मुंबई: महाराष्ट्र में लातूर जिले के चाकुर तालुका में आमतौर पर शांत रहने वाला जरी बुद्रुक गांव बुधवार से ही पुलिस, पत्रकारों और आम लोगों के आने-जाने से गुलजार हो गया है.
इस भीड़ और दिलचस्पी का कारण गांव का एक युवा अमोल शिंदे है, जिसे हर कोई एक “शांत, अच्छे बच्चे” के रूप में याद करते हैं, जो खेल-कूदकर बड़ा हुआ और भारतीय सेना में भर्ती होने के लिए बेताब था. लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो वह पुलिस में भर्ती हो गया.
शिंदे बुधवार को संसद सुरक्षा उल्लंघन के छह आरोपियों में से एक हैं, जिसमें दो व्यक्ति धुएं के डिब्बे के साथ दर्शक दीर्घा से लोकसभा की बेंचों पर कूद गए थे. ऐसा कहा जाता है कि दोनों एक सोशल मीडिया ग्रुप का हिस्सा थे – जिसमें कथित तौर पर शिंदे भी शामिल है, जिसने “महीनों तक घटना की योजना बनाई थी”, जैसा कि दिप्रिंट ने रिपोर्ट किया है.
जबकि दो आरोपी संसद के अंदर थे, शिंदे और एक अन्य आरोपी बाहर रहे, जहां उन्होंने भी गैस कनस्तर खोला और “तानाशाही नहीं चलेगी” जैसे नारे लगाए.
शिंदे समेत छह में से पांच को गिरफ्तार कर लिया गया है, जबकि एक को हिरासत में लिया गया है.
दिल्ली पुलिस ने आरोपियों पर कड़े गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया है. उन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153 (दंगा भड़काने के इरादे से जानबूझकर उकसाना), 120-बी (आपराधिक साजिश), 452 (अतिक्रमण), 186 (लोक सेवक को सार्वजनिक कार्यों के निर्वहन में बाधा डालना), और 353 (लोक सेवकों को कर्तव्य के निर्वहन से रोकने के लिए आपराधिक बल) के तहत भी आरोप लगाए गए हैं.
गुरुवार को दिप्रिंट से बात करते हुए, चाकुर तालुका का प्रतिनिधित्व करने वाले लातूर जिला परिषद के सदस्य रोहिदास वाघमारे ने कहा कि शिंदे भूमिहीन मजदूरों के एक बहुत ही गरीब परिवार से आते हैं.
उनके अनुसार, आरोपी की मां खेतिहर मजदूर के रूप में काम करती है, जबकि उसके पिता गांव के खंडोबा मंदिर के परिसर में सफाई करने वाले मजदूर के रूप में काम करते हैं.
वाघमारे ने कहा, “मैं परिवार को अच्छी तरह से जानता हूं. अमोल बड़ा होने पर हमेशा एक शांत, अच्छा व्यवहार करने वाला बच्चा था. किसी को नहीं पता था कि वह क्या कर रहा था. वह लगभग एक सप्ताह तक गांव में रहता था और फिर दो महीने के लिए गायब हो जाता था. हर कोई जानता था कि वह सेना या पुलिस में भर्ती होने की कोशिश कर रहा था.”
लातूर जिला परिषद सदस्य ने कहा कि शिंदे के तीन भाई-बहन हैं. दो भाई, जिनमें से एक गांव में छोटी बढ़ईगीरी का काम करता है, जबकि दूसरा मुंबई में ऑटोरिक्शा चलाता है, और बहन की शादी हो गई है.
शिंदे के माता-पिता, धनराज और केसरबाई ने बुधवार को टीवी संवाददाताओं से कहा कि उनका बेटा भारतीय सेना में शामिल होने के लिए बहुत मेहनत कर रहा था और वह इस बात से निराश था कि उसने बिना जगह बनाए आयु सीमा पार कर ली है.
केसरबाई ने संवाददाताओं से कहा, “मुझे नहीं पता कि उसने ऐसा क्यों किया [कथित तौर पर] लेकिन वह निराश था. वह कहा करता था कि वह निराश है कि उसे सेना में भर्ती नहीं किया गया, यह एक ऐसी चीज है जो वह वास्तव में करना चाहता था. वह कहता था कि वह देश की सेवा करना चाहता है. वह शिकायत करता था कि उसने इतनी पढ़ाई है, इसका क्या मतलब है? वह कहता था ‘मैंने जो किया है उसमें हमेशा उत्कृष्टता हासिल की है.”
बुधवार का सुरक्षा उल्लंघन 22 साल पहले 13 दिसंबर को पुराने संसद भवन पर हुए हमले की बरसी पर हुआ, जिसमें आठ सुरक्षाकर्मी और एक माली मारे गए थे. पांचों आतंकी भी मारे गए थे. जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के पूर्व आतंकवादी, जिन्होंने 1994 में आत्मसमर्पण कर दिया था, अफजल गुरु को इस घटना में उनकी भूमिका के लिए 2013 में फांसी दे दी गई थी.
बुधवार के सुरक्षा उल्लंघन के बारे में और सवाल यह उठता है कि कुछ ही दिन पहले, यूएस-कनाडा स्थित सिख अलगाववादी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू ने 13 दिसंबर को या उससे पहले भारतीय “संसद” पर हमला करने की धमकी दी थी. जिसके बाद, खुफिया सूत्रों ने कहा कि सुरक्षा बढ़ा दी गई थी.
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‘किसी संगठन के साथ काम नहीं कर रहा था’
पत्रकारों के साथ अपने साक्षात्कार में, शिंदे के माता-पिता ने कहा है कि वे उसकी सटीक शैक्षणिक योग्यता के बारे में निश्चित नहीं हैं, लेकिन उन्होंने उसकी खेल उपलब्धियों पर गर्व से बात की.
केसरबाई ने विस्तार से बताया कि कैसे पुलिस ने उनके घर की एकमात्र अलमारी की तलाशी ली और उनसे संबंधित सभी कागजात जब्त कर लिए. उन्होंने कहा, “दस्तावेज़ उनकी खेल उपलब्धियों से संबंधित थे जहां वह टूर्नामेंट में प्रथम स्थान पर रहे थे.”
गांव में किसी को भी बुधवार के संसद हमले के अन्य आरोपियों के साथ शिंदे के संबंध के बारे में पता नहीं था, और जहां तक उनकी जानकारी है, वह किसी भी संगठन के साथ काम नहीं कर रहा था.
वाघमारे ने कहा, “ये वे परिचित होंगे जो उसने गांव के बाहर अपनी यात्रा के दौरान बनाए होंगे.”
शिंदे के माता-पिता ने कहा कि जब उनका बेटा बारहवीं कक्षा में था, तब से वह विभिन्न भर्ती अभियानों के लिए पूरे महाराष्ट्र और यहां तक कि देश के कुछ अन्य केंद्रों की यात्रा कर रहा था.
शिंदे के पिता ने संवाददाताओं से कहा, “वह [कोविड प्रेरित] लॉकडाउन से पहले असम गया, जिसके बाद वह रत्नागिरी, नासिक, कोल्हापुर, मुंबई, पुणे गया. उसने कहा था कि उसकी इच्छा सेना में जाने की थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, इसलिए अब वह पुलिस भर्ती के लिए प्रयास कर रहा है.”
धनराज और केसरबाई के अनुसार, उन्होंने आखिरी बार अपने बेटे से 9 दिसंबर को बात की थी, जब उसने उन्हें बताया था कि वह एक भर्ती अभियान के लिए दिल्ली जा रहा है.
उन्होंने कहा कि उसने वादा किया था कि वह राष्ट्रीय राजधानी पहुंचने के बाद फोन करेगा. धनराज ने कहा, “उसने अपने मोबाइल की बैटरी डाउन होने की शिकायत की, लेकिन 10 दिसंबर को रात 8 बजे कॉल करने का वादा किया था.”
लेकिन उसके बाद से कभी फोन आया ही नहीं.
उनके बेटे के बारे में खबर तीन दिन बाद ही आई जब लातूर पुलिस शिंदे परिवार के घर पहुंची थी.
(संपादन: अलमिना खातून)
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