तिरुवनंतपुरम: केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद ख़ान को लगता है, कि नीची कोविड-19 मृत्यु दर ने, शायद लोगों के दिमाग़ से बीमारी का ख़ौफ़ निकाल दिया है, जिसकी वजह से वो बड़ी संख्या में बाहर निकल रहे हैं, और राज्य में कोविड मामलों में उछाल देखा जा रहा है.
दिप्रिंट के साथ एक ख़ास इंटरव्यू में, ख़ान ने राज्य की सीपीआई(एम) की अगुवाई वाली वामपंथी लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार की खुलकर प्रशंसा की, ख़ासकर स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा की.
ख़ान ने कहा, ‘(लोगों में लॉकडाउन उपायों और दूसरी पाबंदियों को लेकर) बेचैनी स्वाभाविक है. लेकिन संख्या में इज़ाफ़े की, उससे भी बड़ी वजह ये है, कि लोगों में कोविड को लेकर, अब कोई ख़ौफ़ नहीं रहा है’. उन्होंने आगे कहा, ‘महामारी के शुरू में ये ख़ौफ़ था, लेकिन नीची मृत्यु दर की वजह से, मरने का वो डर अब नहीं रहा है. वो जानते हैं कि वो बीमार हो सकते हैं, लेकिन फिर ठीक भी हो जाएंगे’.
मामलों में उछाल का एक और कारण, वो बड़ी संख्या में देश से बाहर बसे, उन केरल वासियों को बताते हैं, जो लॉकडाउन के बाद लौट आए, और साथ ही ग्रामीण-शहरी अनुक्रम को भी एक वजह बताते हैं. उन्होंने कहा कि ‘ये राज्य दरअस्ल एक बड़ा शहर है’.
शनिवार को केरल में 11,755 पॉजिटिव मामलों की एक बड़ी संख्या सामने आई, जिससे कुल आंकड़ा 2,79,855 पहुंच गया. मंगलवार को 8,764 नए मामले और 21 मौतें दर्ज हुईं, जिससे कुल मौतों की संख्या 1,080 पहुंच गई. केस मृत्यु दर 0.36 प्रतिशत थी, जबकि राष्ट्रीय औसत 1.53 प्रतिशत है.
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‘सरकार काफी सक्रिय रही है’
ख़ान पहले बहुत से मामलों में राज्य सरकार के आलोचक रहे हैं, लेकिन कोविड संकट से निपटने में, उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि राज्य को इस बात का भी फायदा पहुंचा, कि उसका स्वास्थ्य सिस्टम बहुत मज़बूत है, और लोग बेहद जागरूक हैं.
उन्होंने ये भी कहा,‘ये आंकड़े भविष्यवाणियों के हिसाब से ही हैं. भविष्यवाणी ये थी कि रोज़ाना के मामले, सितंबर में 5,000 पहुंच जाएंगे- वो पहुंच गए’. उन्होंने आगे कहा, ‘अक्तूबर में भी यही है और रोज़ाना के 10,000 मामले, भविष्यवाणियों के हिसाब से हैं. यही वजह है कि संकट की स्थिति पैदा नहीं हुई. हमारी स्वास्थ्य मंत्री बहुत सक्रिय हैं, और मुख्यमंत्री भी बहुत एक्टिव हैं. सरकार पूरे समय काम कर रही है’.
ख़ान केरल की सामाजिक कार्य की मज़बूत संस्कृति को भी श्रेय देते हैं. उन्होंने कहा, ‘पहले ही महीने में जिस बड़ी संख्या में लोगों ने स्वैच्छिक काम के लिए पंजीकरण कराया, वो बहुत चौंकाने वाला था. ये एक ऐसा समाज है जिसके अंदर सहानुभूति बहुत है, हो सकता है कि ऐसा उनके मूल रूप से, मातृसत्तात्मक समाज होने की वजह से हो’. राज्य के 100 साल से अधिक के इतिहास का ख़ाका ख़ींचते हुए, उन्होंने कहा कि जागरूकता के स्तर, साक्षरता और साफ-सफाई के जुनून ने, महामारी के इस सीज़न में राज्य की स्थिति को संभाले रखा.
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‘कुदुम्बश्री एक वरदान थी’
ख़ान ने विशेष रूप से महिला समूह कुदुम्बश्री की ख़ूब प्रशंसा की.
उन्होंने कहा ‘केरल की एक ख़ास विशेषता है, जो किसी भी स्थिति में सरकार को ताक़त देती है, चाहे वो बाढ़ हो या महामारी हो. सरकार उन्हें एक संदेश भेजती है, और वो सड़कों पर उतर आती हैं. वो है कुदुम्बश्री. ये महिलाओं की एक संस्था है, सरकार द्वारा प्रायोजित एक एनजीओ जिसकी 43 लाख सदस्य और चार लाख इकाइयां हैं’.
ख़ान ने ये भी कहा: ‘उन्हें (कुदुम्बश्री महिलाओ को) सरकार से पैसा नहीं मिलता. यही वजह है कि लॉकडाउन के बाद, आपको केरल से प्रवासी श्रमिकों के बारे में शिकायतें नहीं मिलीं, जिन्हें वो मेहमान श्रमिक कहते हैं. लॉकडाउन के 24 घंटे के भीतर, 500 कम्यूनिटी किचंस चालू हो चुके थे, और अगले दिन तक 1,000 किचन काम कर रहे थे’.
कुदुम्बश्री केरल में महिलाओं के नेबरहुड ग्रुप्स (एनएचजीज़) की एक सामुदायिक संस्था है. मूल रूप से इसकी कल्पना एक पूर्व सिविल सर्वेंट ने की थी, और ये ज़मीनी स्तर पर महिलाओं के सशक्तीकरण, ख़ासकर आर्थिक सशक्तीकरण का कार्यक्रम है.
इन संस्थाओं के ज़रिए महिलाएं बहुत सारे मुद्दों पर काम करती हैं, जैसे स्वास्थ्य, पोषाहार और कृषि वग़ैरह, और साथ ही आय देने वाली गतिविधियों और माइक्रो क्रेडिट पर भी काम करती हैं.
ख़ान ने ये भी कहा, ‘कुदुम्बश्री एक बहुत पुरानी संस्था है. उन्होंने ज़बर्दस्त काम किया है. बंगाल, बिहार, और उत्तर प्रदेश में मेरे मित्र हैं, और मैंने उन सब से पूछा. उनके राज्यों के जो भी (प्रवासी) मज़दूर यहां कार्यरत थे, उनसे कोई शिकायत नहीं मिली’.
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