(हरि एम पिल्लई)
कोच्चि, 12 जून (भाषा) क्या लैंगिक रूप से तटस्थ बलात्कार कानून हो सकता है? इस मुद्दे पर एक ओर जहां केरल उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा है कि कानून में संशोधन की जरूरत है तो दूसरी तरफ कानून विशेषज्ञों ने इससे पूरी तरह से असहमति जताई है। कुछ विशेषज्ञों ने इसे ”कानून की त्रुटिपूर्ण समझ” या ”पितृसत्तात्मक सोच का प्रदर्शन” करार दिया है तो कुछ ने कहा कि यह ”बेतुका” है, क्योंकि महिलाएं पुरुषों को अपने वश में नहीं कर सकतीं।
दरअसल, केरल उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा था कि पुरुषों द्वारा कथित रूप से महिलाओं को शादी का झांसा देकर यौन संबंध बनाने के मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन जब महिलाएं ऐसा करें तो क्या होना चाहिए। अदालत ने मौखिक रूप से कहा था कि बलात्कार से संबंधित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 को लैंगिक रूप से तटस्थ होना चाहिए।
न्यायमूर्ति ए मोहम्मद मुश्ताक की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक तलाकशुदा जोड़े के बीच बच्चे के संरक्षण से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए यह चिंता जताई थी। इस मामले में महिला ने आरोप लगाया था कि उसका पूर्व पति बलात्कार के मामले में आरोपी है, लिहाजा वह बच्चे की देखभाल नहीं कर पाएगा।
व्यक्ति पर आरोप है कि उसने शादी का झूठा वादा करके एक महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाए।
अदालत ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि अगर कोई महिला किसी पुरुष को रिश्ते में फंसाती है तो उस पर मुकदमा नहीं चलाया जाता है, लेकिन इसी अपराध के लिए एक पुरुष के खिलाफ मामला चलाया जाता है। इसलिए, धारा 376 लैंगिक रूप से निरपेक्ष होनी चाहिए।
उच्चतम न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करने वाले प्रख्यात वकील जॉन रेबेका ने अदालत के दृष्टिकोण से असहमति जताते हुए कहा, ”न्यायाधीश का सुझाव कानून की त्रुटिपूर्ण समझ पर आधारित है।”
उन्होंने कहा, ”मैं न्यायमूर्ति मुश्ताक से पूरी तरह से असहमत हूं, क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने सुझाव दिया है कि धारा 376 को लैंगिक रूप से तटस्थ बनाकर पुरुषों को झूठे मामले में फंसाने वाली महिलाओं पर मुकदमा चलाया जा सकता है।”
रेबेका ने कहा, ”कृपया याद रखें कि धारा 376 बलात्कार करने वालों पर मुकदमा चलाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली धारा है। यह उन लोगों के लिए नहीं है, जिन्होंने झूठे आरोप लगाए हैं। इसलिए इसे लैंगिक रूप से तटस्थ बनाने से झूठे मामलों का मुद्दा हल नहीं होगा।”
वरिष्ठ अधिवक्ता जाजू बाबू ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि एक सामान्य धारणा है कि यौन अपराध का शिकार कमजोर होता है।
उन्होंने कहा, ”चूंकि, पुरुषों को ताकतवर माना जाता है और महिलाओं को कमजोर, इसलिए यह विचार बेतुका है कि महिला पुरुष को अपने वश में कर सकती है।”
फिल्म निर्माता विजय बाबू के खिलाफ बलात्कार मामले में पीड़िता का प्रतिनिधित्व करने वाली अभिवक्ता एके प्रीता ने भी उच्च न्यायालय के दृष्टिकोण से असहमति जताई और कहा कि बलात्कार के मामलों को लेकर ”अत्यधिक महिला विरोधी प्रवृत्ति” जारी है।
उन्होंने कहा कि हर कोई ऐसे मामलों को ”एक संकीर्ण सोच के साथ” देख रहा है।
प्रीता ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ”उन्हें क्यों लगता है कि महिला पुरुष को फंसाएगी? इस मानसिकता को बदलना चाहिए।”
उन्होंने कहा, “एक हजार मामलों में से कितने झूठे हो सकते हैं? कुछ एक मामलों में ही आरोप झूठे हो सकते हैं। इसलिए, सामान्यीकरण या रूढ़िवादिता संभव नहीं है।”
भाषा
जोहेब पारुल
पारुल
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