सुकमा: छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले का जिक्र आते ही नक्सली हिंसा की तस्वीर आंखों के सामने तैर जाती है. मगर यहां के जिलाधिकारी(कलेक्टर) चंदन कुमार और पुलिस अधीक्षक शलभ सिन्हा ने साहस का परिचय देते हुए जिले के दूरवर्ती इलाके का दौरा मोटरसाइकिल से किया है. उनकी इस यात्रा ने फिल्म ‘शोले’ के किरदार जय-वीरू की यादें ताजा करा दी हैं.
छत्तीसगढ़ का सुकमा जिला आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की सीमा पर है. यहां नक्सलियों का आतंक है और ग्रामीणों से लेकर सरकारी मशीनरी को धमकाना उनके लिए आम बात है. घने जंगलों में बसे ग्रामीण इलाकों में सरकारी अमला जाने तक से डरता है. कर्मचारियों का डर खत्म करने और ग्रामीणों में प्रशासन के प्रति भरोसा पैदा करने के लिए कलेक्टर और एसपी ने खुद को ही खतरे में डालकर मोटरसाइकिल से कई किलोमीटर लंबी यात्रा की और ग्रामीण इलाके के हालात का जायजा लिया.
सुकमा जिले का किस्टाराम थाना क्षेत्र वह इलाका है, जिसे सर्वाधिक नक्सल प्रभावित माना जाता है. सरकार यहां अनेक निर्माण कार्य करा रही है. यहां तक जाने के लिए आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से होकर गुजरना पड़ता है और रास्ता खतरनाक और बीहड़ है.
जिलाधिकारी चंदन कुमार ने आईएएनएस को बताया, ‘हम एक नियत स्थान तक वाहनों से गए, और सुरक्षाकर्मियों की मदद भी ली, जहां की सड़कों पर विस्फोटक होने की आशंका होती है. उसके बाद हमने पुलिस अधीक्षक के साथ मोटरसाइकिल की सवारी की. रास्ते में घने जंगलों से होकर गुजरना पड़ा. सजग और सतर्क रहे, और कोई दिक्कत नहीं आई.’
उन्होंने आगे कहा, ‘किस्टाराम गांव में पहुंचकर वहां चल रहे विकास कार्यो का जायजा लिया. वहां स्कूल, आश्रम, छात्रावास, स्वास्थ्य केंद्र आदि के निर्माण कार्य चल रहे हैं. सड़क का निर्माण भी होना है, जिससे वहां के लोगों को लाभ होगा. हम जब वहां के आंगनवाड़ी केंद्र पहुंचे तो सुखद लगा, क्योंकि बच्चे अंडे और केले खा रहे थे.’
चंदन कुमार कहते हैं, ‘सुदूर क्षेत्र में जाने से केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआरपीएफ) और पुलिस जवानों से मिलने पर उनकी समस्याओं के बारे में पता चलता है, साथ ही ग्रामीणों में भी प्रशासन के अधिकारियों के प्रति भरोसा पैदा होता है. उसी उद्देश्य से यह प्रवास था.’
जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक का सोमवार को मोटरसाइकिल से नक्सली क्षेत्र का दौरा हर किसी को रोमांचित कर रहा है. मगर इस दौरे की योजना बनी कैसे?
पुलिस अधीक्षक शलभ सिन्हा ने आईएएनएस से कहा, ‘आम तौर पर लोग किस्टाराम तक आसानी से जाते नहीं हैं, कर्मचारी तक नहीं जाते, क्योंकि नक्सलियों की गतिविधियां वहां ज्यादा होती हैं. लेकिन जिलाधिकारी ने उस क्षेत्र में जाने की इच्छा जताई, ताकि वहां विकास कार्यो, राशन वितरण व्यवस्था आदि को करीब से देखा जाए और लोगों की समस्याओं को समझा जाए. किस्टाराम पुलिस थाने के अंतर्गत पालुड़ी में सीआरपीएफ और पुलिस का शिविर भी है, और हम वहां भी गए.’
कलेक्टर और एसपी की इस मोटरसाइकिल यात्रा की इलाके में काफी चर्चा है. दोनों अधिकारियों की यह यात्रा हिंदी फिल्म ‘शोले’ के उस दृष्य की याद दिलाती है, जिसमें जय और वीरू गब्बर सिंह से टकराने मोटरसाइकिल पर निकलते हैं. शोले में जय और वीरू के कारण ग्रामीणों में भरोसा जागता है और गब्बर मारा जाता है. देखना अब यह है कि छत्तीसगढ़ के ये जय और वीरू ग्रामीणों और सरकारी कर्मचारियों में कितना भरोसा और आत्मविश्वास जगा पाते हैं, और नक्सलवाद को कितना खत्म कर पाते हैं.
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में नक्सली हिंसा की कई बड़ी वारदातें हो चुकी हैं. यहां राजनेताओं पर सबसे बड़ा हमला मई 2013 में हुआ था. जब नक्सलियों ने कांग्रेस नेताओं के काफिले को दरभा घाटी में निशाना बनाया था. पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, पार्टी के तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार पटेल और उनके बेटे सहित पूर्व मंत्री और सलवा जुडूम के प्रणेता महेंद्र कर्मा, पूर्व विधायक उदय मुदलियार सहित 27 लोग मारे गए थे. इसके अलावा सुरक्षाकर्मियों पर भी कई बड़े नक्सली हमले हो चुके हैं.