नई दिल्ली: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताज़ा आंकड़ों से पता चलता है, कि पिछले साल भारत में साइबर अपराध के मामले, 12 प्रतिशत की दर से बढ़कर 49,708 पहुंच गए. कम से कम 1,000 मामलों वाले राज्यों में, तेलंगाना (87 प्रतिशत) और गुजरात (64 प्रतिशत) में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई. 58 प्रतिशत वृद्धि के साथ उत्तरपूर्वी राज्य असम तीसरे स्थान पर रहा.
अपराध दर या प्रति एक लाख लोगों पर मामलों की संख्या में भी, 10.1 (प्रति 10,000 लोगों पर एक केस) के साथ असम तीसरे स्थान पर था. ये कर्नाटक (16.2) या तेलंगाना (13.4) के पीछे था.
लेकिन, हालांकि असम के आंकड़े सबसे ख़राब नहीं थे- मामलों की वृद्धि और अपराध दर दोनों सूचियों में तीसरा- लेकिन इसके साइबर अपराध की प्रकृति के रुझान सबसे अलग थे.
देश के बाक़ी हिस्सों के विपरीत, जहां साइबर अपराध बुनियादी तौर पर धोखा देने के मक़सद से अंजाम दिए गए. असम के साइबर अपराधों का मुख्य उद्देश्य ‘बदला’ था. ज़्यादातर मामले अंतरंग तस्वीरों को ऑनलाइन लीक करने और यौन शोषण से जुड़े थे.
असम के 3,530 साइबर अपराधों की संख्या को तोड़ने पर पता चला कि ऐसे 45 प्रतिशत मामलों में बदला, पॉर्न और जबरन वसूली प्रमुख उद्देश्य थे. देश के बाक़ी हिस्सों में ये संख्या 14.3 प्रतिशत थी.
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राज्य में हुए कुल साइबर अपराधों में क़रीब 18.5 प्रतिशत (654) निजी बदले की नीयत से अंजाम दिए गए थे. भारत में साइबर अपराध की कुल तालिका (1,463) में ऐसे मामले 45 प्रतिशत थे.
सूबे में पांच प्रतिशत केस धोखा देने की नीयत से अंजाम दिए गए थे. पूरे भारत में ये संख्या 61 प्रतिशत थी- जिससे संकेत मिलता है कि असम राष्ट्रीय रुझानों से कितना अलग था.
कुल मिलाकर, उत्तर प्रदेश में साइबर अपराध के सबसे अधिक (11,097) मामले दर्ज किए गए, जिसके बाद कर्नाटक (10,741), तेलंगाना (5,024), और महाराष्ट्र (3,350) थे.
असम के लीक से हटने पर क्या कहते हैं अधिकारी
स्थानीय ख़बरों के मुताबिक़, बदला पॉर्न के मामले- जहां अपराधी बिना सूचना के पीड़ित की अंतरंग तस्वीरें साझा करता हैं, जो उस समय ली गईं जब वो आपसी रिश्ते में थे- पिछले कुछ वर्षों में काफी बढ़ गए हैं.
राज्य में ऐसी बहुत सी महिलाओं के मामले दर्ज किए गए हैं, जिनके स्पष्ट फोटो और वीडियोज़ ऑनलाइन साझा किए गए थे. टाइम्स ऑफ इंडिया के गुवाहाटी ब्यूरो की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, इन मामलों की संख्या में इज़ाफा हुआ है.
इस मुद्दे पर बोलते हुए असम महिला आयोग अध्यक्ष चिकिमिकी तालुकदार ने कहा, ‘बदला- बिगड़ा हुए प्रेम संबंध- सबसे प्रमुख उद्देश्यों में से एक है. इसका नतीजा ऑनलाइन बदमाशी और यौन शोषण होता है. इसके अलावा, यहां पर न्याय प्रणाली बेहद धीमी है. यहां मुश्किल से ही कोई फास्ट-ट्रैक मुक़दमे होते हैं.
राज्य पुलिस ने दिप्रिंट को बताया कि वो फौरी कार्रवाई करती है, लेकिन सोशल मीडिया कंपनियों से जानकारी जुटाना एक कठिन काम होता है.
एक वरिष्ठ असम पुलिस अधिकारी ने, नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘शिकायतकर्त्ता का बयान दर्ज किया जाता है और एक टीम सुबूत जुटाने के काम पर लगा दी जाती है. सोशल मीडिया की जांच की जाती है, लेकिन पूरी प्रक्रिया में एक बड़ी अड़चन ये आती है कि फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसी ये बड़ी कंपनियां, ज़्यादातर संबंधित व्यक्तियों की जानकारी साझा करने से मना कर देती हैं. उनके सर्वर्स यहां पर नहीं होते, जिसकी वजह से ऐसे मामलों में देरी होती है.’
अधिकारी ने आगे कहा, ‘कुछ मामलों में, हमें क़ानूनी रास्ता अपनाकर एमएलएटी (पारस्परिक विधिक सहायता संधि) के ज़रिए उन तक पहुंचने के लिए कहा जाता है, और वो भी एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है’.
तालुकदार का मानना है कि सस्ते इंटरनेट के ग़लत हाथों में पड़ने से, ऑनलाइन ‘पीछा करने’ के मामले बढ़े हैं, जो एक कारण हो सकता है, कि असम के आंकड़े दूसरों से इतने अलग क्यों दिखते हैं.
उन्होंने कहा, ‘पीछा करने की घटनाएं कई गुना बढ़ गईं हैं. सोशल मीडिया वेबसाइट्स पर कोई नियम क़ानून नहीं हैं, और जो हैं उनके बारे में भी जागरूकता की बेहद कमी है’.
अश्लील हालत
साइबर अपराध के आंकड़ों को क़रीब से देखने पर पता चलता है, कि असम में साइबर अपराध के क़रीब एक तिहाई मामले, सूचना एवं प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 के तहत दर्ज किए गए हैं.
इस धारा के अनुसार, असभ्य और स्पष्ट रूप से अश्लील सामग्री के ऑनलाइन प्रकाशन या संचार पर, तीन वर्ष तक की जेल या/और पहली दोषसिद्धि पर 5 लाख तक का जुर्माना लगाया जा सकता है, जो दूसरी दोषसिद्धि पर पांच वर्ष तक की जेल या/और 10 लाख रुपए तक बढ़ सकता है.
मसलन, पिछले वर्ष जुलाई में, असम की डिब्रूगढ़ यूनिवर्सिटी में एक गणित अध्यापक को, एक पॉर्न वीडियो को रिकॉर्ड करने और प्रसारित करने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया.
भारत में हुए कुल साइबर अपराधों में, मुश्किल से 12.5 प्रतिशत इस धारा के तहत दर्ज किए गए. ओडिशा (27.1 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश (19.1 प्रतिशत), और मेघालय (18.3 प्रतिशत) शीर्ष राज्य थे, जिनमें आईटी एक्ट के तहत इसी तरह के मामले दर्ज किए गए थे.
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आरोप पत्र की नीची दरें
कर्नाटक और तेलंगाना में भले ही सबसे ऊंची साइबर अपराध दर दर्ज की गई, लेकिन ऐसे मामलों से निपटने के लिए उनके पास उन्नत मशीनरी भी उपलब्ध है. असम के पास नहीं है.
एनसीआरबी डेटा से पता चलता है कि साल 2020 में, असम पुलिस ने जिन मामलों का निपटारा किया, उनमें 80 प्रतिशत से अधिक में अभियुक्त के खिलाफ आरोप पत्र दाख़िल करने के लिए, वो पर्याप्त साक्ष्य नहीं जुटा पाई.
आरोप पत्र दर, जैसा कि एनसीआरबी रिपोर्ट में लिखा है, साल भर में निपटाए गए कुल मामलों में, दायर किए गए आरोप पत्रों के अनुपात को दर्शाती है. इससे पुलिस बल की कारगुज़ारी का अंदाज़ा लगता है.
2020 में, असम में साइबर अपराध के क़रीब 1,983 मामलों का निपटारा किया गया. इनमें से केवल 385 मामलों में चार्जशीट फाइल की गई, जिसका मतलब है कि निपटाए गए केवल 19.4 प्रतिशत मामलों में ही, पुलिस अभियुक्त के खिलाफ चार्जशीट दाख़िल करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य जुटा पाई. क़रीब 1,103 मामलों (55 प्रतिशत) में पुलिस कोई सुबूत नहीं दे पाई.
असम पुलिस के एक दूसरे वरिष्ठ अधिकारी ने, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, कहा, ‘साइबरक्राइम के अधिकतर मामलों में, सुबूत न होने की वजह से केस पहले से ही कमज़ोर होता है. कुछ मामलों में तो दायर की गई एफआईआर में कोई दम ही नहीं होता, इसलिए पुलिस अंत में एक फाइनल रिपोर्ट लगा देती है, और यही वजह है कि सज़ा की दर इतनी नीची होती है.’
राज्य में एक प्रगतिशील इनफ्रास्ट्रक्चर साइबर अपराध के मामलों से निपटने में अहम रोल अदा करता है. कर्नाटक में बैंगलुरू सिटी पुलिस के ज्वाइंट कमिश्नर क्राइम संदीप पाटिल के अनुसार, कर्नाटक में साइबर क्राइम के मामले दर्ज करने के लिए, अलग से पुलिस स्टेशंस निर्धारित किए गए हैं, और यही कारण है कि ऐसे मामलों की रिपोर्टिंग ज़्यादा है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘हमारे प्रदेश में इनफ्रास्ट्रक्चर और संस्थाएं दोनों काम करते हैं. हमने पुलिस थानों की संख्या बढ़ाई है, साइबर अपराधों की जांच के लिए अपने श्रमबल को प्रशिक्षित किया है, और साइबर क्राइम से निपटने के लिए डिजिटल फॉरेंसिक टूल्स का सहारा लिया है.’
ऊंची अपराध दर के बावजूद, कर्नाटक में चार्जशीट की दर क़रीब 72 प्रतिशत थी. असम के एक तीसरे पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, कि इनफ्रास्ट्रक्चर की कमी के चलते ‘ऐसे अपराधियों का पता लगाना बेहद मुश्किल हो जाता है, जो किसी कंप्यूटर या मोबाइल स्क्रीन के पीछे छिपकर ऐसे अपराध करते हैं.’
नाम न बताने की शर्त पर अधिकारी ने कहा, ‘कुछ मामलों में, केस दायर होने के कुछ समय बाद, शिकायतकर्त्ता ही सहयोग करने से इनकार कर देता है. तकनीकी सुबूत न होने की वजह से, केस की जांच अनिश्तिता की स्थिति में चली जाती है’.
लेकिन, एक वरिष्ठ सीआईडी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, कि असम में बढ़ते साइबर अपराधों ने सरकार का ध्यान अपनी ओर खींचा है.
नाम न बताने की इच्छा के साथ अधिकारी ने कहा, ‘पिछले कुछ सालों में स्थिति बेहतर हुई है. इस साल हमने एक साइबर क्राइम हेल्पलाइन नंबर शुरू किया है, जहां लोग साइबर क्राइम की शिकायतों के लिए संपर्क कर सकते हैं. इसके अलावा, यहां सीआईडी मुख्यालय में एक साइबर फॉरेंसिक्स ट्रेनिंग सेंटर और लैब भी खोली गई है, और पुलिस थानों को एक रेस्पॉण्डर्स साइबर फॉरेंसिक किट भी दी जाएगी’.
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