महाराष्ट्र एक लंबे समय से देश की वाणिज्यिक राजधानी है लेकिन गुजरात की बात करें तो मोदी ने मुख्यमंत्री रहने के दौरान (2001 से 2014 के बीच) धीरे-धीरे ऑटोमोबाइल और सौर क्षेत्रों में बहुत अधिक निवेश कराया और प्रमुख उद्योगों को राज्य की ओर आकृष्ट किया.’
पटेल ने कहा, ‘मुझे महाराष्ट्र के बारे में तो कुछ खास पता नहीं है लेकिन गुजरात ने जरूर सरकार की वजह से पिछले पांच-छह सालों में वास्तव में काफी प्रगति की है और जबसे मोदी जी (2014 में) प्रधानमंत्री बने हैं, निवेश में और भी तेजी आई है.’
केंद्र सरकार के उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले पांच में से चार वित्तीय वर्षों में महाराष्ट्र ने न केवल गुजरात से अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) जुटाया है, बल्कि विदेशी निवेश हासिल करने के मामले में लगातार शीर्ष तीन राज्यों में भी बना रहा है. पड़ोसी केंद्र शासित प्रदेश दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव का डेटा भी महाराष्ट्र के डेटा में जुड़ा है.
2020-21 में जब कोविड-19 महामारी से देश बुरी तरह प्रभावित था, गुजरात ने महाराष्ट्र को पछाड़कर एफडीआई हासिल करने वाले राज्यों की सूची में शीर्ष स्थान हासिल कर लिया. उस साल, गुजरात में कुल एफडीआई पिछले वर्ष की तुलना में 42,976 करोड़ रुपये से बढ़कर 1.62 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया, जबकि महाराष्ट्र में एफडीआई 1.19 लाख करोड़ रुपये रहा. हालांकि, एक साल बाद महाराष्ट्र ने एक बार फिर गुजरात को मीलों पीछे छोड़ दिया.
गुजरात बनाम महाराष्ट्र में निवेश पर राजनीतिक बहस इस साल सितंबर में तब शुरू हुई, जब वेदांत-फॉक्सकॉन ज्वाइंट वेंचर ने अपनी 1.5 लाख करोड़ रुपये की सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग एवं डिस्प्ले फैब्रिकेशन यूनिट गुजरात में स्थापित करने का फैसला किया. गौरतलब है कि इस मामले में महाराष्ट्र के साथ कंपनी की बातचीत काफी आगे तक पहुंच गई थी.
उसी महीने, केंद्र सरकार ने गुजरात, हिमाचल प्रदेश और आंध्र प्रदेश के लिए बल्क ड्रग पार्क स्थापित करने के प्रस्तावों को मंजूरी दी, जिसके बाद गुजरात ने 2,300 करोड़ रुपये के ड्रग पार्क की घोषणा की. भारतीय वायु सेना के लिए सी-295 विमानों के निर्माण के लिए 22,000 करोड़ रुपये का संयंत्र स्थापित करने संबंधी टाटा-एयरबस का एक और बड़ा निवेश पिछले महीने ही औपचारिक तौर पर गुजरात के खाते में आ गया है.
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राजनीतिक स्थिरता भी जरूरी
महाराष्ट्र में विपक्षी दलों शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), एनसीपी और कांग्रेस का आरोप रहा है कि मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार कथित तौर पर गुजरात का पक्ष लेती रही है.
हालांकि, विशेषज्ञों के मुताबिक, यह सच हो सकता है लेकिन एक और तथ्य गुजरात के पक्ष में जाता है कि कई सालों से यह राज्य राजनीतिक रूप से स्थिर रहा है, जहां 1995 से भाजपा सत्ता में रही है. और यद्यपि 2014 में मोदी के केंद्र सरकार में आने के बाद गुजरात में तीन सीएम बदले हैं लेकिन वे सभी परोक्ष रूप से उनका एजेंडा ही चला रहे हैं.
महाराष्ट्र के एक अर्थशास्त्री अजीत रानाडे ने दिप्रिंट को बताया, ‘राजनीतिक स्थिरता निवेश बढ़ाने में काफी योगदान देती है. निवेशक निरंतरता, स्थिरता और सटीक पूर्वानुमान वाली स्थिति चाहते हैं. गुजरात इस लिहाज से शायद कहीं ज्यादा सफल रहा है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘2019 तक, महाराष्ट्र में राजनीतिक स्थिरता थी, पहले कांग्रेस-एनसीपी सरकार के तीन कार्यकाल (1999-2014) और फिर भाजपा-शिवसेना सरकार (2014-2019) के एक पूर्ण कार्यकाल के दौरान. निवेशकों को यह अनुमान लगाने में थोड़ा समय लगता है कि सरकार कितनी स्थिर है.’
दोनों राज्यों की तुलना करते हुए अन्य विशेषज्ञों ने भी राजनीतिक स्थिरता होने या न होने का जिक्र किया.
गुजरात चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज से जुड़े योगेश पारेख ने कहा, ‘केंद्र और गुजरात एक इकाई की तरह हैं. गुजरात के सीएम के तौर पर नरेंद्र मोदी ने गुजरात के लिए कड़ी मेहनत की थी. वह निश्चित तौर पर इस राज्य का विकास करना चाहेंगे.’
उन्होंने आगे कहा, ‘तुलनात्मक तौर पर महाराष्ट्र राजनीतिक रूप से अस्थिर रहा है. उद्योगपति किसी ऐसी जगह जाने से कतराते हैं, जहां कभी भी सरकार गिरने का खतरा हो. अगर सरकार स्थिर होगी तो नीति निर्धारण भी प्रभावी होगा.’
उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, 2017-18 और 2018-19 में महाराष्ट्र ने छह गुना अधिक एफडीआई हासिल करके विदेशी निवेश के मामले में गुजरात पर अपनी अच्छी-खासी बढ़त कायम रखी थी. 2017-18 में महाराष्ट्र को गुजरात के 13,457 करोड़ के मुकाबले 86,244 करोड़ का एफडीआई मिला. 2018-19 में महाराष्ट्र का कुल एफडीआई 80,013 करोड़ रुपये था, जबकि गुजरात के मामले में यह आंकड़ा 12,618 करोड़ रुपये ही रहा.
2019-20 में स्थितियां अचानक बदल गई जब महाराष्ट्र की सत्ता में बदलाव आया और नवगठित एमवीए के साथ उद्धव ठाकरे ने बतौर सीएम राज्य की कमान संभाली. महाराष्ट्र का कुल एफडीआई 77,389 करोड़ रुपये रहा जो गुजरात के 42,976 करोड़ रुपये की तुलना में केवल 80% ही अधिक था और 2020-21 के महामारी के दौरान गुजरात ने 36 प्रतिशत अधिक एफडीआई के साथ महाराष्ट्र को पीछे छोड़ दिया.
हालांकि, 2021-22 में, गुजरात का प्रदर्शन मात्र 20,169 करोड़ रुपये के एफडीआई के साथ निराशाजनक रहा, जबकि महाराष्ट्र में एफडीआई 1.14 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया.
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बुनियादी ढांचा और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस
मुंबई स्थित कॉनकास्ट (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक नरिंदर नायर के मुताबिक, इंवेस्टमेंट डेस्टिनेशन के मामले में गुजरात की तुलना में महाराष्ट्र एक अलग ही लीग में है.
नायर ने कहा, ‘बुनियादी ढांचा, सुविधाएं हमेशा यहां (महाराष्ट्र में) बेहतर रही हैं लेकिन कुछ राजनीतिक कारण गुजरात के पक्ष में कारगर रहे हैं.’
हालांकि, उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र की विभिन्न सरकारें राज्य के निहित लाभों को लेकर हमेशा ही आत्मसंतुष्ट रही हैं.
निजी क्षेत्र से जुड़े एक समूह मुंबईफर्स्ट के भी अध्यक्ष नायर ने कहा, ‘महाराष्ट्र में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार की जरूरत है. कुछ प्रयास तो हुए हैं लेकिन यह पर्याप्त नहीं है.’ यह समूह मुंबई के बुनियादी ढांचे के विकास में सरकार की सहायता के लिए साथ आया है.
2020 के लिए केंद्र सरकार की नवीनतम ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ रैंकिंग ने गुजरात को उन सात राज्यों में रखा, जो ‘टॉप अचीवर्स’ थे, जबकि महाराष्ट्र दूसरी श्रेणी वाले राज्यों में शामिल था, जिन्हें ‘अचीवर्स’ के तौर पर वर्गीकृत किया गया था.
रानाडे के मुताबिक, उद्योगों को मुख्य रूप से दो चीजों की जरूरत होती है— पर्याप्त बिजली और आसानी से जमीन उपलब्ध होना और गुजरात ने इन दोनों ही मोर्चों पर अच्छा प्रदर्शन किया है.
अहमदाबाद में एक इंडस्ट्रियल क्लस्टर, वटवा इंडस्ट्रियल एसोसिएशन की अध्यक्ष डिंपल पटेल ने कहा कि बुनियादी ढांचे में सुधार ने गुजरात में बड़े निवेश को आकर्षित किया है लेकिन यह छोटी और मध्यम आकार की फर्मों तक नहीं पहुंचा है.
रंग और कुछ खास केमिकल बनाने वाले नवरंग इंडस्ट्रीज के मालिक पटेल कहते हैं, ‘(गुजरात में) पानी की लागत अभी भी बहुत अधिक है. ऐसे उद्योग अहमदाबाद के आसपास नहीं टिक सकते, जिन्हें काफी ज्यादा पानी की जरूरत पड़ती हो. अगर उद्योग सरकार की तरफ से विकसित की जा रही बड़ी औद्योगिक टाउनशिप में यूनिट खोलने के बारे में सोचते हैं तो वहां मैनपॉवर की उपलब्धता एक समस्या है. उन्हें विकसित हब से मैनपॉवर साथ लानी पड़ती है जिससे यह भी महंगी हो जाती है.’
उन्होंने कहा, ‘इस सबके बीच बड़े व्यवसाय तो कोई न कोई रास्ता निकाल लेते हैं. लेकिन असल समस्या छोटे और मध्यम आकार के व्यवसायों को झेलनी पड़ती है.’
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