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Thursday, 19 December, 2024
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नगर पालिकाओं को मजबूत बनाने वाले कानून को 30 साल पूरे, अब भी एजेंसियों के पास नहीं है पावर, कमजोर हैं महापौर

संविधान (74वां संशोधन) अधिनियम, 1992, में किया गया और 1 जून 1993 को लागू हुआ. इसमें राज्य सरकारों के लिए शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) को 18 महत्वपूर्ण कार्यों की एक सूची सौंपी गई थी.

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नई दिल्ली: जून 2023 में एक प्रमुख संवैधानिक संशोधन की 30वीं वर्षगांठ मनाई गई, जो “कमजोर” और “अप्रभावी” भारतीय नगर पालिकाओं को सशक्त बनाने और उन्हें अधिक अधिकार देने के लिए लागू किया गया था.

संविधान (74वां संशोधन) अधिनियम, 1992, 1 जून 1993 को लागू हुआ और इसमें राज्य सरकारों के लिए शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) को 18 महत्वपूर्ण कार्यों की एक सूची हस्तांतरित की गई थी. उनमें से प्रमुख थे महापौरों को अधिक वित्तीय और निर्णय लेने की शक्तियां देना, शहरी नियोजन, जल आपूर्ति, आग और भूमि उपयोग नियमों आदि से संबंधित मुद्दे शामिल थे .

इसके उद्देश्यों और कारणों का विवरण से पता चलता है, “कई राज्यों में स्थानीय निकाय कई कारणों से कमजोर और अप्रभावी हो गए हैं… परिणामस्वरूप, शहरी स्थानीय निकाय प्रभावी तरीके से काम नहीं कर पा रही है और न ही स्वशासन की जीवंत लोकतांत्रिक इकाइयों के रूप में पूरी तरह से सक्षम हैं.”

हालांकि,न्यूयॉर्क और लंदन जैसे अंतरराष्ट्रीय शहरों के विपरीत, भारत के यूएलबी कहीं भी सशक्त नहीं हैं. भारतीय मेयर केवल प्रमुख व्यक्ति बने हुए हैं. पूरे देश में उनके कार्यकाल या चुनावों में कोई एकरूपता नहीं है – यह एक से 5 साल तक अलग -अलग होता है और इसका चुनाव कुछ राज्यों में प्रत्यक्ष और कई राज्यों में अप्रत्यक्ष होता है – जबकि अधिकांश शहरों में, महापौरों के पास सीमित कार्यात्मक और वित्तीय शक्तियां होती हैं.

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड जैसे राज्यों में महापौरों के लिए प्रत्यक्ष चुनाव होते हैं, जहां लोग उन्हें चुनते हैं और कार्यकाल पांच साल के लिए होता है.

शहरी क्षेत्र के विशेषज्ञ 74वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम (सीएए) के खराब कार्यान्वयन के लिए राज्य सरकारों को दोषी मानते हैं और इसे महत्वपूर्ण कार्यों से अलग होने और अधिनियम को प्रभावी ढंग से लागू करने में उनकी अनिच्छा के रूप में वर्णित करते हैं.

नगरपालिका प्रशासन के क्षेत्र में काम करने वाले एक गैर-लाभकारी संगठन, प्रजा फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित शहरी शासन सूचकांक 2020 के अनुसार, वर्तमान में, किसी भी राज्य सरकार ने सभी 18 कार्यों को यूएलबी को कार्यान्वित नहीं किया है.

नगरपालिका वित्त पर बेंगलुरु स्थित थिंक टैंक जनाग्रह की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘भारत के लिए एक नगरपालिका वित्त खाका’, जिसे 15वें वित्त आयोग द्वारा कमीशन किया गया था और 2022 में प्रकाशित किया गया था, महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने 18 में से 14 कार्यों को स्थानांतरित कर दिया है जबकि गुजरात, कर्नाटक , तेलंगाना और पश्चिम बंगाल ने 10. बिहार और राजस्थान उन राज्यों में से हैं जिन्होंने केवल 6-7 कार्यों को स्थानांतरित किया है.

जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि 74वें सीएए पर दोबारा विचार करने की जरूरत है, केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि नगर निगमों को कामकाज, कर संग्रह को सुव्यवस्थित करने और क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है.

आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा, “74वें CAA में संशोधन की कोई आवश्यकता नहीं है. राज्यों को अपनी शक्तियां ट्रांसफर करनी हैं, केंद्र केवल उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित कर सकता है. इसके अलावा, यूएलबी को परियोजनाओं को पूरा करने के लिए केंद्र और राज्य से निगम को धन दिया जाता है. ”
उन्होंने आगे कहा, “यदि निगम अपने संपत्ति कर संग्रह और अन्य राजस्व धाराओं को सुव्यवस्थित करें तो वे आत्मनिर्भर हो जाएंगे.”

दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय से संपर्क किया है. प्रतिक्रिया मिलने पर रिपोर्ट अपडेट कर दी जाएगी.

74वें सीएए पर दोबारा विचार करने की मांग बढ़ रही है

तेजी से बढ़ते शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के मुद्दों और निर्णय लेने में डिजिटल प्रौद्योगिकी के उपयोग के साथ, शहरी प्रशासन विशेषज्ञों का कहना है कि अब संविधान (74वें संशोधन) अधिनियम, 1992 पर फिर से विचार करने और आज की चुनौतियों का समाधान करने के लिए इसे अपडेट करने का समय आ गया है.

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स (एनआईयूए) की प्रोफेसर देबोलिना कुंडू ने कहा कि राज्य वित्त आयोग (एसएफसी) जैसी संरचनाएं बनाई गई हैं, स्थानीय निकायों के चुनावों को कुछ हद तक नियमित किया गया है, और स्कीम, प्लानिंग और डिलीवरी में यूएलबी की भूमिका का विस्तार किया गया है. हालांकि, फंड, फंक्शन और फाइनेंस के आवंटन के मामले में सशक्तिकरण अभी भी सीमित है.

उन्होंने कहा, “यदि मौजूदा स्वरूप की बात करें तो, 74वें सीएए में 21वीं सदी के लिए शहरी शासन की उभरती चुनौतियों में शहरों की अनियोजित वृद्धि, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण आदि जैसे मुद्दे शामिल हैं. वह आगे कहती हैं कि ” वहीं प्लानेटरी अर्बवाइजेशीन आमतौर पर ग्रामीण-शहरी बाइनरी के धुंधला होने से जुड़ा हुआ है और ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोग शहरी जीवनशैली अपना रहे हैं, 74वें सीएए पर फिर से विचार करना महत्वपूर्ण हो जाता है.”

बेंगलुरु स्थित थिंक टैंक जनाग्रह के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्रीकांत विश्वनाथन के अनुसार, जिसने नगर पालिकाओं के वित्तीय स्वास्थ्य पर बड़े पैमाने पर काम किया है – शहरी स्थानीय सरकारों के कामकाज को नियंत्रित करने वाली राज्य नगरपालिका के कानूनों में संशोधन करना महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा, “तेजी से बढ़ते शहरीकरण की चुनौतियों से निपटने के लिए एक मजबूत स्थानीय सरकार आवश्यक है.”

74वें सीएए में संशोधन की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, “संशोधन में ‘करेगा’ के बजाय ‘हो सकता है’ शब्द के इस्तेमाल ने राज्य सरकारों पर और उनके विवेक पर छोड़ दिया गया है.

“सभी राज्यों में, राज्य सरकारों ने विकास और क्षेत्रीय विकास प्राधिकरणों, जल आपूर्ति बोर्डों और परिवहन निगमों जैसे विभिन्न पैरास्टेटल निकायों का गठन किया है, जो सीधे राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के अलावा पुलिस, लोक निर्माण विभाग आदि जैसे राज्य विभागों को रिपोर्ट करते हैं. जो सीधे तौर पर शासन के महत्वपूर्ण पहलुओं में शामिल हैं.”

इस महीने की शुरुआत में, केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने इन मुद्दों पर विचार-विमर्श करने और शहरी एजेंडा तय करने के लिए गुजरात में ‘शहरी 20’ शिखर सम्मेलन का आयोजन किया, जहां 37 शहरों के महापौरों ने 40 से अधिक अंतरराष्ट्रीय शहरों के अपने समकक्षों के साथ भाग लिया.

‘महापौर महज दिखावे के लोग’

शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले मेयरों ने दिप्रिंट को बताया कि पेरिस, लंदन आदि जैसे वैश्विक शहरों में उनके समकक्षों के पास अधिक वित्तीय और कार्यात्मक शक्तियां थीं.

इंदौर के महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने कहा, “हालांकि मध्य प्रदेश में महापौर प्रणाली उन कुछ राज्यों की तुलना में अधिक प्रभावी है जहां महापौरों के पास पर्याप्त लंबा कार्यकाल और सीमित शक्तियां नहीं हैं, फिर भी महापौरों को और अधिक शक्तियां देने की जरूरत है.”

उन्होंने कहा, “नागरिक निकायों के प्रभावी कामकाज के लिए नौकरशाही को निर्वाचित प्रतिनिधियों के प्रति जवाबदेह होना होगा. देश में अधिकांश महापौरों के पास ज्यादा वित्तीय या कार्यात्मक शक्तियां नहीं हैं और उनका कार्यकाल भी 1-2 साल का होता है. कमिश्नर की एनुअल कॉन्फिडेंशियल आयुक्तों की रिपोर्ट महापौरों द्वारा लिखी जानी चाहिए. स्थानांतरण और पोस्टिंग अभी भी आयुक्तों द्वारा किए जाते हैं और महापौरों का इसमें सीधा योगदान नहीं होता है.”

न्यूयॉर्क, लंदन और पेरिस जैसे शहरों में महापौरों को बहुत सारी वित्तीय और निर्णय लेने की शक्तियां मिली हुई हैं

विश्वनाथन ने कहा, “दक्षिण अफ्रीका, फिलीपींस, मैक्सिको, इंडोनेशिया जैसी समकक्ष अर्थव्यवस्थाओं में, शहरी स्थानीय सरकारें राजनीतिक और वित्तीय रूप से अधिक सशक्त हैं. भारत में, राज्य सरकारें शहरी स्थानीय सरकारों को अपनी परियोजनाओं के लिए कार्यान्वयन एजेंसियों के रूप में प्रभावी ढंग से मान रही हैं. ”

भारत में, बहुत कम राज्य हैं – उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और मध्य प्रदेश – जिनमें पांच साल की निश्चित अवधि के साथ महापौरों का प्रत्यक्ष चुनाव होता है.

शहरी प्रशासन के क्षेत्र में काम करने वाले मुंबई स्थित गैर-लाभकारी संगठन प्रजा फाउंडेशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मिलिंद म्हस्के ने कहा, “ज्यादातर राज्यों में, मेयर पार्षदों द्वारा चुने जाते हैं और उनका कार्यकाल एक से दो साल तक होता है. इसके अलावा, अधिकांश राज्यों में, महापौरों के पास पर्याप्त वित्तीय और निर्णय लेने की शक्तियां भी नहीं हैं. ”

उदाहरण के लिए, म्हास्के ने कहा, मुंबई में, कार्यकारी विंग (बृहन्मुंबई नगर निगम के) के पास निर्णय लेने की शक्तियां हैं, न कि मेयर के पास. उन्होंने कहा, “केवल केरल में मेयर के लिए आयुक्त (एक नौकरशाह) की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट लिखने का प्रावधान है.”

मई में इंदौर में आयोजित अखिल भारतीय महापौर परिषद की बैठक में भारतीय शहरों के महापौरों ने कार्यकाल में एकरूपता की मांग की थी.

जम्मू नगर निगम (जेएमसी) के मेयर और ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ मेयर्स के महासचिव राजिंदर शर्मा ने दिप्रिंट से कहा, ‘एक साल या ढाई साल का कार्यकाल पर्याप्त नहीं है. नीतियों और योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए पांच साल का समय होना चाहिए.” जेएमसी में 2022 में मेयर का कार्यकाल ढाई साल से बढ़ाकर पांच साल कर दिया गया.

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद- पूजा मेहरोत्रा)


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