मथुरा, 11 मार्च (भाषा) जिले के गांव बरसाना में शुक्रवार को रंगों की बौछारों के बीच प्रसिद्ध लठामार होली हुई जिसमें नन्दगांव से आये हुरियारों पर स्थानीय महिलाओं, जिन्हें हुरियारिन कहा जाता है, जमकर लाठियां बरसाईं। लाठियों से बचने के लिए नाचते हुए हुरियारों ने अपने साथ लाई गईं चमड़े से बनीं ढालों की शरणी ली।
देश-विदेश से आए हजारों-हजार श्रद्धालुओं ने बरसाने की प्रसिद्ध लठामार होली का आनन्द लिया।
ब्रज में बरसाना एवं नन्दगांव में खेली जाने वाली लठामार होली विशेष आकर्षण का केंद्र रही है। रंग और उमंग के इस पर्व पर लाठियां चलती देख एकबारगी सभी का दिल मुंह में अटक सा जाता है। हर कोई पहली बार तो हक्का-बक्का रह जाता है। परंतु, उसे इसका आनन्द भी बहुत आता है।
प्राचीन परम्परा के अनुसार फाल्गुन शुक्ल नवमी के दिन नन्दगांव के हुरियार बरसाना की हुरियारिनों से होली खेलने के लिए पहुंचते हैं। वे पहले दोपहर में बरसाना कस्बे के बाहर स्थित प्रियाकुण्ड पर एकत्र होते हैं जहां बरसानावासी उनका जोरदार स्वागत करते हैं।
उनकी वेषभूषा देखकर ऐसा लगता है कि जैसे वे किसी युद्ध की तैयारी कर वहां पहुंचे हैं। पारम्परिक बगलबंदी व धोती के साथ सिर पर बड़े-बड़े साफे बांधे, कमर में रंग-गुलाल की पोटलियां व हाथों में ढाल लिए हुरियारे पहले से ही बचाव की मुद्रा में नजर आते हैं।
शाम को हुरियारे सबसे पहले तकरीबन 400 सीढ़ियां चढ़कर लगभग 800 फुट ऊॅंचे ब्रह्मांचल पर्वत स्थित राधारानी के मंदिर में पहुंचकर उनसे होली खेलने की अनुमति लेते हैं। समाज गायन (होली के गीत) के पश्चात वे नीचे उतरकर रंगीली गली में पहुंचते हैं। वहां बरसाना की हुरियारिनें पहले ही मोटे-मोटे लट्ठ लिए उनका स्वागत करने के लिए मौजूद होती हैं।
गली में रूपराम कटारा की हवेली के समीप पहुंचकर वे सभी होली के गीत गा-गाकर बरसाना की हुरियारिनों से चुहलबाजी शुरू कर देती हैं। बरसाना की हुरियारिनें भी पहले तो उनको प्रेम से परिपूर्ण गालियां सुनाती हैं लेकिन जब छेड़खानी कुछ ज्यादा होने लगती हैं तो वे फिर हाथों में लिए लट्ठ उन पर बरसाने लगती हैं।
उन पर यह मार तब तक पड़ती रहती है जब तक कि वे हुरियारिनों से हार मान कर साथ लाई गई श्रीकृष्ण के प्रतीक रूपी पताका उन्हें सौंप नहीं देते।
नन्दगांव के हुरियारों की हार के बाद हुरियारिनें अपनी जीत की खुशखबर देने राधारानी के मंदिर की ओर दौड़ी चली जाती हैं और जाते-जाते वे यह भी कहना नहीं भूलतीं, ‘लला, फिर अइयो खेलन होरी’।
हंसी, ठिठोली, गाली, अबीर-गुलाल और लाठियों से खेली जाने वाली इस अनूठी होली को देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु बरसाना पहुंचे।
इस मौके पर जिला प्रशासन की ओर से सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। बरसाना कस्बे में बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया था तथा सीसीटीवी एवं ड्रोन कैमरों के जरिए वरिष्ठ अधिकारी नियंत्रण कक्ष से जानकारी लेते रहे।
अब कल यही लठामार होली नन्दगांव में खेली जाएगी, परंतु वहां होली खेलने वाली हुरियारिनें नन्दगांव की होंगी और हुरियार बरसाना से जाएंगे। बरसाना व नन्दगांव के बीच सदियों से यही प्रथा चली आ रही है। बरसाना राधारानी का गांव है, तो नन्दगांव भगवान कृष्ण का।
भाषा सं
राजकुमार माधव
माधव
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