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Monday, 6 May, 2024
होमदेशमोदी सरकार की तरह मोंटेक पैनल भी चाहता था पंजाब की खेती में सुधार पर हिम्मत नहीं जुटा पाए अमरिंदर

मोदी सरकार की तरह मोंटेक पैनल भी चाहता था पंजाब की खेती में सुधार पर हिम्मत नहीं जुटा पाए अमरिंदर

कोविड के बाद आर्थिक रणनीति की सिफारिश के लिए गठित की गई कमेटी ने, कृषि पर एपीएमसी की पकड़ की आलोचना की, और वो चाहती थी कि इसकी मार्केटिंग में, निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़नी चाहिए.

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चंडीगढ़: पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की कांग्रेस सरकार ने, बहुत मुखर रूप से तीन कृषि क़ानूनों का विरोध किया है, जिनके ख़िलाफ हज़ारों किसान राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं. ये विरोध उसके इस फैसले में भी झलकता है, जिसमें उसने ख़ुद के कमीशन किए गए एक पैनल की रिपोर्ट को नज़रअंदाज़ कर दिया- जिसके अध्यक्ष यूपीए के दौर में योजना आयोग के उपाअध्यक्ष रहे मॉन्टेक सिंह अहलूवालिया थे- जिसमें बहुत सी उन्हीं बातों की सिफारिश की गई थी, जो नए कृषि क़ानूनों में हैं.

सीएम अमरिंदर ने कमेटी को पिछले साल अप्रैल में, पंजाब के लिए कोविड के बाद आर्थिक रणनीति तैयार करने का काम सौंपा था, और अहलूवालिया ने पिछले साल जुलाई में, अपनी रिपोर्ट का पहला हिस्सा सरकार को सौंप दिया था. लेकिन सरकार ने इसकी सिफारिशों के प्रति कोई गर्मजोशी नहीं दिखाई.

कमेटी की 80 पन्नों की रिपोर्ट, जो दिप्रिंट के हाथ लगी है, पिछले साल जुलाई में सरकार को सौंपी गई थी. इसमें कहा गया था कि पंजाब की कृषि उपज विपणन समितियां (एपीएमसी) ‘प्रतिबंधक’ थीं, और उनमें ‘ऊंची लाइसेंस फीस’ रखी गई थी, और कृषि विपणन को उनसे आगे बढ़ जाना चाहिए.

किसानों के बीच ये विवाद का सबसे बड़ा बिंदु है- अन्य बातों के अलावा, किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम 2020, को वापस लिए जाने की मांग कर रहे हैं, जिसमें कृषि उपज को एपीएमसी के दायरे से बाहर बेचने की अनुमति दी गई है, दीवानी अदालतों के अधिकार क्षेत्र पर प्रतिबंध लगाया गया है, और राज्यों के एपीएमसी क़ानूनों को अधिभूत किया गया है. किसानों का कहना है कि इस क़ानून से वो बेईमान निजी खिलाड़ियों के, शोषण का शिकार बन जाएंगे.

रिपोर्ट ने काफी नाराज़गी फैला दी, क्योंकि उसमें किसानों को मुफ्त बिजली देने के, सरकार के क़ानून का विरोध किया गया था, और शर्मिंदा हुए अमरिंदर सिंह को, सार्वजनिक तौर पर सिफारिशों से दूरी बनानी पड़ी. लेकिन, सरकार ने अपने अलग-अलग विभागों से कहा, कि वो रिपोर्ट को पढ़ें और उसमें से अमल ‘करने योग्य’ सिफारिशों को छांट लें.

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नए कृषि क़ानूनों की गूंज

अर्थशास्त्री और पूर्व सिविल सर्वेंट अहलूवालिया ने, कमेटी के लिए विशेषज्ञों का एक ग्रुप जुटाया, जिसमें शामिल थे आईसीआरआईईआर में इनफोसिस के चेयर प्रोफेसर ऑफ एग्रीकल्चर डॉ अशोक गुलाटी, जो अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त कमेटी के सदस्य हैं, जिसे आंदोलनकारी किसानों और सरकार के बीच गतिरोध का हल निकालना है और ट्राइडेंट समूह के अध्यक्ष राजेंद्र गुप्ता, जिनके पंजाब स्टेट प्लानिंग बोर्ड के उपाध्यक्ष के तौर पर कार्यकाल को, अमरिंदर सिंह सरकार ने हाल ही में बढ़ाया है.

रिपोर्ट के पहले हिस्से में, जिसका शीर्षक था ‘कोविड पश्चात पंजाब के लिए मध्य-कालिक और दीर्घ-कालिक आर्थिक रणनीति: लचीलेपन और रिकवरी के लिए एक बहु-क्षेत्रीय उपाय’ कई दूसरी सिफारिशें की गईं थीं, जिनकी गूंज पिछले साल पास किए गए क़ानूनों में सुनाई देती है.

एपीएमसीज़ की आलोचना जारी रखते हुए, कमेटी ने कहा कि पंजाब स्टेट एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड या मंडी बोर्ड में एक हितों का टकराव है, क्योंकि वो लाइसेंसिंग अथॉरिटी भी हैं, और मंडी बोर्ड की ऊंची फीस सबके लिए समान अवसर का गुंजाइश नहीं छोड़ती. ये एक दूसरा मुद्दा है जिस पर किसान, यथास्थिति बनाए रखने पर अड़े हुए हैं, चूंकि उन्हें लगता है कि ये एमएसपी पर फसल ख़रीद के लिए आवश्यक है.

अहलूवालिया कमेटी ने अनुबंध खेती को बढ़ावा देने, और निजी कंपनियों को कृषि में अपनी गतिविधियां बढ़ाने की अनुमति देने की सिफारिश की. कृषक (सशक्तीकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम 2020 का, जो अनुबंध खेती का फेमवर्क मुहैया कराता है, किसानों ने तीखी आलोचना की है.

इसी तरह, आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020 को, जिसके तहत सरकार आपात स्थिति में, केवल कुछ वस्तुओं की आपूर्ति को नियमित कर सकती है, किसान एक ऐसी कोशिश के रूप में देखते हैं, जिससे बड़े व्यावसायिक घरानों के लिए, कृषि उपज की जमाख़ोरी करना सुविधाजनक हो जाएगा. पैनल ने सीधे तौर पर इस मुद्दे पर कुछ नहीं कहा है, लेकिन किसान फिर भी निजी खिलाड़ियों को, कृषि बाज़ार में लाने की कोशिशों के ख़िलाफ हैं, जिसकी कमेटी ने मोटे तौर पर सिफारिश की है.

कृषि ताक़त के रूप में पंजाब का पतन

रिपोर्ट में दिखाया गया है, कि पंजाब किस तरह कृषि में अग्रणी रहने के बाद, पिछले चार दशकों में ऐसी स्थिति में आ गया है, जहां उसकी कृषि विकास दर पूरे देश की अपेक्षा आधी रह गई है.

‘1971-72 से लेकर 1985-86 के बीच, पंजाब की कृषि जीएसडीपी में 5.7 प्रतिशत की सालाना वृद्धि हुई. उस दौरान, ये देशभर की विकास दर से तक़रीबन डेढ़ गुना अधिक थी. उन सालों में पंजाब साफतौर से एक अग्रणी राज्य था. लेकिन, 1986-87 से 2004-05 के बीच, पंजाब में कृषि विकास की दर गिरकर, लगभग उसी के बराबर आ गई, जो उस अवधि में बाक़ी पूरे देश में थी. सबसे हालिया अवधि में, पंजाब में कृषि विकास दर केवल 1.9 प्रतिशत सालाना थी, जो पूरे देश की कृषि विकास के बस आधे से कुछ अधिक है’.

कमेटी इस निष्कर्ष पर पहुंची, ‘पंजाब में कृषि विकास दर में आई सुस्ती को, अक्सर इससे भी समझा जा सकता है कि अनाज की फसलों में पंजाब उत्पादकता के बहुत ऊंचे स्तर पर पहुंच गया था और दूसरे राज्य उस तक पहुंच रहे हैं. लेकिन उसका सिर्फ यही मतलब है कि पंजाब को अधिक मूल्य वाली दूसरी फसलों पर जाकर, ऊंची विकास दर का लक्ष्य रखना चाहिए था. हालांकि विविधीकरण की ज़रूरत बरसों से महसूस की जाती रही है, लेकिन पंजाब ने इस मोर्चे पर उतना काम नहीं किया है, जितना उसे करना चाहिए था’.

रिपोर्ट में पंजाब के लिए सिफारिशें

रिपोर्ट में सिफारिश की गई कि कृषि रणनीति में भारी बदलाव करते हुए, पंजाब को गेहूं-धान के चक्र से हटना होगा, जिसका वो परंपरागत रूप से पालन करता आ रहा है और तेज़ी से विविधीकरण करते हुए, ऊंचे मूल्य की फसलों और आधुनिक एग्रो प्रॉसेसिंग पर जाना होगा.

रिपोर्ट में सुझाया गया, ‘निरंतरता की दृष्टि से कृषि का बुनियादी उद्देश्य ये होना चाहिए कि धान की फसल के क्षेत्र में अगले 6-7 सालों में, क़रीब 10 लाख हेक्टेयर की कमी की जाए (धान की बुवाई के कुल 31 लाख हेक्टेयर्स में से), और साथ ही इस अवधि में, दूसरी फसलों में विविधीकरण का, एक प्रारूप तैयार किया जाए’.

रिपोर्ट की सिफारिशों में आगे कहा गया, ‘पंजाब को जलाभाव वाले इलाक़ों से, धान की ख़रीद में धीरे धीरे कमी करने पर भी विचार करना चाहिए. चूंकि सरकार के पास पहले से ही एक प्रस्ताव है, जिसमें 27 अत्यंत जलाभाव वाले क्षेत्रों में, किसानों को मक्का उगाने के लिए प्रोत्साहन देने की बात की गई है, इसलिए ऊंचे मूल्य की फसलों ख़ासकर बाग़वानी को, विविधीकरण योजना के दायरे में लाया जा सकता है. इसके साथ ही मार्केटिंग तथा वस्तुओं के मूल्यवर्धन/प्रॉसेसिंग में, निजी निवेश को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए’.

उसमें ये भी कहा गया, ‘फूड पार्क्स, कोल्ड चेन निवेश, क्लस्टर आधारित एफपीओज़/एफआईजीज़, अनुबंध खेती आदि को बढ़ावा देने से, कृषि विविधीकरण के प्रयासों को बल मिलेगा, और साथ ही महंगी क़ीमत की ख़राब होने वाली वस्तुओं के मामले में, बाज़ार के जोखिम को भी कम किया जा सकेगा’.

इसे हासिल करने के लिए मोंटेक और उनके पैनल ने सुझाव दिया कि कृषि विपणन को खोलकर एपीएमसीज़ से आगे बढ़ाया जाए. उनकी रिपोर्ट में कहा गया, ‘सरकार ने पंजाब एपीएमसी एक्ट में बदलाव के लिए क़दम उठाए हैं, लेकिन नियम-क़ायदों में अभी भी बहुत सारे प्रतिबंधक प्रावधान हैं, जैसे ऊंची लाइसेंस फीस, बहुत सी ऐसी फसलों को बाहर रखना जिनमें विविधीकरण संभव है, लाइसेंसेज़ की वैधता को अवधि को लेकर अनिश्चितता और लाइसेंसिंग अथॉरिटी के तौर पर मंडी बोर्ड का होना, जिसमें हितों का टकराव शामिल होता है’.

उसमें आगे कहा गया, ‘हम सिफारिश करते हैं कि पंजाब सरकार को, अपने यहां के प्रावधाओं की दूसरे राज्यों के प्रावधानों से तुलना करनी चाहिए. अगर हरियाणा और उत्तर प्रदेश एक अधिक उदार व्यवस्था की ओर जाते हैं, तो पंजाब के लिए जोखिम है कि वो संसाधकों, निर्यातकों और संगठित रीटेलर्स के संभावित निवेश गंवा सकता है’.

‘इस विविधीकरण में रोज़गार और कर राजस्व का नुक़सान भी निहित होता है. इसलिए पंजाब सरकार को जल्दी से, नियमों में बदलाव करना चाहिए, और मार्केट फीस, कमीशन फीस, तथा लाइसेंसिंग आदि से जुड़े बदलावों की अधिसूचना जारी करनी चाहिए, जिससे पंजाब दूसरे सूबों के साथ प्रतिस्पर्धा में आ जाएगा’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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