नई दिल्ली: ये बात अब काफी हद तक तय हो गई है कि नॉवल कोरोनावायरस शरीर के कई अंगों पर असर डालता है.
बृहस्पतिवार को द लांसेट साइकिएट्री जर्नल में छपी स्टडी, जिसमें यूके के अस्पतालों में इलाज किए गए 153 मरीज़ों को शामिल किया था, में पता चला है कि बहुत सी न्यूरोलॉजिकल और साइकिएट्री पेचीदगियां हैं, जिनका संबंध कोविड से हो सकता है.
पत्रिका में अन्य के अलावा, यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल और यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूकासल के रिसर्चर ने लिखा, ‘हमारी जानकारी के अनुसार, कोविड-19 की न्यूरोलॉजिकल और साइकिएट्री पेचीदगियों की, ये पहली देशव्यापी, क्रॉस स्पेशिएलिटी निगरानी स्टडी है’.
रिसर्चर्स के मुताबिक, बदली हुई मानसिक स्थिति दूसरी सबसे आम शिकायत है जिसमें एंसिफेलोपेथी या एंसिफिलाइटिस और प्राइमरी साइकिएट्रिक डाइग्नॉसिस होती हैं, और ये अक्सर नौजवान मरीज़ों में हो रही है. इस स्टडी में क़ीमती और सामयिक डेटा दिया गया है, जिसकी क्लीनिशियंस, रिसर्चर्स, और निवेशकों को तुरंत ज़रूरत होती है, जिससे कि वो कोविड-19 न्यूरोसाइंस रिसर्च और हेल्थ पॉलिसी के लिए, फ़ौरी क़दम उठवा सकते हैं’.
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स्टडी में शामिल सभी मरीज़ बीमारी से बुरी तरह प्रभावित थे, इसलिए रिसर्चर्स ने कहा कि इस स्टडी से कोविड-19 मरीज़ों के प्रभावित होने के कुल अनुपात के बारे में नतीजे निकालना, संभव नहीं है.
उन्होंने कहा कि सार्स-सीओवी-2 वायरस के साइकेट्रिक और न्यूरोलॉजिकल प्रभावों को समझने के लिए, और स्टडी की ज़रूरत है.
यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल से इस स्टडी के लीड ऑथर, डॉ बेनेडिक्ट माइकल ने कहा, ‘काफी ख़बरें आ रहीं थीं कि कोविड-19 इन्फेक्शन और संभावित न्यूरोलॉजिकल और साइकिएट्रिक पेचीदगियों के बीच एक संबंध है, लेकिन अभी तक इसमें दस या उससे भी कम मरीज़ों की स्टडी की गई थी. हमारी एक पहली देशव्यापी स्टडी है जिसमें कोविड-19 से जुड़ी न्यूरोलॉजिकल पेचीदगियों का अध्ययन किया गया है लेकिन ये ध्यान रखना ज़रूरी है कि इसका फोकस उन मामलों पर था, जो इतने गंभीर थे कि उन्हें अस्पताल में भर्ती होने की ज़रूरत थी’.
नतीजे
दिमाग से जुड़ी सबसे आम पेचीदगी जो नज़र आई- वो थी स्ट्रोक, जो 125 में से 77 मरीज़ों में देखी गई (स्टडी में केवल 125 मरीज़ों का ही डेटा उपलब्ध है). स्ट्रोक तब होता है जब ब्रेन के किसी हिस्से की ब्लड सप्लाई रुक जाती है, और अगर लम्बे समय तक इलाज न हो तो ब्रेन के उन हिस्सों के सेल्स मर सकते हैं.
इन 77 में से 57 मरीज़ों में एक आइसेमिक स्ट्रोक हुआ था, जो ब्रेन में ख़ून के थक्के बनने से हुआ था. 9 मरीज़ों को ये स्ट्रोक ब्रेन के अंदर ख़ून बहने से हुआ था, और एक मरीज़ के अंदर ये स्ट्रोक, ब्रेन की ब्लड वेसल्स में सूजन से हुआ था.
रिसर्चर्स ने बताया कि 39 मरीज़ों में, कन्फ्यूज़न और व्यवहार में बदलाव के लक्षण दिखे, जो बदली हुई मानसिक स्थिति को दर्शा रहे थे.
इनमें से 9 मरीज़ों में, ब्रेन सामान्य रूप से काम नहीं कर रहा था, जिसे एंसिफेलोपैथी (जिसमें मोटे रूप से ब्रेन का कोई हिस्सा क्षतिग्रस्त होता है) कहते हैं. सात मरीज़ों में ब्रेन के अंदर सूजन थी, जिसे मेडिकल भाषा में एंसिफेलाइटिस कहते हैं.
बाक़ी 23 मरीज़ जिनकी मानसिक स्थिति बदली हुई थी, उनमें ऐसी साइकेट्रिक अवस्था देखी गई, जो मरीज़ में कोविड-19 के सम्पर्क में आने से पहले नहीं थी.
साइकियाट्रिक डाइग्नॉसिस वाले इन 23 मरीज़ों में, दस मरीज़ ऐसे थे जिनमें नई ऑनसेट साइकॉसिस थी, जबकि 6 मरीज़ों में पागलपन के लक्षण थे. बाक़ी सात मरीज़ों में मूड बदलने के, जिनमें निराशा और बेचैनी शामिल थी.
बदली हुई मानसिक स्थिति वाले 39 मरीज़ों में से, केवल 37 की उम्र का पता था, और उनमें से 18 मरीज़ 60 साल से कम उम्र के थे.
यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंडन से स्टडी की सह-लेखक, प्रोफेसर सारा पेट ने कहा, ‘ये डेटा कोविड-19 के अस्पतालों में भर्ती मरीज़ों में, ब्रेन से जुड़ी पेचीदगियों की झलक दिखाता है. बहुत ही अहम है कि इस वायरस को पूरी तरह समझने के लिए, हम इस जानकारी को लगातार जुटाते रहें’.
उन्होंने आगे कहा, ‘हमें समुदाय के उन लोगों की दिमागी पेचीदगियों को भी समझना होगा जिन्हें कोविड-19 तो है, लेकिन इतने बीमार नहीं हैं कि उन्हें अस्पताल में भर्ती किया जाए. हमारी स्टडी, अस्पताल व कम्युनिटी पर आधारित एक और बड़ी स्टडी की बुनियाद मुहैया कराती है. इन स्टडीज़ से जानने में मदद मिलेगी कि इन दिमागी पेचीदगियों की आवृत्ति क्या है, इनसे प्रभावित होने का सबसे ज़्यादा ख़तरा किसे है और आख़िर में इसका अच्छे से इलाज कैसे हो सकता है’.
जवान मरीज़ों में दिखे साइकियाट्रिक लक्षण
स्टडी ने बताया कि जवान मरीज़ों के एक बड़े प्रतिशत में, साइकियाट्रिक लक्षण देखे गए थे, और रिसर्चर्स ने ये भी कहा कि इसमें और आगे जांच की ज़रूरत है.
उन्होंने लिखा, ‘जवान मरीज़ों में कोविड-19, और नई गंभीर साइकियाट्रिक और न्यूरो-साइकियाट्रिक पेचीदगियों के बीच संबंध की पुष्टि के लिए, आगे चलकर विस्तृत और लम्बे समय तक चलने वाली स्टडीज़ की ज़रूरत होगी. इस संबंध को समझने के लिए, स्टडी में हिस्सा लेने वाले का व्यवस्थित मूल्यांकन करना होगा, होस्ट के इम्यून रेस्पॉन्स का चरित्र बताना होगा, जिनेटिक संबंधों को खोजना होगा, और उपयुक्त कंट्रोल्स (इनमें अस्पतालों में भर्ती कोविड-19 के वो मरीज़ भी शामिल होंगे, जिनमें गंभीर न्यूरो-साइकियाट्रिक लक्षण नहीं होंगे) के साथ उनकी तुलना करनी होगी’.
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स्टडी ने बताया कि हालांकि गंभीर संक्रमण के साथ अस्पताल में भर्ती मरीज़ों में, बदली हुई मानसिक स्थिति आम है, ख़ासकर उनमें जिन्हें इंटेंसिव केयर मैनेजमेंट की ज़रूरत है लेकिन इसका ज़्यादा संबंध बढ़ी उम्र के लोगों के साथ है, और ये दरअस्ल किसी मौजूदा न्यूरो-डीजेनरेटिव बीमारी का लक्षण हो सकता है, जिसे पहले डायग्नोस न किया गया हो, या इसे साथ चल रही अन्य बीमारियों से जोड़ा जा सकता है.
इसका कुछ संबंध अधिक उम्र के मरीज़ों में, दर्द दूर करने वाली दवाओं के इस्तेमाल से भी हो सकता है.
रिसर्चर्स ने लिखा, ‘इस स्टडी में हमने देखा कि जवान मरीज़ों में न्यूरो-साइकियाट्रिक लक्षण ज़्यादा अनुपात में दिखाई दिए, और अधिक उम्र के मरीज़ों में काफी ज़्यादा पेचीदगियां, दिमाग और ख़ून की नसों से जुड़ी थीं. जिनसे सेरीब्रल वैस्कुलेचर के स्वास्थ्य की दशा और उससे जुड़े जोखिम का भी पता चल सकता है, जो अधिक उम्र के मरीज़ों की गंभीर बीमारियों में और ज़्यादा बढ़ जाता है’.