लेह, लद्दाख: पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी फौजों के साथ खूनी झड़प में 20 भारतीय जवानों की शहादत के बाद से सीमा पर जारी तनाव के बीच लद्दाख की शीर्ष प्रशासनिक इकाई के अध्यक्ष ग्याल वांग्याल ने दावा किया है कि संघर्ष प्रभावित केंद्र शासित क्षेत्र में सब कुछ ठीकठाक है.
दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में लेह के प्रशासनिक प्रमुख ने इन आरोपों को भी खारिज कर दिया कि सीमावर्ती गांवों में बढ़ते चीनी दखल को लेकर स्थानीय नेताओं की चेतावनियों को नजरंदाज कर दिया गया.
लद्दाख प्रशासन में भाजपा का सबसे अहम चेहरा माने जाने वाले वांग्याल ने यह कहते हुए गत 19 जून को सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से दिए गए कथित विवादित बयान को दोहराया कि चीन की तरफ से कोई घुसपैठ नहीं हुई है. उन्होंने कहा, हमने कोई क्षेत्र नहीं गंवाया है और भारत केवल चीन पर भरोसा करने की कीमत चुका रहा है.
साथ ही उन्होंने इस समय केंद्र शासित क्षेत्र में कोविड-19 को चीन से ज्यादा बड़ा खतरा बताया. वांग्याल लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद (एलएएचडीसी) लेह के चौथे अध्यक्ष हैं और वह जामयांग त्सेरिंग नामग्याल के 2019 में लोकसभा के लिए निवार्चित होने के बाद इस पद पर चुने गए थे. केंद्र शासित क्षेत्र की सर्वोच्च संस्था एलएएचडीसी-लेह में 24 में से 17 सीटों के साथ भाजपा बहुमत में है.
सीमावर्ती गांव में सब ठीक है
दिप्रिंट से बातचीत में वांग्याल ने बताया कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से लगे सीमावर्ती गांव में कुछ भी गड़बड़ी नहीं हुई है. उन्होंने कहा, ग्रामीण पूरी तरह सुरक्षित है और पहले की तरह अपने कृषि कार्यों में लगे हैं. वे भयभीत नहीं है और सीमावर्ती गांवों में हालात पूरी तरह सामान्य हैं.
हालांकि, लेह में एलएसी से लगे गांवों में रहने वाले कुछ स्थानीय लोगों ने दिप्रिंट को बताया कि मई की शुरुआत से ही यहां पर संचार व्यवस्था ठप पड़ी है.
पूर्व में, गलवान घाटी में हिंसक झड़प के दो दिन बाद, खुद वांग्याल ने भी न्यूज एजेंसी एएनआई को बताया था कि चांगटंग, दुरबुक और न्योमा समेत एलएसी से लगे कई इलाकों से संपर्क पूरी तरह कट गया है और संचार तंत्र न होने से वहां पर स्थानीय पार्षदों तक से कोई बात नहीं हो पा रही है.
हालांकि, मंगलवार को उन्होंने कहा गलवान घाटी एलएसी के आखिरी सीमावर्ती गांव से कम से कम 100 किलोमीटर दूर है, इसलिए चिंता करने की कोई बात नहीं है. मेरे कार्यकारी पार्षद हाल ही में उस क्षेत्र से वापस लौटे हैं और सब कुछ ठीक है. हालात ठीक हैं और मैं स्थानीय नेताओं के लगातार संपर्क में हूं.
चेतावनी नजरअंदाज नहीं की गईं
सीमावर्ती गांवों के कई स्थानीय नेताओं का कहना है कि प्रशासन ने चीनी घुसपैठ के बारे में कई बार आगाह किए जाने के बावजूद कोई ध्यान नहीं दिया. भाजपा के उरगेन चोडोन, जो न्योमा ब्लॉक विकास समिति के अध्यक्ष है ने अप्रैल में चीनी गतिविधियों के बारे में आगाह करने वाली कई फेसबुक पोस्ट दिखाईं.
एलएएचडीसी-लेह के कार्यकारी पार्षद कोंचोन स्टांजिन ने दिप्रिंट को बताया कि सीमावर्ती गांवों में कुछ जगह छिटपुट गतिरोध दिखता रहा है. उन्होंने कहा, चुशुल, चुमार और अन्य जगहों पर पिछले कुछ महीनों में भारतीय गांवों में बैनर या झंडे लगाने की इक्का-दुक्का घटनाएं होती रहे हैं, लेकिन यह सब बेहद सीमित समय के लिए था.
यह पूछे जाने पर कि क्या स्थानीय नेताओं ने सीमा पर चीनी निर्माण के बाबत आगाह किया था, वांग्याल ने इससे साफ इनकार किया.
वांग्याल ने कहा, हमने किसी चेतावनी को नजरअंदाज नहीं किया है. ये नेता और पार्षद न्योमा के रहने वाले हैं जबकि गलवान क्षेत्र दुर्बुक के तहत आता है. मुझे नहीं पता कि वे ऐसा दावा किस आधार पर कर रहे हैं.
उन्होंने आगे कहा, मेरे सूत्र ऐसी किसी घटना का दावा नहीं करते हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा है कि चीन ने हमारे क्षेत्र में कोई कब्जा नहीं किया है और हमें उनकी बात का भरोसा करना चाहिए.
कोई प्रशासनिक चूक नहीं, सिर्फ चीन का धोखा
वांग्याल ने इस बात से भी इनकार किया कि स्थानीय इनपुट, जिससे गलवान घाटी में इतनी जानें जाने से बच सकती थी, के आधार पर कार्रवाई में कोई चूक हुई है.
उन्होंने कहा, अपने जवानों के बचाने के स्तर पर हमसे कोई चूक नहीं हुई है. वास्तविकता यही है कि चीन ने हमें धोखा दिया है. अब इस बात को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या जवान पूरी तरह तैयार थे, क्या वे प्रशिक्षित थे, क्या इस बारे में कोई सूचना थी. लेकिन बिहार बटालियन (रेजीमेंट) पिछले कई सालों से वहां तैनात है और खासी प्रशिक्षित भी है. हमें तो चीन की धोखेबाजी की कीमत चुकानी पड़ी है.
वांग्याल का यह भी कहना था कि कहां गलती हुई पर फोकस करने के बजाय मीडिया को यह देखना चाहिए कि कैसे जवानों ने चीनियों को मुंहतोड़ जवाब दिया. उन्होंने कहा, भारत अब वैसा देश नहीं रहा जैसा 1962 में होता था. मीडिया सिर्फ इस पर बात कर रहा है कि कैसे 20 जवान शहीद हो गए. जबकि दूसरी तरफ चीनी मीडिया तक इसकी जानकारी दे रहा है कि उनके जवान भी मारे गए हैं.
यह पूछे जाने पर कि क्या लद्दाख को प्रशासन और अपने नए सांसद नामग्याल से कोई निराशा हुई है, जिन्होंने करीब एक हफ्ता बीत जाने के बावजूद स्थानीय लोगों के लिए कोई बयान तक जारी नहीं किया है. वांग्याल ने कहा, चाहे मैं बात करूं या हमारे सांसद, यह एक ही बात है. वह केंद्र के साथ हमारे संबंध के लिए सेतु की तरह हैं और कड़ी मेहनत से अपना काम कर रहे हैं.
लद्दाख के लिए आर्थिक पैकेज
अपनी सीमा पर चीन के साथ झड़प के बीच लद्दाख कोविड मामलों में दूसरी लहर की स्थिति से भी जूझ रहा है. आम तौर पर इस समय जब यहां पर्यटन सीजन होता है दुकानें और व्यवसाय बंद होने से स्थानीय अर्थव्यवस्था को गहरी चोट पहुंची है.
उन्होंने आश्वस्त किया, हमने एलजी (उपराज्यपाल आरके माथुर) को पत्र लिखा है और इस कठिन समय को देखते हुए आर्थिक पैकेज की मांग की है ताकि लोगों को कुछ राहत मिल सके. भले ही थोड़ा समय लगे लेकिन पैकेज मिलेगा इसलिए लद्दाख के लोगों को डरने की कोई जरूरत नहीं है.
उन्होंने कहा, चाहे 1962 की जंग हो या 1971 या 1999 की या फिर मौजूदा संघर्ष अथवा कोरोनावायरस लद्दाख के लोग काफी बहादुर हैं और कड़ा मुकाबला करके किसी भी प्रतिकूल स्थिति से निपट लेंगे. लेकिन इस समय चीन के मुकाबले कोरोनावायरस लद्दाख के लिए बड़ा खतरा है.
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