नई दिल्ली: लद्दाख के लोगों के लिए संवैधानिक सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए — जो लंबे समय से मांग कर रहे थे — केंद्र सरकार ने मंगलवार को नई आरक्षण और डोमिसाइल नीतियों को अधिसूचित किया, जिससे उन्हें सरकारी नौकरियों में 85 प्रतिशत कोटा मिल गया.
वहां तैनात केंद्र सरकार के अधिकारियों सहित अन्य लोगों को यह दिखाना होगा कि वह 31 अक्टूबर, 2019 से लगातार 15 वर्षों से केंद्र शासित प्रदेश में रह रहे हैं, तभी उन्हें “डोमिसाइल्स” माना जाएगा.
पहाड़ी परिषदों में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की गई हैं. इसके अलावा, केंद्र शासित प्रदेश की आधिकारिक भाषाएं अंग्रेज़ी, हिंदी और उर्दू के अलावा भोटी और पुर्ग क्षेत्रीय भाषाएं भी होंगी.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंगलवार को केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख आरक्षण (संशोधन) विनियमन, 2025 को अधिसूचित किया, जो लद्दाख के संदर्भ में जम्मू और कश्मीर आरक्षण अधिनियम, 2004 में संशोधन करता है. यह 2004 के अधिनियम में पहले के खंड को प्रतिस्थापित करता है, जिसमें स्थानीय व्यक्तियों के लिए आरक्षण 50 प्रतिशत निर्धारित किया गया था.
अधिसूचना में कहा गया है, “आरक्षण का कुल प्रतिशत किसी भी मामले में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए आरक्षण को छोड़कर 85 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा.”
राष्ट्रपति मुर्मू द्वारा तीन अन्य विनियमन अधिसूचित किए गए — लद्दाख आधिकारिक भाषा विनियमन, 2025, लद्दाख सिविल सेवा विकेंद्रीकरण और भर्ती (संशोधन) विनियमन, 2025 और लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (संशोधन) विनियमन, 2025.
‘कार्यान्वयन जल्द शुरू होना चाहिए’
दिप्रिंट से बात करते हुए कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के सज्जाद कारगिली, जो केंद्र और लद्दाख नागरिक समाज समूहों के बीच उनकी मांगों पर चर्चा का हिस्सा रहे हैं, ने फैसले का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि अगला कदम पदों को भरने के लिए रिक्तियों को अधिसूचित करना होना चाहिए क्योंकि यूटी में बेरोज़गारी बढ़ रही है जिसे जल्द ही सुलझाने की ज़रूरत है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “हम बढ़ती बेरोज़गारी के बारे में बात कर रहे हैं और यह एक संकट है जिसे जल्द से जल्द निपटने की ज़रूरत है. पिछले पांच सालों से कोई भर्ती नहीं हुई है. अब जिम्मेदारी यूटी प्रशासन के पास है. हमें खुशी है कि यह फैसला लिया गया. हालांकि, यह सिर्फ एक कदम आगे है और ज़मीन पर कार्यान्वयन शुरू होना अभी बाकी है.”
विनियमन को नियंत्रित करने वाले नियमों को अभी अधिसूचित किया जाना है और आरक्षण के तहत आने वाली श्रेणियों को निर्दिष्ट किया जाएगा. 2011 की जनगणना के अनुसार, लद्दाख की लगभग 80 प्रतिशत आबादी (2.74 लाख) आदिवासी है. लद्दाख में सरकारी नौकरियों के लिए कुल आरक्षण अब 95 प्रतिशत हो गया है — जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण शामिल है — जो देश में सबसे अधिक है.
‘राज्य का दर्जा चिंता का विषय’
2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने और जम्मू-कश्मीर (जिसका लद्दाख हिस्सा था) के तत्कालीन राज्य के विभाजन के बाद लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश में बदलने पर शुरू में निवासियों में जश्न का माहौल था क्योंकि उन्होंने हमेशा जम्मू-कश्मीर के नेतृत्व पर अपने क्षेत्र के प्रति भेदभावपूर्ण और अज्ञानी होने का आरोप लगाया था.
निवासियों को बेहतर प्रशासन, संसद में प्रतिनिधित्व, सरकारी धन और संसाधनों तक पहुंच और विकास पर अधिक ध्यान देने की उम्मीद थी, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा लद्दाख को बिना विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश घोषित करने के तुरंत बाद, क्षेत्र में लोग स्वायत्तता, नौकरी, अपनी ज़मीन और संस्कृति की सुरक्षा की मांग करने लगे. पिछले साल जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की भूख हड़ताल में हज़ारों लोग शामिल हुए जिसने व्यापक विरोध प्रदर्शन का रूप ले लिया था.
लद्दाख आधिकारिक भाषा विनियमन, 2025 में बदलावों के बारे में बोलते हुए कारगिली ने कहा कि हालांकि, वे सूची में पुर्गी को शामिल किए जाने से खुश हैं, लेकिन शिना और बल्ती को बाहर रखा गया है. उन्होंने कहा, “यह निराशाजनक है कि शिना और बल्ती जो कि लद्दाख और गिलगित-बाल्तिस्तान में ज़्यादातर बोली जाती हैं, को बाहर रखा गया. उनकी अनदेखी पर गंभीरता से पुनर्विचार किया जाना चाहिए.”
उन्होंने कहा कि नई नीतियां कुछ व्यापक अपेक्षाओं को पूरा करेंगी, लेकिन लद्दाखियों के लिए प्राथमिक चिंता पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना है. “हमारे अपने लोक सेवा आयोग, राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची और लद्दाख और कारगिल के लिए अलग संसदीय सीटों के लिए हमारा संघर्ष जारी रहेगा.”
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