नयी दिल्ली, 29 मई (भाषा) पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद ने जमीन के बदले नौकरी ‘‘घोटाले’’ में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दर्ज प्राथमिकी रद्द करने का बृहस्पतिवार को दिल्ली उच्च न्यायालय से अनुरोध किया।
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल अदालत में पेश हुए और दलील दी कि मामले में जांच और प्राथमिकी के साथ-साथ अन्वेषण और बाद में आरोपपत्र कानूनी रूप से टिक नहीं सकते, क्योंकि सीबीआई भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए के तहत पूर्व अनुमति प्राप्त करने में विफल रही है।
उन्होंने कहा कि किसी लोक सेवक के खिलाफ कोई जांच या अन्वेषण शुरू करने के लिए धारा 17ए के तहत मंजूरी लेना कानूनन आवश्यक है।
सिब्बल ने दलील दी कि निचली अदालत आरोपों पर दलीलें 2 जून को सुनने वाली है और अदालत से इसे टालने का निर्देश देने का आग्रह किया।
उन्होंने कहा कि एक प्रारंभिक क्लोजर रिपोर्ट के बाद भी, 2004 से 2009 के बीच कथित रूप से किए गए अपराधों के लिए सीबीआई द्वारा 2022 में प्राथमिकी दर्ज की गई और निचली अदालत ने संज्ञान लिया और 25 फरवरी को तीन आरोपपत्रों को ‘जोड़’ दिया।
सिब्बल ने कहा, ‘‘अगर आरोप तय हो गया, तो मैं क्या करूंगा? कृपया एक महीने तक इंतजार करें। हम मामले पर बहस करेंगे। आपने (प्राथमिकी दर्ज करने के लिए) 14 साल तक इंतजार किया है। यह दुर्भावनापूर्ण है।’’
न्यायमूर्ति रविंदर डुडेजा ने सिब्बल के साथ-साथ सीबीआई की ओर से अदालत में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता डी पी सिंह की दलीलें सुनीं और कहा कि वह इस पर एक आदेश सुनाएंगे।
सिंह ने याचिका का विरोध किया और कहा कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 19 के तहत आवश्यक मंजूरी प्राप्त की गई है।
धारा 19 किसी अपराध का किसी अदालत द्वारा संज्ञान लेने के लिए सक्षम प्राधिकारी से पूर्व अनुमति लेने की आवश्यकता से संबंधित है।
हालांकि, सिब्बल ने कहा कि धारा 17ए के तहत अनुमति धारा 19 के तहत किसी भी अनुमति से ‘पहले’ लेनी होती है।
सिंह ने कहा कि धारा 17ए के अनिवार्य अनुपालन का मुद्दा अलग-अलग विचारों के कारण उच्चतम न्यायालय की एक बड़ी पीठ के समक्ष लंबित है और किसी भी अनियमितता के लिए किसी भी स्थिति में कार्यवाही पर रोक नहीं लगायी जा सकती।
सिंह ने कहा, ‘‘यह एक ऐसा मामला है, जिसमें मंत्री के करीबियों ने लोक सेवकों को कुछ खास लोगों का चयन करने के लिए कहा और बदले में जमीन दी गई। इसलिए इसे जमीन के बदले नौकरी मामला कहा जाता है। मंत्री अपने पद का दुरुपयोग कर रहे थे।’’
सुनवायी के दौरान, अदालत ने सुझाव दिया कि अपेक्षित पूर्व मंजूरी का कानूनी सवाल भी याचिकाकर्ता द्वारा निचली अदालत के समक्ष उठाया जा सकता है।
सिब्बल ने कहा कि निचली अदालत ने मामले में पहले ही संज्ञान ले लिया है और उसके ‘अपना विचार बदलने’ की संभावना नहीं है।
अधिकारियों ने बताया कि यह मामला 2004 से 2009 के बीच लालू प्रसाद के रेल मंत्री रहने के दौरान मध्य प्रदेश के जबलपुर स्थित भारतीय रेलवे के पश्चिम मध्य जोन में ग्रुप-डी की नियुक्तियों से संबंधित है। अधिकारियों ने बताया कि ये नियुक्तियां कथित तौर पर राजद प्रमुख प्रसाद के परिवार के सदस्यों या सहयोगियों के नाम पर जमीन अंतरित करने के बदले की गई थीं।
प्रसाद और उनकी पत्नी, दो बेटियों, अज्ञात सरकारी अधिकारियों और निजी व्यक्तियों सहित अन्य के खिलाफ 18 मई, 2022 को मामला दर्ज किया गया था।
प्रसाद ने उच्च न्यायालय में अपनी याचिका में प्राथमिकी के साथ-साथ 2022, 2023 और 2024 में दायर तीन आरोपपत्रों और उसके बाद संज्ञान लिये जाने के आदेशों को रद्द करने का अनुरोध किया है।
याचिका में कहा गया है कि प्राथमिकी 2022 में दर्ज की गई, यानी लगभग 14 साल की देरी के बाद, जबकि सक्षम अदालत के समक्ष ‘क्लोजर रिपोर्ट’ दाखिल करने के बाद सीबीआई की प्रारंभिक जांच को बंद कर दिया गया था।
भाषा अमित दिलीप
दिलीप
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.