scorecardresearch
Friday, 8 November, 2024
होमदेशछत्तीसगढ़ में नक्सली कैडर का अभाव, लड़ाकों की संख्या घटकर हुई आधी

छत्तीसगढ़ में नक्सली कैडर का अभाव, लड़ाकों की संख्या घटकर हुई आधी

राज्य सरकार और पुलिस के अधिकारियों से प्राप्त जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित 13 जिलों में माओवादियों की पकड़ लगातार कमजोर हो रही है.

Text Size:

छत्तीसगढ़ : एक ओर जहां माओवादी अपने आखिरी बड़े किले को संजोए रखने के लिए हिडमा जैसे खतरनाक नक्सली लड़ाकों को सुरक्षबलों के खिलाफ मिलिट्री हमलों और अन्य गतिविधियों की कमान सौंप रहें हैं. वहीं, दूसरी ओर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के लिए नए लड़ाके नहीं मिलने के कारण प्रदेश में नक्सली कैडर की संख्या अब आधी से भी कम रह गयी है.

राज्य सरकार और पुलिस के अधिकारियों से प्राप्त जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित 13 जिलों में माओवादियों की पकड़ लगातार कमजोर हो रही है. आदिवासियों में घटती लोकप्रियता और स्थानीय युवााओं में माओवाद के खिलाफ बढ़ रही उदासीनता के कारण नक्सली लड़ाकों और उनके मिलिशिया कैडर की संख्याबल पिछले 5-7 सालों में आधी रह गई है.

दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार माओवादी लड़ाकों की संख्या करीब 6000 से घटकर अब करीब 3000 रह गयी है. हालांकि, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के दूसरे घटक या विभाग जैसे किसान मोर्चा, मेडिकल सेवा दल जो सुरक्षाबलों से सीधे मोर्चा नहीं लेते लेकिन स्थानीय ग्रामीणों के साथ पारस्परिक और वैचारिक सबंध निरंतर बनाये रखते हैं, उनकी संख्या करीब 15 से 20 हजार आंकी जा रही है.

आला सुरक्षा अधिकारियों के अनुसार माओवादियों के गिरते कैडर संख्या का मुख्य कारण करीब 80 हज़ार सुरक्षाकर्मियों की तैनाती के साथ-साथ उनके द्वारा की जा रहीं बहुआयामी माओवाद चरमपंथी विरोधी सक्रिय कार्यवाही और युवा आदिवासियों में नक्सली विचारधारा से मोहभंग होना.

प्रदेश के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कहते हैं की विगत 5-7 वर्षो में नक्सली लड़को का संख्याबल आधा हो जाना ही स्थानीय जनता विशेषकर आदिवासियों में नक्सलियों के प्रति घटती लोकप्रियता का परिचायक है. उनका मानना है कि नक्सलियों की संख्या में गिरावट यदि इसी रफ्तार से जारी रही, तो उनकी संगठनात्मक और मिलिशिया क्षमता भी काफी कमजोर हो जाएगी और माओवादी गतिविधियां अपने अंतिम दौर की ओर अग्रसर होती दिखाई देंगी.


यह भी पढ़ें : माओवादी नेता हिडमा ने ली रमन्ना की जगह, सुरक्षा बलों के लिए बढ़ा चैलेंज


दिप्रिंट से बातचीत में बस्तर रेंज के आईजी विवेकानंद सिन्हा कहते हैं ‘नक्सलवाद के पूर्ण खात्मे का पूर्वानुमान लगा पाना तो बहुत ही कठिन होगा. परंतु इसमें कोई शक नहीं कि पिछले 5-7 वर्षो में सशस्‍त्र नक्सली लड़ाकों और मिलिशिया संख्याबल अब करीब 50 प्रतिशत ही रह गया है.’ सिन्हा ने बताया कि छत्तीसगढ़ में माओवाद का चरम काल जो 2010-2015 के बीच था अब समाप्त हो गया है और आने वाले समय में उनके गिरावट में और भी तेजी आएगी.

प्रदेश में सिर्फ 3000 नक्सली लड़ाके

पुलिस विभाग द्वारा दिप्रिंट को दी गयी जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ में अब माओवादी लड़ाकों की संख्या मात्र 3000 के करीब है. इन लड़ाकों में 1000-1200 सशस्त्र कैडर संख्या उन नक्सलियों की हैं जो सुरक्षबलों के खिलाफ सीधी लड़ाई लड़ते हैं और 1800 से 2000 मिलिशिया सदस्य हैं. ये मिलिशिया सदस्य आवश्यकता पड़ने पर सशस्त्र लड़ाकों की जगह लेने को तैयार रहते हुए सुरक्षबलों के खिलाफ हमलों में उनकी पूरी मदद करते हैं. नक्सल प्रभावित जिलों में सबसे अधिक 700 सशस्त्र एवं मिलिशिया नक्सली लड़ाके सुकमा जिले में सक्रिय हैं. करीब 600 बीजापुर जिले में, 600 नारायणपुर में और 200-250 लड़ाके दंतेवाड़ा जिले में सक्रिय हैं, अन्य जिले जहां नक्सली मिलिशिया और सशस्त्र लड़ाके सक्रिय हैं. उनमें बस्तर, कांकेर, कोंडागांव, राजनांदगांव, कबीरधाम, धमतरी, गरियाबंद, महासमुंद एवं बलरामपुर प्रमुख हैं.

फोटो : पृथ्वीराज सिंह/ दिप्रिंट

हमलों में आई भारी गिरावट, हजारों ने किया आत्मसमर्पण

माओवादियों की अपने गढ़ में कम होती पकड़ का एक बड़ा सबूत जो अधिकारियों की बात की पुष्टि भी करता है, वह पिछले तीन वर्षों के दौरान नक्सली हमलों में आयी भारी गिरावट है. सुरक्षबलों की भारी मात्रा में तैनाती और नक्सल विरोधी आक्रामक रुख से माओवादियों के गढ़ में शिकंजा निरंतर कसता जा रहा है. यही कारण है कि विगत तीन वर्षों में नक्सली हमलों में 44 प्रतिशत में भारी कमी आई है. वर्ष 2017 में 250 नक्सली हमलों के मुकाबले 2019 में 140 हमले हुए. वहीं दूसरी ओर इन तीन सालों में करीब 250 नक्सली सुरक्षबलों के हाथो मारे गए, 2500 से ज्यादा गिरफ्तार किये गए और 1100 से अधिक माओवादियों ने सुरक्षबलों के सामने आत्मसमर्पण किया.


यह भी पढ़ें : मुखबिरी का आरोप लगा गांव वालों को मार रहे हैं नक्सली, प्रशासन बोला, माओवादियों में बढ़ रही है हताशा


वरिष्ठ नक्सली नेताओं की मृत्यु, वैचारिक अभाव

देश में माओवादियों का आखिरी गढ़ माने जाने वाले छत्तीसगढ़ में कम होती लोकप्रियता और ताकत का एक मुख्य कारण सीपीआई(एम) के कुछ बड़े नक्सली नेताओं की मौत के कारण आया वैचारिक खालीपन भी है. सुरक्षबलों का कहना है दिसंबर 2019 में हुई एक करोड़ से भी ज्यादा का वांछित इनामी नक्सली रमन्ना की मौत से पहले सुरक्षबलों द्वारा मुठभेड़ में विगत पांच वर्षों में कई बड़े माओवादी नेता या तो मारे गए या गिरफ्तार कर लिए गए या फिर उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया. जिसकी वजह से कैडर में वैचारिक प्रचार प्रसार को नेतृत्व देने के लिए रिसोर्स पर्सन का लगातार अभाव हो रहा है.

इस बात की पुष्टि सिन्हा भी करतें हैं. सिन्हा ने बताया कि स्थानीय नागरिकों का माओवादी विचारधारा से धीरे-धीर पूरी तरह मोहभंग हो रहा है और वे अब उनके बहकावें में नही आ रहें हैं. वहीं दूसरी तरफ वे सुरक्षबलों और सरकार द्वारा चलाई जाने वाली योजनाओं का लाभ लेकर अपने विकास के नए कार्यक्रम तैयार करने में लगे हैं.

share & View comments