कोलकाता: इन्हें ‘कोरोना’ कहकर पुकारा जाता है, कोई अब इनके रेस्ट्रॉन्ट में इतना नहीं आता और ऐसा लगता है कि इन्होंने एक अनकहा समझौता कर लिया है कि ये ज़्यादातर लोगों से दूर रहेंगे.
कई हफ्तों से ऐसा ही हो गया है कोलकाता के चाइनाटाउन में रहने वाले 5,000 लोगों का जीवन जो पूरे देश में चीनियों की एकमात्र बस्ती है.
शुरू में आकर बसने वाले इस समुदाय के लोग क़रीब 70 साल पहले आए थे. लेकिन उसके बाद से इनकी तीन पीढ़ियां, यहीं पैदा हुई और पली बढ़ी हैं.
फिर भी दस दिन पहले भारत और चीन के बीच गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद से, इस समुदाय के लोग अधिकतर घरों में ही बंद रहे हैं, इस परेशानी और डर से कि लोगों के ग़ुस्से का रुख़ उनकी तरफ मुड़ सकता है.
65 वर्षीय चाइनाटाउन वासी ली याओ सिएन, जो दो टैनरीज़ चलाते हैं, ने कहा, ‘हम यहां पर वोटर हैं और हम में से ज़्यादातर लोगों की पैदाइश और परवरिश यहीं हुई है. लेकिन कुछ जाहिल बदमाश लोग हैं, जो इतिहास और कल्चर से वाक़िफ नहीं हैं…वो हमें गालियां देते हैं. हमें देखकर वो नारे लगाते हैं, और हमें वापस जाने को कहते हैं.’
एक रेस्टोरेंट मालिक फ्रेडी लियाओ ने फेसबुक पर पोस्ट किया, ‘भारतीय-चीनी लोग कई पीढ़ियों से भारत में रह रहे हैं, और हम भारत के लोगों के साथ बहुत जुड़े हुए हैं.’ उन्होंने लोगों से अपील की कि उनके साथ अलग बर्ताव न करें.
कोलकाता के बाहर पूर्व में स्थित बस्ती चाइनाटाउन, शुद्ध चीनी व्यंजनों के लिए जानी जाती है और किसी समय ये पूर्वी भारत में चीन की चमड़े से बनी चीज़ों का एक बड़ा केंद्र था.
इस इलाक़े में अब 40 से अधिक चीनी रेस्ट्रॉन्ट्स, खाने की बहुत सी छोटी छोटी जगहें चीन की विशेष सॉस के कारखाने मौजूद हैं, जबकि एक्सक्लूसिव लेदर प्रोसेसिंग यूनिट्स, जिनमें क़रीब 350 टैनरीज़ थीं. उन्हें यहां से हटाकर साउथ 24 परगना डिस्ट्रिक्ट के बंताला एरिया में कैलकटा लैदर कॉम्प्लेक्स (सीएलसी) भेज दिया गया है.
टौनरीज़ मालिकों का ये भी दावा था कि कस्टम्स विभाग चीनी माल के शिपमेंट को भी रोक रहा है. हालांकि अधिकारियों ने इस दावे को ख़ारिज कर दिया.
‘हम भी भारतीय हैं’
समुदाय के सदस्यों का कहना है कि अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 का असर बहुत विनाशकारी रहा है. लेकिन भारत-चीन के बीच तनाव उनके लिए ‘अपमान और असुरक्षा’ लेकर आया है.
ली, जिनकी टैनरी इकाइयां सीएलसी में स्थित हैं, ने कहा, ‘हम इतना असुरक्षित महसूस कर रहे हैं कि हमने चाइनाटाउन से बाहर निकलना बंद कर दिया है. हम ज़्यादा समय अंदर ही रहते हैं. हाल ही की घटनाएं हमारे लिए अपमान लेकर आई हैं. हम भी उतने ही भारतीय हैं, जितने आप हैं… ये ज़मीन हमारी भी है. हम कहां वापस जाएं?’
उन्होंने कहा कि 2017 के डोकलम गतिरोध के दौरान, समुदाय को कोई विरोध देखने को नहीं मिला. असल में, केवल 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान ऐसा हुआ, कि भारतीय चीनियों को कोलकाता से ले जाकर, राजस्थान के नज़रबंद शिविरों में रखा गया था. ली ने बताया, उस समय मैं बहुत छोटा था और मैंने अपने माता-पिता से वो कहानियां सुनी हैं.’
देशभर से हज़ारों की संख्या में भारतीय चीनियों को ले जाकर, राजस्थान के देवली नज़रबंदी शिविर में रखा गया था, लेकिन उनसे अधिकतर कोलकाता से थे.
एक ऐसे शहर में जिसे अपना खाना बेहद पसंद है, कोरोनावायरस ने खाने के बहुत से लोकप्रिय अड्डों को ख़ामोश कर दिया है. आमतौर पर हलचल से भरा चाइनाटाउ, अब किसी भूतिया शहर जैसा लगता है.
इसका प्रतिष्ठित रेस्ट्रॉन्ट बीजिंग अभी भी बंद है, हालांकि सड़क के उस पार, गोल्डन एम्पायर चार दिन पहले खुल गया है. लेकिन इसका धंधा अभी मुश्किल से ही शुरू हुआ है.
इसके मालिक हेनरी हू का कहना था, ‘हमने खोल लिया है, लेकिन कोई ग्राहक नहीं हैं. हम अपने नियमित ग्राहकों को कॉल करके बता रहे हैं, कि हम खुल गए हैं और तमाम सेफ्टी प्रोटोकोल्स रख रहे हैं. लेकिन अब उनमें से बहुत लोग कहते हैं, कि उन्हें अब रेस्ट्रॉन्ट से ही इनफेक्शन का डर लगता है, क्योंकि हम चीनी हैं.’
हेनरी का परिवार कोलकाता में सबसे पहले बसने वालों में था. उन्होंने बताया, ‘मैं और मेरे पिता, दोनों यहीं पैदा हुए थे. मेरे दादा 1947 से पहले यहां आए थे. हम राष्ट्रीयता से भारतीय हैं, बस दिखने में चीनी हैं. लेकिन हमारे बच्चे अब बाहर नहीं जा सकते, वो सिर्फ एक लोकल पार्क में जा सकते हैं, जो केवल चीनी लोगों के लिए है.’
उनमें असुरक्षा की भावना तब बढ़ गई, जब सीनियर बीजेपी नेताओं और मंत्रियों ने लोगों से सभी चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की अपील की, जिसमें खाना भी शामिल था.
फ्रेडी लियाओ ने अपने फेसबुक अकाउंट पर पोस्ट किया, ‘भारत-चीन के बीच लद्दाख़ में झड़प के बाद से, भारत में चीनी भोजन का बहिष्कार करने के कुछ लोगों के बयान…बहुत तकलीफ देते हैं. जो लोग चीनी रेस्ट्रॉन्ट्स के मालिक हैं या जो भारत में रहने वाले भारतीय-चीनी हैं, उनका इन सियासी कामों से कोई ताल्लुक़ नहीं है.’ फ्रेडी गोल्डन जॉय के मालिक हैं, जो कोलकाता का एक और लोकप्रिय चीनी रेस्ट्रॉन्ट हैं.
उन्होंने कहा कि महामारी फैलने पर उनके समुदाय ने ग़रीबों की मदद के लिए, 6,000 से अधिक परिवारों को भोजन बांटा किया था. उन्होंने बताया कि भारतीय-चीनी लोग- जिन्हें यही कहलाया जाना पसंद है- के पास आधार कार्ड्स, पैन कार्ड्स, वोटर कार्ड्स आदि सब हैं. उन्होंने दोहराया कि संक्षेप में कहें, तो हमारा घर भारत है.
इस इलाक़े में विरोध प्रदर्शन और चीनी चीज़ों को जलाने की कोशिशें हुईं, लेकिन समुदाय की गुहार पर तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने बीच में पड़कर स्थिति को संभाल लिया.
एक तृणमूल काउंसिलर फैज़ ख़ान ने कहा, ‘वो लोग असुरक्षा और डर का शिकार हैं. उन्होंने हमारे पास आकर बताया, कि वो किन हालात से गुज़र रहे हैं. हमने उनके इलाक़े में कुछ जागरूकता अभियान चलाए. हमने स्थानीय पुलिस स्टेशनों को भी सूचित किया और कुछ मोहल्लों में पुलिसकर्मी तैनात भी कराए. हमारे यहां कम से कम 4,000 से 5,000 चीनी लोग हैं, जिनके नाम वोटर लिस्ट में हैं. इसलिए वो भारतीय हैं.’
लेकिन एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि उन्हें अभद्र भाषा या किसी और तरह की कोई औपचारिक शिकायत नहीं मिली, लेकिन चीज़ों पर नज़र रखने के लिए इलाक़े के कुछ हिस्सों में पुलिसकर्मी तैनात कर दिए गए थे.
‘चीनी वस्तुएं रोक रहा है कस्टम विभाग’
चाइनाटाउन के निवासियों का आरोप है, कि दोनों देशों के बीच तनाव ने व्यवसाय़ों को दूसरी तरह से भी प्रभावित किया है- सप्लाई चेन और माल की आवाजाही को बाधित करके. कोलकाता का टैनरी उधोग, जो ज़्यादातर चीनियों के हाथ में है, केमिकल सप्लाई और दूसरे बहुत से सामान के लिए चीन पर बहुत निर्भर है.
टैनरी एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सचिव इमरान ख़ान ने दावा किया, ‘चीनी चीज़ों के बहिष्कार की अपील के चलते, आयातित माल फंस गया है और कोलकाता एयरपोर्ट पर उसे क्लियर नहीं किया जा रहा है. ऐसा लगता है कि कस्टम्स की ओर से कार्गों के रखवालों को, जिनमें पोर्ट टर्मिनल्स और हवाई अड्डे शामिल हैं. अंदरूनी निर्देश है कि चीन से आने वाले सभी माल को, रोक कर रखा जाए.’
लेकिन एक सीनियर कस्टम अधिकारी ने कहा, ‘एक ख़ुफिया जानकारी है कि कार्गो के ज़रिए नशीले पदार्थों की तस्करी हो रही है. इसलिए आयात किए गए सभी सामान की सौ प्रतिशत जांच की जाएगी. जब तक कस्टम सभी सामान को चेक नहीं कर लेता, जब तक कोई माल रिलीज़ नहीं किया जाएगा.’
ख़ान ने कहा कि अगर क्रोमियम, लैदर फिटिंग्स और एक्सेसरीज़ जैसी चीनी वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ा दिया गया, तो भारत में चमड़े की टैनिंग और इससे बनी वस्तुओं की उत्पादन लागत भी बढ़ जाएगी.
एक 50 वर्षीय टैनरी मालिक चिए वू ने कहा, ‘हमें हमेशा लगता था कि कोलकाता में हम सुरक्षित हैं. ये शहर दिल्ली या मुम्बई की तरह नहीं है. लेकिन यहां हमारा कारोबार प्रभावित हो रहा है. हमारा कार्गो कई दिन से अटका हुआ है. उस पर सरकार की ओर से कुछ नहीं कहा जा रहा. कुछ चीज़ें हैं जो हमें चीन से मंगानी पड़ती हैं क्योंकि वो यहां नहीं बनतीं. पिछली तीन पुश्तों से हम कोलकाता में बसे हुए हैं. लेकिन अब तो हमसे हमारी नागरिकता ही तक़रीबन छीनी जा रही है.’
एक सीनियर कस्टम अधिकारी ने कहा कि चीनी कार्गों को रोकने का कोई आदेश नहीं है, लेकिन महामारी के चलते स्टाफ कम होने की वजह से, सामान्यत: देरी हो रही है.
नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के निदेशक कौशिक भट्टाचार्जी ने भी ऐसे किसी आदेश से इनकार किया.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं ऐसे किसी घटनाक्रम से वाक़िफ नहीं हूं. मैंने मीडिया में पढ़ा है. लेकिन कोई मेरे पास शिकायत लेकर या कार्गो छुड़ाने का अनुरोध लेकर नहीं आया है.’
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