(लक्ष्मी गोपालकृष्णन)
पलक्कड़ (केरल), दस फरवरी (भाषा) केरल के मालमपुझा में खतरनाक दरारों को समेटे खड़ी ढलानों, ठोस-नुकीली चट्टानों और पथरीली राहों वाली कुरुंबाची की पहाड़ियां चढ़ाई के लिए आने वाले लोगों की किस्मत और इच्छा-शक्ति की परीक्षा लेती हैं।
लेफ्टिनेंट कर्नल हेमंत राज बताते हैं कि जब भारतीय सेना के जवानों ने वहां फंसे पर्वतारोही बाबू को बचाने के लिए मध्यरात्रि में घने जंगलों के बीच पहाड़ों पर चढ़ाई शुरू की तो उनके सामने चुनौतियों का अंबार था, लेकिन उन्होंने प्रण लिया कि वे इस अभियान को किसी भी कीमत पर पूरा करेंगे।
मद्रास रेजिमेंटल सेंटर (एमआरसी) की बचाव टीम बुधवार को सांसें रोक देने वाले अभियान के तहत युवा पर्वतारोही को पहाड़ से सुरक्षित निकालने में सफल रही थी।
टीम का नेतृत्व करने वाले लेफ्टिनेट कर्नल राज ने कहा कि यह हाल के दिनों के सबसे ‘संतोषजनक अभियानों’ में से एक था, जिसके तहत टीम एक नौजवान के अनमोल जीवन को बचाने में कामयाब हुई।
बाबू सोमवार से भीषण गर्मी में बिना भोजन-पानी के, पहाड़ की चोटी से लगभग 400 मीटर नीचे एक खाई में चट्टानों के बीच फंसे हुए थे।
उन्हें बचाने के लिए सेना ने पैराशूट रेजिमेंटल सेंटर (बेंगलुरु) और मद्रास रेजिमेंटल सेंटर (एमआरसी) (वेलिंगटन) के कुशल पर्वतारोहियों और विशेषज्ञों की दो टीमें रवाना की थीं। एमआरसी के दल में नौ पर्वतारोहण विशेषज्ञ शामिल थे।
लेफ्टिनेंट कर्नल राज ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मंगलवार की रात जैसे ही हम पहाड़ी के पास पहुंचे, हमें अधिकारियों द्वारा उसकी खासियत और स्थलाकृति के बारे में बताया गया। हालांकि, हमसे कहा गया कि मिशन सुबह से शुरू करना ठीक रहेगा, लेकिन हमने रात 12 बजे से ही चढ़ाई शुरू करने का फैसला किया।’
उन्होंने बताया कि अभियान शुरू करने से पहले गूगल मैप का इस्तेमाल करके उस जगह की एक स्पष्ट तस्वीर हासिल की गई थी, जहां पर्वतारोही फंसा हुआ था और उसे वहां से रस्सियों की मदद से सुरक्षित निकालने के लिए एक योजना तैयार की गई थी।
एमआरसी टीम के साथ पुलिस और वन विभाग के कर्मी, एनडीआरएफ अधिकारी और कुरुंबाची की पहाड़ियों पर चढ़ने का अनुभव रखने वाले कुछ नागरिक भी 30 सदस्यीय बचाव दल में शामिल थे।
लेफ्टिनेंट कर्नल राज ने बताया कि मोटी रस्सियों और अन्य भारी उपकरणों को खुद सेना के जवान पहाड़ की चोटी पर ले गए।
उन्होंने कहा, ‘‘चोटी पर पहुंचना जवानों के लिए बिल्कुल भी आसान काम नहीं था, क्योंकि अंधेरा, पेड़-पौधे, झड़ियां, तेज धार वाली चट्टानें और वन्यजीवों की निरंतर उपस्थिति जैसी गंभीर चुनौतियां मौजूद थीं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ट्रेकिंग के दौरान मेरी टीम को तीन भालू मिले। सदस्यों को चोटी तक पहुंचने में छह घंटे लगे। जब वे उस खाई से लगभग 200 मीटर दूर पहुंचे जहां बाबू फंसे हुए थे, तब उन्होंने बाबू को उनके नाम से पुकारा और बताया कि बचाव दल आ गया है, जिस पर बाबू ने तुरंत प्रतिक्रिया दी।’’
सेना के जवानों का बाबू को हिम्मत बंधाने वाला वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।
लेफ्टिनेंट कर्नल राज ने कहा, ‘‘हमने पहले ही तय कर लिया था कि हम रस्सी की मदद से नीचे उस खाई के पास जाएंगे, जहां बाबू फंसे हुए थे। हालांकि, उस पथरीले इलाके में रस्सी का लंगर डालने के लिए अधिक पेड़ नहीं थे। आखिरकार हमें एक बड़ी चट्टान मिल गई है, जिससे हमने अपनी रस्सी बांध ली। एक अन्य रस्सी 20 मीटर की दूरी पर मजबूत जड़ों वाले एक पेड़ से बांध दी गई।’’
उन्होंने बताया, ‘‘इस प्रकार सेना के जवान बी बालकृष्णन उर्फ बाला दो रस्सियों की मदद से बाबू के पास पहुंच गए। चूंकि दो व्यक्तियों को एक साथ खींचने में जोखिम था, इसलिए हमने मध्य से एक अन्य रस्सी के जरिये दीपक नाम के अन्य सदस्य को वहां भेजा।’’
लेफ्टिनेंट कर्नल राज के मुताबिक, युवा पर्वतारोही की इच्छा-शक्ति ने मिशन की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने दुनिया को दिखाया कि कैसे हर किसी को जीवन में ऐसी खतरनाक स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए।
बाद में भारतीय वायुसेना के एमआई-17 हेलीकॉप्टर की मदद से युवक को सुरक्षित निकाल लिया गया और उसे यहां एक सरकारी जिला अस्पताल ले जाया गया।
लेफ्टिनेंट कर्नल राज ने कहा, ‘‘बाबू ने मुझे क्या बताया कि वह दो बार गिरे, लेकिन किसी तरह संतुलन बनाए रखा और चट्टानों पर चढ़ने में कामयाब रहे। गिरने के दौरान उन्हें मामूली चोटें आईं।’’
बाबू फिलहाल चिकित्सकीय निगरानी में हैं। उन्होंने बृहस्पतिवार को कहा कि वह ठीक हैं और उनकी सेहत में सुधार हो रहा है।
हालांकि, ऐसी खबरें थीं कि वन विभाग द्वारा कथित तौर पर वन्यजीव क्षेत्र में घुसपैठ करने के लिए पर्वतारोही के खिलाफ मामला दर्ज किया जा सकता है, लेकिन सरकार ने बाद में स्पष्ट किया कि बाबू के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।
भाषा पारुल मनीषा
मनीषा
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