देहरादून: हिमाचल प्रदेश के बाद उत्तराखंड सरकार भी जल्द ही बाहरी लोगों को हिमालयी राज्य में जमीन खरीदने से रोकने के लिए कानून ला सकती है. दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार, सीएम पुष्कर सिंह धामी की भू कानून पर गठित एक विशेष समिति ने अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप दे दिया है जो उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में राज्य से बाहर के लोगों द्वारा जमीन की खरीद-फरोख्त पर रोक लगाने की सिफारिश करती है.
हालांकि समिति के सदस्यों ने मसौदा रिपोर्ट के बारे में कोई भी जानकारी साझा करने से इनकार कर दिया. हालांकि, परिचित सूत्रों ने बताया कि मसौदा रिपोर्ट में गैर-मूल निवासियों को उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में जमीन खरीदने से रोकने के लिए कठोर प्रावधान शामिल हैं.
सूत्रों के मुताबिक, मसौदा रिपोर्ट राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में गैर-मूल निवासियों के लिए भूमि स्वामित्व अधिकारों पर पूर्ण प्रतिबंध की समर्थन करती है. यह समिति स्थानीय लोगों के स्वामित्व अधिकारों को बरकरार रखने के लिए पहाड़ी इलाकों में जमीन को गैर-मूल निवासियों को पट्टे पर देने की सिफारिश करेगी.
समिति के अध्यक्ष और राज्य के पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘रिपोर्ट को अंतिम रूप दे दिया गया है. 23 अगस्त को इसे औपचारिक रूप दिया जाएगा और सीएम की ओर से बैठक के लिए समय मिलने के बाद इसे सरकार को सौंप दिया जाएगा. इस महीने के अंत से पहले सीएम को रिपोर्ट सौंप दी जाएगी.’
मसौदा रिपोर्ट में सिफारिशों के बारे में पूछे जाने पर कुमार ने कहा कि कुछ भी बताना रिपोर्ट के प्रोटोकॉल के खिलाफ होगा लेकिन समिति को जो जिम्मेदारी सौंपी गई थी, उसी के अनुरूप काम किया गया है.’
उन्होंने कहा, ‘समिति का मुख्य लक्ष्य राज्य के विकास को प्रभावित किए बिना, राज्य के मूल निवासियों के भूमि स्वामित्व अधिकारों को बरकरार रखना’ था.
कुमार ने कहा कि समिति ने राज्य के मौजूदा भू कानूनों और ‘उत्तराखंड के लोगों के हित में बदलाव की जरूरत’ का गहन अध्ययन करने के बाद मसौदा रिपोर्ट तैयार की.
नाम न छापने की शर्त पर अधिकारियों ने कहा कि मसौदा रिपोर्ट राज्य के चुनिंदा क्षेत्रों में 12.5 एकड़ (1 एकड़ के बराबर 4,047 वर्ग मीटर) में एकल औद्योगिक इकाई के लिए जमीन के साइज को सीमित करने की भी वकालत कर रही है.
यह रिपोर्ट हिमाचल प्रदेश की तरह औद्योगिक उद्देश्यों के लिए भूमि के आवंटन और राज्य में उद्योगों को दी गई सभी पिछली कर रियायतों को खत्म करने के पक्ष में बात करती है. हिमाचल प्रदेश काश्तकारी और भूमि सुधार 1972 के अनुसार, औद्योगिक इकाई स्थापित करने के लिए नगरपालिका से बाहर जमीन खरीदने के इच्छुक किसी भी व्यक्ति को अपेक्षित अधिकारियों से मंजूरी प्राप्त करने की जरूरत होती है. यह मंजूरी तभी दी जाती है जब प्राधिकरण आवेदक की जमीन को इस्तेमाल करने के उसके दावों से संतुष्ट हो जाता है.
मसौदा रिपोर्ट में की गई अन्य महत्वपूर्ण सिफारिशों में जिला मजिस्ट्रेटों के भूमि आवंटन अधिकारों को कम करना और उन प्रावधानों को रद्द करना शामिल है जो कृषि भूमि के इस्तेमाल में बदलाव की अनुमति देते हैं.
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2018 के प्रावधानों को खत्म करना
इसके अलावा मसौदा रिपोर्ट 2018 में पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार के उस प्रावधान को खत्म करने की सिफारिश करती है, जो राज्य से बाहर के लोगों को औद्योगिक उद्देश्यों के लिए स्थानीय खेती की जमीन को खरीदने पर लगे प्रतिबंध को हटाती है.
जुलाई 2021 में धामी के राज्य की बागडोर संभालने से पहले तत्कालीन सीएम रावत के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने 2018 में, राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में इंडस्ट्रियल उद्देश्यों- सिर्फ चिकित्सा, स्वास्थ्य और शैक्षणिक व्यावसायिक गतिविधियों- के लिए जमीन की खरीद पर 12.5 एकड़ की ऊपरी सीमा पर लगे प्रतिबंध को हटाने के लिए कानून में संशोधन किया था.
यह उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम, 1950 की दो धाराओं – 143 (ए) और 154 (2) – को जोड़ते हुए उत्तराखंड संशोधन अधिनियम 2018 के जरिए किया गया.
सूत्रों ने बताया कि अब भूमि कानून समिति की मसौदा रिपोर्ट साफ तौर पर 2018 के संशोधन को खत्म करने की बात करती नजर आ रही है.
मसौदा रिपोर्ट में सिफारिशों के बारे में पूछे जाने पर भाजपा नेता और समिति के एक सदस्य, अजेंद्र अजय ने कहा कि वह ‘रिपोर्ट में क्या है वह इसका खुलासा नहीं कर सकते हैं.’
अजय ने दिप्रिंट को बताया, ‘लेकिन यह सच है कि पहाड़ी इलाकों में जमीन को मालिकों के हितों की हर संभव तरीके से रक्षा की जाएगी. ऐसा उत्तराखंड से बाहर के लोगों के पहाड़ियों पर औने-पौने दामों पर जमीन खरीदने के बड़े मामलों के मद्देनजर भी किया जा रहा है. इसके चलते कई जगहों पर जनसांख्यिकीय बदलाव हुए हैं.’
उन्होंने भी पुष्टि की कि मसौदा रिपोर्ट ‘तैयार है’ और ‘सोमवार को समिति की अंतिम बैठक के बाद सरकार को सौंप दी जाएगी’
अजय उत्तराखंड के उन भाजपा नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने राज्य के पहाड़ी इलाकों में गैर-मूल निवासियों को जमीन खरीदने और बेचने पर रोक लगाने के लिए हिमाचल प्रदेश के समान राज्य-केंद्रित कानून की मांग करते हुए एक अभियान चलाया था. उन्होंने जुलाई 2021 में सीएम धामी को भी लिखा था, जिसमें कहा गया था कि बाहर के लोगों द्वारा खेती की जमीन खरीदने से राज्य के कुछ हिस्सों में ‘जनसांख्यिकीय बदलाव’ हुआ है. भाजपा नेता ने राज्य के चुनिंदा क्षेत्रों में “राज्य के पूरे पहाड़ी क्षेत्र को एक विशेष क्षेत्र घोषित करने और यहां तक कि एक विशेष समुदाय के धार्मिक स्थलों के निर्माण पर प्रतिबंध लगाने, भूमि की बिक्री और खरीद के लिए विशेष प्रावधान करने की मांग की थी.
धामी ने तब राज्य के गृह विभाग और पुलिस महानिदेशक (DGP) को मामले को देखने और एक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था. हालांकि, गृह विभाग के अधिकारियों के अनुसार, कोई औपचारिक रिपोर्ट तैयार नहीं की गई थी और कई बैठकों के दौरान मुख्यमंत्री को फीडबैक दिया गया था.
इस विचार-विमर्श के बाद मुख्यमंत्री धामी ने उत्तराखंड के मौजूदा भू कानूनों का अध्ययन करने और इस संबंध में सिफारिशों के साथ एक रिपोर्ट पेश करने के लिए एक विशेष समिति का गठन किया था.
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