नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) पर हमला हुए दो दिन बीत गए लेकिन अभी तक कोई गिरफ़्तारी नहीं हुई है और ना ही हिंसा में शामिल किसी व्यक्ति की पहचान हो पाई है.
इसकी वजह ये है कि कैंपस में पर्याप्त संख्या में सीसीटीवी नहीं लगाए गए हैं. यहां सिर्फ दो सीसीटीवी हैं जिनमें एक मेन गेट पर है और दूसरा एडमिनिस्ट्रेशन ब्लॉक पर है. दिल्ली पुलिस अधिकारियों और जेएनयू प्रशासन ने दिप्रिंट से कैंपस में महज़ इन दो कैमरों के होने की पुष्टी की.
इसके अलावा पहले की तुलना में कैंपस में सिक्योरिटी गार्ड्स की संख्या भी कम हो गई है. जानकारी के मुताबिक पिछले साल अक्टूबर में जहां कैंपस में 500 गार्ड्स हुआ करते थे उसकी तुलना में अभी यहां 270 गार्ड्स हैं.
यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार प्रमोद कुमार के मुताबिक एक्ज़िक्यूटिव काउंसिल ने तीन साल पहले पूरे कैंपस में सीसीटीवी लगाने का प्रस्ताव पास किया था. लेकिन छात्रसंघ ने कैमरे नहीं लगने दिए.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक उस दौरान कुछ छात्रों ने निजता पर हमले का आरोप लगाते हुए सीसीटीवी कैमरे उतरवा भी दिए थे.
छात्रसंघ ने 2017 में वीसी को लिखी गई एक चिट्ठी में कहा, ‘पूरे कैंपस पर इस तरह की निगरानी का जेएनयू छात्रसंघ को कोई औचित्य नज़र नहीं आता. जेएनयू एक यूनिवर्सिटी के तौर पर निजता के अधिकार की सुरक्षा करने वाली जगह रहा है. वैसे भी ये जगह आम तौर पर काफी सुरक्षित है.’
कैंपस में रह रहे एक शिक्षक ने कहा, ‘हमलवार कैंपस के छह में से किसी भी गेट से घुस सकते थे. ऊपर से एक को छोड़कर किसी भी गेट पर कैमरा नहीं है, ऐसे में उनके पहचान में नहीं आने का भी डर है. अगर मेन गेट के अलावा किसी और गेट से आकर इकट्ठा हो जाते हैं तो पुलिस वाले उन्हें कैसे पहचान पाएंगे…ये सब कैंपस की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े करता है.’
वहीं, प्रशासन का कहना है कि इस मामले में वो असहाय हो गए क्योंकि जब उन्होंने कैमरे लगाने की कोशिश की तो छात्रों ने इस पहल का विरोध किया. रजिस्ट्रार ने कहा, ‘कैंपस में कैमरे लगाने के प्रस्ताव को तीन साल पहले पास किया गया था. लेकिन छात्रों के विरोध की वजह से ऐसा नहीं हो सका.’
सिक्योरिटी गार्ड्स पर हैं गंभीर सवाल
सीसीटीवी कैमरे के अलावा कैंपस के सिक्योरिटी गार्ड्स पर भी गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं. छात्रों से लेकर शिक्षकों का कहना है कि सिक्योरिटी गार्ड्स ने अपना काम नहीं किया.
कैंपस की सुरक्षा का ज़िम्मा प्रशासन द्वारा हाल ही में रखे गए पूर्व आर्मी जवानों के ऊपर है. नए गार्ड्स वो पूर्व फौजी हैं जो यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा आर्मी वेलफेयर प्लेसमेंट ऑर्गेनाइज़ेशन (एडब्ल्यूपीओ) के जरिए काम पर रखे गए हैं.
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हालांकि, रविवार को हुए हिंसा के दौरान वहां मौजूद छात्रों की मानें तो ये गार्ड्स कैंपस में किसी की भी सुरक्षा करने में पूरी तरह असफल रहे और किसी भी तरह की हिंसा को नहीं रोक पाए. कई छात्रों ने दिप्रिंट से हुई बातचीत में आपबीती बताते हुए कहा कि कैंपस में हो रही हिंसा के दौरान पूरे समय गार्ड्स मूकदर्शक बने खड़े रहे.
ब्रह्मपुत्र हॉस्टल के पास मौजूद एक छात्र ने कहा, ‘रविवार की रात मैंने गार्ड्स से बात की और पूछा कि जब छात्रों पर हमला हो रहा था तो उन्होंने कुछ क्यों नहीं किया, तो जवाब मिला कि उन्हें छात्रों की भिड़ंत के दौरान कुछ भी नहीं करने का आदेश दिया गया है.’
कुछ छात्रों ने ये भी कहा कि असल दिक्कत गार्ड्स की नहीं है बल्कि प्रशासन ने उन्हें जो आदेश दिए हैं वो उसका पालन कर रहे हैं.
जेएनयू से एमए की पढ़ाई कर रहीं ज़ैनब नाम की एक छात्रे ने बताया, ‘वो फौज से रिटायर हुए लोग हैं और इन सब में नहीं पड़ना चाहते. वो तो छात्रों का साथ देना चाहते हैं. लेकिन वीसी ऐसा नहीं चाहते और गार्ड्स बस उनके आदेश का पालन कर रहे हैं.’
जब नए गार्ड्स को लाया गया था तो छात्रों ने शिकायत की थी कि उनकी संख्या पर्याप्त नहीं है और इतनी कम संख्या में ये कैंपस की सुरक्षा नहीं कर पाएंगे. जेएनयूएसयू की प्रेसिडेंट आइशी घोष ने पिछले साल जेएनयू प्रशासन को कैंपस की सुरक्षा में हुए बदलावों के बारे में लिखा था जिसमें गार्ड्स की संख्या घटाए जाने की भी बात थी.
घोष ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा था, ‘जिन नए गार्ड्स को लाया जा रहा है उनकी संख्या इतनी नहीं है कि वो इतने बड़े कैंपस की सुरक्षा कर सकें…रात को हॉस्टल और लाइब्रेरी में गार्ड्स नहीं होते और छात्रों के ऊपर सुरक्षी की कमी का डर झेलना पड़ता है. हमने इस मामले में प्रशासन को एक शिकायत सौंपी थी लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया.’
जेएनयू प्रशासन ने सिक्योरिटी गार्ड्स से जुड़े दिप्रिंट के सवालों का ख़बर पब्लिश होने तक कोई जवाब नहीं दिया.
हालांकि, एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने कहा, ‘यह एक झूठा आरोप है. ऐसा कोई संक्षिप्त विवरण नहीं है. जब वे एक बड़ी भीड़ से घिरे होते हैं, तो गार्ड कुछ नहीं कर सकते. कुछ गार्डों की झड़प के दौरान पिटाई भी की गई.’
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