मालदा/मुंबई: लॉकडाउन के दौरान पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में 90 वर्षीय एक व्यक्ति की मौत हो जाने के बाद मुस्लिम पड़ोसियों ने उसकी अर्थी को कंधा दिया और हिंदू धर्म की परंपरा के अनुसार ‘राम नाम सत्य है’ बोलते हुए शव को 15 किलोमीटर दूर स्थित श्मशान घाट ले गए.
वहीं, करीब 2,000 किमी दूर मुंबई के उपनगर बांद्रा में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने अपने 68 वर्षीय हिंदू पड़ोसी का अंतिम संस्कार करने में मदद की. वे ‘राम नाम सत्य है’ बोलते हुए अर्थी को श्मशान घाट तक ले गये. पश्चिम बंगाल के मालदा जिला स्थित कालियाचक (दो) ब्लॉक के लोयाइटोला गांव के निवासी 90 वर्षीय विनय साहा का निधन हो गया, जिसके बाद उनके पड़ोस में रहने वाले मुस्लिम मित्रों ने साहा की अर्थी को कंधा दिया.
गौरतलब है कि लोयाइटोला में साहा अकेला हिंदू परिवार है और बाकी लगभग सौ परिवार मुस्लिम हैं.
साहा के पुत्र श्यामल ने बताया कि लॉकडाउन के कारण कोई रिश्तेदार उनके घर नहीं आ सका.
ऐसे में उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि पिता का अंतिम संस्कार कैसे किया जाए.
श्यामल ने कहा कि ऐसी परिस्थिति में उनके पड़ोसी मदद के लिए आगे आए और पिता के अंतिम संस्कार में कोई बाधा नहीं आई.
साहा के मुस्लिम पड़ोसियों ने चेहरे पर मास्क लगाकर अर्थी को कंधा दिया और ‘बोल हरि, हरि बोल’ और ‘राम नाम सत्य है’ कहते हुए श्मशान घाट तक ले गए.
साहा के पड़ोसी सद्दाम शेख ने कहा कि साहा परिवार गांव में बीस साल से रह रहा है.
उन्होंने बताया, ‘मुझे मंगलवार को उनकी (साहा) मौत के बारे में सबसे पहले पता चला. हम (गांव के मुस्लिम) उनके पड़ोसी हैं और इसके नाते हमने अपना कर्तव्य निभाया. कोई भी धर्म मानवता से बढ़कर नहीं है.’
वहीं, बांद्रा के गरीब नगर इलाके में रहने वाले प्रेमचंद्र बुद्धलाल महावीर के पार्थिव शरीर को उनके मुस्लिम पड़ोसी ‘राम नाम सत्य है’ बोलते हुए श्मशान घाट ले गए.
राजस्थान के एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले महावीर का बीमारी के चलते शुक्रवार रात निधन हो गया.
उनके पुत्र मोहन महावीर ने उसके बाद अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को इस दुखद घटना के बारे में सूचित किया, लेकिन वे लॉकडाउन के कारण नहीं आ सके.
मोहन ने कहा, ‘मैं पास के पालघर जिले के नालासोपारा इलाके में रहने वाले अपने दो बड़े भाइयों से संपर्क नहीं कर सका. मैंने राजस्थान में अपने चाचा को पिता के निधन की सूचना दी, लेकिन लॉकडाउन के कारण वे नहीं आ सके.’ उसने कहा कि बाद में, उनके मुस्लिम पड़ोसी आगे आए और शनिवार को अंतिम संस्कार करवाने में मदद की.
उन्होंने कहा, ‘मेरे पड़ोसियों ने मृत्यु संबंधी दस्तावेज बनवाने में मदद की और मेरे पिता के शव को श्मशान घाट ले गए. इस स्थिति में मेरी मदद करने के लिए मैं उनका शुक्रगुजार हूं.’
अंतिम संस्कार में शामिल हुए यूसुफ सिद्दीकी शेख ने कहा, ‘हम प्रेमचंद्र महावीर को अच्छी तरह से जानते थे. ऐसे समय में, हमें धार्मिक बेड़ियों को तोड़कर इंसानियत का परिचय देना चाहिए.’