नयी दिल्ली, 20 अगस्त (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने सात साल पहले एक नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म और अप्राकृतिक यौनाचार से जुड़े मामले में दोषी करार दिए गए व्यक्ति की उम्रकैद की सजा बुधवार को बरकरार रखी।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह और न्यायमूर्ति रजनीश कुमार गुप्ता की पीठ ने याचिकाकर्ता की इस दलील को खारिज कर दिया कि सामूहिक बलात्कार के मामले में केवल उसे ही दोषी ठहराया गया है और सह-आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया गया है।
पीठ ने कहा, “अपराध को सामूहिक बलात्कार का मामला करार देने के लिए यह जरूरी है कि पीड़िता का एक से अधिक व्यक्ति ने यौन उत्पीड़न किया हो। यह दलील बेबुनियाद है, क्योंकि अगर दूसरा अपराधी भागने में सफल रहा हो और उसे पकड़ा न जा सका हो, तो एक अपराधी को सामूहिक बलात्कार के लिए दोषी ठहराया जा सकता है।”
पीठ ने कहा कि अदालत को पीड़िता से “स्पष्ट और निर्विवाद” साक्ष्य मिला, जो याचिकाकर्ता को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त है। अपराध के समय पीड़िता की उम्र 14 साल थी।
उसने कहा, “अभियोक्ता का साक्ष्य विश्वसनीय है, भरोसा पैदा करता है और उसके चिकित्सीय साक्ष्य से भी इसकी पुष्टि होती है। इस तरह, यह संदेह से परे साबित होता है कि याचिकाकर्ता ने उसका अपहरण और यौन उत्पीड़न किया था।”
पीठ ने निचली अदालत के साल 2024 के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि इसमें हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।
अभियोजन पक्ष के मुताबिक, प्रवीण ने 12 नवंबर 2018 की रात को लड़की का अपहरण कर लिया और उसे सह-आरोपी कालू के साथ जंगल में ले गया, जहां दोनों ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया।
प्रवीण को 29 नवंबर 2018 को गिरफ्तार कर लिया गया था और पहचान परेड के दौरान पीड़िता ने उसकी पहचान की थी। वहीं, कालू शुरू में फरार था, लेकिन बाद में उसकी मौत हो गई।
भाषा पारुल नरेश
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