नई दिल्ली: एक पुस्तकालय, स्कूल, गुरुद्वारा और यहां तक कि एक जिम – सिंघु बॉर्डर, जहां हजारों किसान केंद्र सरकार द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं, अब एक ठेठ पंजाबी पिंड जैसा दिखने लगा है.
विरोध प्रदर्शन को 25 दिन हो चुके हैं और किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच चल रही बातचीत का कोई हल नहीं निकला है. ऐसे में दिल्ली की सीमा पर इकट्ठा हुए किसानों को इस बात का अंदाज़ा है उन्हें अपनी लड़ाई लड़ने के लिए यहां लंबे समय तक डटे रहना पड़ेगा.
ऐसे में किसान जितनी हो सके उतनी तैयारी के साथ आये थे. राष्ट्रीय राजधानी में पारा हर गुजरते दिन के साथ गिरता जा रहा है, लेकिन ठंड भी किसानों को विचलित नहीं कर पाई है.
अधिकांश किसान अपने ट्रैक्टरों से जुड़ी ट्रॉलिनुमा कमरों में रहते हैं जो न्यूनतम उपयोग की वस्तुओं से सुसज्जित हैं, पर फिर भी दिल्ली के सर्दियों का मुकाबला करने के लिए काफी नहीं है.
इस सब के बीच, सिंघु बॉर्डर के चारों और छोटी दुकानें भी खड़ी हो गईं हैं जो दैनिक आवश्यकता की सामान और यहां तक कि सस्ते सर्दियों के कपड़े भी बेच रही हैं.
दिल्ली के जहांगीरपुरी के एक दुकानदार शकीर अहमद ने अपनी दुकान बंद कर दी और विरोध स्थल के पास एक स्टाल खोल दिया है.
अहमद के लिए, किसानों के आंदोलन के लिए अपना योगदान देने का उसका यह एक तरीका था, हालांकि इस से जो उसे अच्छी कमाई हो रही है, वह एक अतिरिक्त लाभ है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘दिल्ली में, मैं हर दिन औसतन 20-25 जैकेट बेचता हूं. यहां मैं हर दिन 100-150 बेच रहा हूं. मेरे किसान भाइयों के लिए, मैंने कीमत भी कम कर दी है. 500 रुपये के बजाय, मैं 300 रुपये में जैकेट बेचता हूं’.
अहमद ने विरोध स्थल के प्रवेश द्वार पर सड़क किनारे कई जैकेट की दुकानें खोली हैं, जो दर्शाता है कि गरम कपड़ों की मांग वहां कितनी ज़्यादा है.
खालसा एड – एक अंतरराष्ट्रीय एनजीओ – अन्य चीजों के बीच कंबल, थर्मल इनरवियर, ऊनी मोजे भी वितरित कर रहा है. इन ‘कंबल लंगरों’ के सामने लगती लोगों की पंक्तियां अंतहीन हैं.
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दैनिक उपयोग की आवश्यक वस्तुएं, एम्बुलेंस और एक पुस्तकालय
पंजाब के कई कॉलेज के छात्रों और स्थानीय संगठनों ने भी चिकित्सा सहायता, आवश्यक आपूर्ति और सुरक्षा प्रदान करने के लिए विरोध स्थल पर स्टॉल स्थापित किए हैं.
ऐसा ही एक समूह पटियाला-स्थित सिख सेवा फ़ोर्स है, जो कम्बल, मोजे, साबुन, दवाइयां, सेनेटरी नैपकिन, तेल, मच्छर भगाने वाली क्रीम आदि जैसे दैनिक आवश्यक सामान निशुल्क प्रदान करता है.
संस्थापक रणजीत सिंह ने कहा, ‘हम सुबह 4.30 बजे कैंप खोलते हैं और रात 11 बजे के आसपास इसे बंद करते हैं. लेकिन अगर कोई इमरजेंसी का मामला है और किसी को किसी चीज़ की ज़रूरत है, तो हम हमेशा अपनी सेवाएं देने के लिए उपलब्ध रहते हैं.’
संगठन को दिल्ली से इसकी आपूर्ति मिलती है, और पैसे दान के माध्यम से इकट्ठे किए जाते हैं.
सिंह ने कहा कि भले ही किसानों के लिए सेवा शुरू की गई थी, लेकिन वे सभी जरूरतमंद लोगों की सेवा करते हैं: ‘यह पंजाबियों का स्वभाव है कि जो कोई भी उनके सामने हाथ फैलाता है, वे उन्हें खाली हाथ नहीं जाने देते हैं. हम आस पास के गरीब लोगों की भी मदद करते हैं. पास की झुग्गी बस्तियों में जब भी उन्हें किसी ऐसी चीज की मांग होती है जिसकी उन्हें आवश्यकता होती है और हम उसे प्रदान कर सकते हैं, तो हम ज़रूर करते हैं.’
इस अस्थायी ‘पिंड’ में एक पुस्तकालय और सामुदायिक केंद्र भी है, जहां युवा लोग आमतौर पर पाए जा सकते हैं.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के स्नातक गुरिंदर सिंह के अनुसार पुस्तकालय का मकसद युवा किसानों को अच्छे कामों में व्यस्त रखना था।.
‘जब हम यहां आए, तो हमने महसूस किया कि हजारों युवा किसानों के पास बहुत खाली समय है. हम इस समय का सही उपयोग करना चाहते थे. इसलिए हमने कुछ पढ़ने, बहस और चर्चा शुरू करने के लिए इस सामान्य स्थान (चौपाल) की व्यवस्था की.’
यह छोटा केंद्र, जो सिर्फ एक तंबू से ज्यादा कुछ नहीं है, एक सामूहिक चौपाल के साथ ही एक स्कूल के रूप में भी काम कर रहा है , जहां स्वयंसेवक आस-पास के झुग्गी के बच्चों को पढ़ाते हैं.
पंजाब के स्वयंसेवकों द्वारा संचालित एम्बुलेंस और विभिन्न स्वास्थ्य जांच केंद्र, सिंघू सीमा पर एक और आम दृश्य है.
अमृतसर के एक एमबीबीएस छात्र गुरजीत सिंह ने दप्रिंट को बताया, ‘हमने अपने कॉलेज में एक दान कार्यक्रम किया और किसानों के विरोध प्रदर्शन के ‘सेवा’ करने चले आये.’
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कठिनाई भरे समय का सही उपयोग
कई अन्य लोग अपनी अद्वितीय प्रतिभाओं को सामने लेकर आये हैं ताकि वे विरोध कर रहे किसानों की अपने तरीके से सेवा कर सकें.
उनमें से एक हरियाणा के कुरुक्षेत्र से लाभ सिंह ठाकुर है, जो सैलून सेवाओं को निःशुल्क प्रदान कर रहे हैं. यहां लोग अपनी दाढ़ी मुंडवा रहे हैं और बाल कटवा रहे हैं.
ठाकुर ने कहा कि ऐसे समय में जब किसान अपने हक़ के लिए सीमा पर डेरा डाले हुए थे, उनके लिए घर पर रहना असंभव था, ‘मेरे सभी ग्राहक किसान परिवारों से हैं। मैं उनका समर्थन करने के लिए कैसे नहीं आता’.
कई लोगों के लिए, इन विरोध प्रदर्शनों ने महत्वपूर्ण दैनिक गतिविधियों को बाधित किया लेकिन इसी बीच जुगाड़ के कई किस्से सामने आए.
मनजोत सिंह, अमन तलवंडी, गुरप्रीत सिंह, गगन सिंह, पम्मा पडोड़ी और सुक्खा सकवाल – सभी पेशेवर कबड्डी खिलाड़ी – बिना व्यायाम के एक दिन भी नहीं रह सकते. लेकिन कसरत और विरोध एक साथ चले,इसलिए वे कुल 300 किलोग्राम भारी उपकरण अपने साथ विरोध स्थल पर लाए.
अब उनके पास सेवा करने के लिए एक ओपन-एयर ‘जिम’ है, ताकि वे विरोध करते हुए काम कर सकें और प्रशिक्षण ले सकें.
अमन ने बताया, ‘हम एक दिन में दो बार 90 मिनट के लिए यहां काम करते हैं.’
मनोबल ऊंचा रखने के लिए कीर्तन और भजन
गीत, भजन और कीर्तन भी इन किसानों के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं. जब वे असेंबली या चर्चाओं में भाग नहीं ले रहे होते हैं, तो उनमें से बड़ी संख्या में शबद (भक्ति गीत) गाने के लिए समूह बनाते हैं. कई किसानों ने दिप्रिंट से कहा कि इन सभाओं ने उनकी मनोबल को बनाए रखने में मदद की.
दूसरा तरीका यह है कि किसान अपना मनोबल ऊंचा रखने के किये खुद को सेवा में लगाये रखते हैं. दिल्ली के कुछ सिख समूह रोज़ाना विरोध स्थल पर जाकर लंगर सेवा और कीर्तन करते हैं.
ऐसा ही एक समूह दिल्ली की भगत सिंह पार्क गुरुद्वारा कमेटी है.
समिति के अध्यक्ष सतबीर सिंह ने कहा, ‘हम यहां आते हैं, लंगर तैयार करते हैं और ‘दशवन्ध’ (एक सिख प्रथा जो सेवा के लिए कमाई का दसवां हिस्सा देने के लिए कहती है) से सेवा करते हैं.’
कीर्तन के अलावा, रात में, सिख धर्म के इतिहास पर या भारत में हर रात एक शैक्षिक फिल्म दिखाई जाती है, जिसे प्रदर्शनकारी लंगर (सामूहिक भोजन) के बाद देखते हैं.
छोटे और ज्ञानवर्धक नुक्कड़ नाटक (नुक्कड़ नाटक) भी छात्र समूहों द्वारा नियमित रूप से किए जाते हैं.
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