नई दिल्ली: कोविड महामारी के कारण महिलाओं के लिए कामकाजी घंटे घटे हैं, तनाव बहुत ज्यादा बढ़ा है और स्वास्थ्य बीमा कवर मिलने में कमी आई है.
ये ऐसे कुछ निष्कर्ष हैं जो संयुक्त राष्ट्र के महिला मामलों के एशिया और प्रशांत क्षेत्रीय कार्यालय (आरओएपी) की तरफ से अफगानिस्तान, बांग्लादेश, कंबोडिया, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान, फिलीपींस, समोआ, सोलोमन द्वीप और थाईलैंड में किए गए सर्वेक्षणों से सामने आए हैं.
अप्रैल में हुए सर्वे से पता चलता है कि लैंगिक आधार पर महामारी के क्या दुष्परिणाम सामने आए हैं.
बांग्लादेश (2,350 कुल उत्तरदाता), कंबोडिया (1,164), मालदीव (4,754), पाकिस्तान (2,668), फिलीपींस (1,887) और थाईलैंड (5,031) आदि केवल कुछ देशों के बारे में उपलब्ध प्रारंभिक डाटा यह दर्शाता है कि महामारी के दौरान महिलाएं कैसे अपने पुरुष समकक्षों से ज्यादा प्रभावित हो रही हैं.
सूचना तक पहुंच
सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि अपना खुद का सेल फोन न होना, इंटरनेट और शिक्षा तक सीमित पहुंच आदि कारणों से बांग्लादेश और पाकिस्तान में ऐसी महिलाओं की संख्या कम ही है जिन्हें महामारी के बारे में जरूरी जानकारी मिल पा रही है.
महिलाओं तक विश्वसनीय स्रोतों से सूचना पहुंचना न केवल उनके, बल्कि उनके परिवारों के लिए भी आवश्यक है क्योंकि वे ‘घर के भीतर स्वच्छ दिनचर्या को बढ़ावा देने और परिवारिक सदस्यों की देखभाल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.’
यह भी पढ़ें: कोविड ने महिलाओं को दशकों पीछे धकेला, उनको मदद दिए बिना भारत ‘आत्मनिर्भर’ नहीं बन सकता
मानसिक स्वास्थ्य और बीमा
वैसे तो कोविड-19 महिलाओं की तुलना में पुरुषों के लिए ज्यादा घातक है, जैसा कई अध्ययनों में कहा गया है कि वायरस के कारण मरने वालों में पुरुषों की संख्या ज्यादा है, लेकिन मानसिक स्वास्थ्य में मामले में ऐसा नहीं है.
कोरोनावायरस के कारण लागू लॉकडाउन में बदली स्थितियों की वजह से जब बड़ी संख्या में महिलाओं पर बिना वेतन देखभाल और घरेलू कार्यों का बोझ बढ़ा है, नौकरी और आय के साधन गंवाने पड़े हैं, और पहले की तुलना में घरेलू हिंसा की घटनाएं बढ़ने का सामना भी करना पड़ रहा है, सर्वे बताता है कि उनमें तनाव और चिंता का स्तर बढ़ गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश और समोआ को छोड़कर कंबोडिया, मालदीव, पाकिस्तान, थाईलैंड, नेपाल और फिलीपींस में मानसिक स्वास्थ्य की समस्या पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा सामने आई है.
सर्वे में शामिल आधे से अधिक देशों में जरूरत पड़ने पर महिलाओं का डॉक्टर को दिखाने में असमर्थ होना चिकित्सा सुविधा उपलब्धता के मामले में लैंगिक असमानता को साबित करता है.
यद्यिप डाटा से पता चलता है कि जरूरी मेडिकल आपूर्ति, हाइजीन प्रोडक्ट और भोजन की व्यवस्था करने में महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए मुश्किलें हो रही हैं, बांग्लादेश और पाकिस्तान में इसकी पूरी संभावना है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं को किसी डॉक्टर को दिखाने के लिए ज्यादा लंबा इंतजार करना पड़े.
इसके अलावा, बांग्लादेश और पाकिस्तान में महिलाओं को स्वास्थ्य बीमा कवर की संभावना कम है, जबकि मालदीव—जहां सार्वभौमिक जनस्वास्थ्य सुविधा है—में निजी स्तर पर बीमा के मामले में यही ट्रेंड नजर आता है.
यह भी पढ़ें: बढ़ते कोविड मामलों और 6% मृत्यु दर के बीच, कोलकाता में तेज़ी से कम हो रहे हैं हॉस्पिटल बेड्स
रोजगार और कार्य
ज्यादातर देशों में लॉकडाउन लागू करना और धीरे-धीरे इसे हटाना जीवन और जीविकोपार्जन दोनों को बचाने के बीच संतुलित कदम था.
अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वालों के लिए तो वैसे भी महामारी के कारण लॉकडाउन जैसे आर्थिक झटकों के दौरान रोजगार गंवाने की आशंका अधिक रहती है, एशिया प्रशांत जैसे देशों के मामले में वस्तुस्थिति और भी गंभीर हो जाती है क्योंकि यहां पर बहुसंख्यक अनौपचारिक रोजगार पर ही निर्भर हैं.
अनौपचारिक क्षेत्र में 25-56 प्रतिशत तक नौकरियां जाने के साथ, बांग्लादेश और मालदीव में महिलाओं के लिए कामकाजी घंटे कम होते नजर आ रहे हैं, जबकि कंबोडिया, पाकिस्तान और फिलीपींस में पुरुषों के काम के घंटे कम होने का अनुमान है.
बांग्लादेश, मालदीव, फिलीपींस और थाईलैंड में औपचारिक क्षेत्र में महिलाओं के कामकाजी घंटों में बड़ी कमी दिखी है.
बांग्लादेश में, ‘वायरस के प्रकोप के बाद से औपचारिक रोजगार में अपने पुरुष सहयोगियों की तुलना में कम घंटे काम करने वाली महिलाओं की संख्या छह गुना होने का अनुमान है.’
महिलाओं के लिए ‘निवेश और बचत से होने वाली आय और परिवार और मित्रों से मिलने वाला वित्तीय सहयोग’ भी घटने का अनुमान है.
लॉकडाउन ने तमाम महिलाओं पर अवैतनिक घरेलू कार्यों, जैसे साफ-सफाई, खाना बनाना, परोसना, बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल आदि का बोझ बढ़ाया है. हालांकि, ये सब कार्य ‘सर्वेक्षण में शामिल सभी देशों में विशेष रूप से महिलाओं की जिम्मेदारियां समझे जाते हैं.’
सर्वे के मुताबिक, वहीं पुरुष ज्यादातर ‘घरेलू सामान की खरीदारी, छोटी-मोटी टूट-फूट ठीक करना और बच्चों के साथ खेलने जैसे कार्यों, जिनमें ज्यादा समय खर्च नहीं होता’ में भागीदारी निभाते हैं.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)