नयी दिल्ली, 21 अगस्त (भाषा) अगले प्रधान न्यायाधीश के रूप में नामित न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित ने रविवार को कहा कि मुकदमा खून बहने वाले घाव की तरह है और इससे जितना अधिक खून बहने दिया जाएगा, व्यक्ति को उतना ही अधिक नुकसान होगा।
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) के कार्यकारी अध्यक्ष न्यायमूर्ति ललित ने यहां विज्ञान भवन में ‘डिजिटल-प्रत्यक्ष’ तरीके से आयोजित कार्यक्रम में 365 जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों में हाल में शुरू की गई कानूनी सहायता परामर्शदाता (एलएडीसी) प्रणाली को औपचारिक रूप से आरंभ किया।
नालसा के तहत गठित एलएडीसी प्रणाली उन गरीबों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करेगी, जो अपने आपराधिक मामलों को लड़ने के लिए निजी वकील की सेवाएं लेने के लिए मजबूर होते हैं और इस प्रक्रिया में अपनी संपत्ति का नुकसान झेलते हैं।
न्यायमूर्ति ललित 27 अगस्त को प्रधान न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभालेंगे। उन्होंने रेखांकित किया कि 70 प्रतिशत से अधिक आबादी गरीबी रेखा से नीचे है और केवल 12 प्रतिशत ही विधिक सेवा प्राधिकरणों द्वारा प्रदान की जाने वाली मुफ्त कानूनी सहायता का विकल्प चुनते हैं।
न्यायमूर्ति ललित ने कहा, ‘‘12 प्रतिशत से 70 प्रतिशत के बीच की आबादी क्या करती है?’’ उन्होंने जोड़ा, ‘‘इसका मतलब है कि 12 प्रतिशत और 70 प्रतिशत के बीच जो अंतराल है, वे हमारे साथ नहीं है। वे निजी वकीलों की सेवाएं लेते हैं…उन्होंने अपनी संपत्ति बेच दी होगी, अपने आभूषण बेचे होंगे, उन्होंने अवश्य ही अपनी संपत्ति गिरवी रख दी होगी…इसी तरह मुकदमेबाजी शुरू होती है। मुकदमा खून बहने वाले घाव की तरह है। जितना अधिक आप इससे खून बहने देंगे, उतना ही आदमी नुकसान झेलेगा।’’
उन्होंने कहा कि कानूनी सहायता से ऐसे लोगों को विश्वास दिलाने की जरूरत है कि व्यवस्था उन्हें इस दरवाजे से ‘‘न्याय के मंदिर’’ तक ले जा सकती है और ‘‘इसका सबसे पेशेवराना तरीके से ध्यान रखा जाएगा।’’
एलएडीसी प्रणाली का उल्लेख करते हुए न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि सरकारी वकील राज्य की ओर से आपराधिक मामलों को लड़ते हैं और इसी तरह, गरीब वादियों के लिए इस तंत्र के माध्यम से ऐसे मामले लड़े जाएंगे, जिनका वित्त पोषण भी नालसा के माध्यम से सरकार से आएगा।
उन्होंने इसे ऐसी स्थिति, जहां गरीब निजी वकीलों की सेवाएं लेने के लिए मजबूर हो जाते हैं, यह ‘मुकदमेबाजी की बुराई’ है। उन्होंने कहा कि आपराधिक मामलों में ऐसा इस तरह से होता है कि आरोपी व्यक्ति को मुकदमे में घसीटा जाता है।
न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि एलएडीसी प्रणाली की सफलता उन लोगों के प्रति विश्वास का हाथ बढ़ाने में निहित है, जिनके संसाधन मुकदमेबाजी में बर्बाद हो जाते हैं और वे इस जाल में फंस जाते हैं।
उन्होंने एलएडीसी प्रणाली को ‘‘कानूनी सहायता लाभार्थियों के लिए विशेष रूप से काम करने वाले पूर्णकालिक वकीलों को जोड़कर लोक रक्षक प्रणाली के अनुरूप आपराधिक मामलों में मुफ्त कानूनी सहायता और कानूनी प्रतिनिधित्व को बदलने की पहल’’ करार दिया।
न्यायमूर्ति ललित ने कानूनी सहायता मुहिम से जुड़े लोगों को पिछले 15 महीनों में उनकी उपलब्धियों के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कानूनी सहायता वितरण तंत्र में सुधार के लिए एलएडीसी के मायने और आवश्यकता पर जोर दिया और नालसा की उपलब्धियों का जिक्र किया।
न्यायमूर्ति ललित ने लोक अदालतों के माध्यम से मामलों के निपटारे की उपलब्धि की भी सराहना की। नालसा ने न्यायमूर्ति ललित के बयान का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘लोक अदालत आंकड़ों में सुधार कर रही है, जो एक मील का पत्थर है जिसे हमने हासिल किया है। दिल्ली को छोड़कर सभी 35 राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों में 13 अगस्त को आयोजित तीसरी लोक अदालत ने एक करोड़ का आंकड़ा पार कर इतिहास रच दिया।’’
भाषा आशीष दिलीप
दिलीप
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