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Saturday, 21 December, 2024
होमदेशबंगाल ने ‘अभी कोविड ने पीक को नहीं छुआ’ लेकिन कोलकाता के अस्पतालों में पहले से ही ख़त्म हो रहे हैं बिस्तर

बंगाल ने ‘अभी कोविड ने पीक को नहीं छुआ’ लेकिन कोलकाता के अस्पतालों में पहले से ही ख़त्म हो रहे हैं बिस्तर

स्टेट डेटाबेस लगभग 500 खाली बिस्तर दिखा रहा है, लेकिन कुछ अस्पतालों की जांच से पता चलता है कि ये संख्या पूरी तरह विश्वसनीय नहीं हैं. ये आंकड़े ऐसे समय में आ रहे हैं जब विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि बंगाल में कोविड की लहर अभी चरम पर आनी है.

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कोलकाता: 16 मई की सुबह, जो पिछले साल महामारी शुरू होने के बाद, बंगाल के दूसरे मुकम्मल लॉकडाउन का पहला दिन था, पश्चिम बंगाल कोविड प्रबंधन का डेटाबेस दिखा रहा था, कि कोलकाता महानगर क्षेत्र के अस्पतालों में, काफी बिस्तर उपलब्ध थे: 230 निजी अस्पतालों में, और 228 सरकारी सुविधाओं में.

लेकिन, जब दिप्रिंट ने उनमें से छह अस्पतालों को कॉल किया- चार निजी और दो सरकारी- तो एक निजी सुविधा के अलावा, सब ने कह दिया कि वो भरे हुए हैं, और उनके यहां मरीज़ इंतज़ार में हैं. ऐसा लगता था कि डेटाबेस में उपलब्ध दिख रहे बिस्तर, तुरंत ही ले लिए गए थे.

प्रदेश स्वास्थ्य विभाग के डेटाबेस के अनुसार, राज्य में कुल 507 कोविड अस्पताल हैं, जिनमें सरकारी सुविधाएं, सरकार द्वारा लिए गए निजी अस्पताल, निजी अस्पताल, अस्पतालों द्वारा संचालित सेटेलाइट सुविधाएं, और सुरक्षित आश्रय (आइसोलेशन केंद्र) शामिल हैं. कुल मिलाकर इन सुविधाओं में 33,257 बिस्तर हैं, जिनमें बिना ऑक्सीजन सहायता के सामान्य बेड्स, ऑक्सीजन बेड्स, हाई-डिपेंडेंसी यूनिट (एचडीयू) बेड्स, क्रिटिकल केयर यूनिट (सीसीयू) बेड्स, वेंटिलेटर्स के साथ सीसीयू बेड्स, और सुरक्षित आश्रयों में सामान्य आइसोलेशन बेड्स, कामचलाऊ सुविधाएं, तथा सेटेलाइट केंद्र शामिल हैं.

लेकिन, मांग ज़्यादातर ऑक्सीजन बेड्स की है, जो ज़्यादातर सरकारी और निजी अस्पतालों में उपलब्ध हैं. राज्य के आंकड़ों से पता चलता है, कि सरकारी अस्पतालों में कोई सीसीयू बेड्स ख़ाली नहीं हैं, जबकि निजी अस्पतालों में, दो दर्जन से ज़्यादा सीसीयू बेड्स नहीं बचे हैं.

पश्चिम बंगाल जो अभी एक आठ चरणों के चुनाव से गुज़रा है, जिसमें बड़ी प्रचार रैलियों में कोविड प्रोटोकोल्स की धज्जियां उड़ाईं गईं, अब संक्रमण की एक ऐसी उछाल से जूझ रहा है, जिससे निपटने में उसके स्वास्थ्य ढांचे के पसीने छूट रहे हैं.

15 मई तक, राज्य में 1,31,948 सक्रिय मामले दर्ज थे, और हर रोज़ औसतन 20,000 नए मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें 19,000 मरीज़ ठीक हो रहे हैं, और क़रीब 140 मौतें हो रही हैं.

राज्य में रोज़ाना तथा कुल एक्टिव मामलों के 40 प्रतिशत से अधिक, अकेले कोलकाता और पास के उत्तरी 24 परगना ज़िले से आते हैं. 15 मई को कोलकाता में 3,951 नए मामले (शहर) दर्ज हुए, जिससे इसके कुल एक्टिव मामलों की संख्या 26,307 पहुंच गई. उसी दिन नॉर्थ परगना में कुल 26,047 एक्टिव मामले थे.

अभी तक, 10 करोड़ की आबादी में, राज्य में 37,14,322 लोगों का टीकाकरण पूरा किया जा चुका है, जबकि 88,46,834 को वैक्सीन का पहला डोज़ मिल चुका है.

इस सप्ताह के आंकड़े कुछ उत्साहजनक रहे, जिसका कारण शायद वो आंशिक लॉकडाउन था, जो ममता सरकार ने 5 मई के बाद से लगाया हुआ था. तृणमूल सरकार ने मॉल्स बंद कर दिए, और दुकानों तथा शॉपिंग परिसरों के संचालन के समय सीमित कर दिए, और साथ ही जिम्स, पूल्स, पार्लर्स, रेस्ट्रॉन्ट्स और थिएटर्स भी बंद कर दिए.

राज्य की सकारात्मकता दर भी कम होकर, शनिवार को 29.40 प्रतिशत पर आ गई, जिसका औसत पिछले सप्ताह 33 प्रतिशत था. इसके अलावा, शनिवार को सूबे में 66,000 टेस्ट किए गए, जिनकी संख्या बुधवार को 58,000 थी.

लेकिन, ज़मीनी स्तर पर चिंता व्याप्त है, क्योंकि न सिर्फ मरीज़ों को अस्पतालों में बिस्तर पाने में जूझना पड़ रहा है, बल्कि ऑक्सीजन की कमी की ख़बरें भी आ रही हैं.

जिन एक्सपर्ट्स को डर है कि बंगाल का कोविड पीक अभी आना बाक़ी है, उनका कहना है कि राज्य एक नाज़ुक दौर में दाख़िल हो गया है, चूंकि अस्पताल भर गए हैं, और उन्होंने टेस्टिंग क्षमता को बढ़ाए जाने की भी बात कही है.

प्रमुख सचिव स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, एन एस निगम ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमने अब दो सप्ताह के लिए लॉकडाउन लगा दिया है. इस दौरान हम अस्पतालों में, बिस्तर और ऑक्सीजन की क्षमता और बढ़ाएंगे.


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अस्पतालों में बिस्तर की तलाश एक बुरा सपना

एक अधिकारी ने, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, लोगों को आश्वासन देना चाहा, कि अस्पतालों में बिस्तर और ऑक्सीजन सप्लाई की उपलब्धता, बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी, 10 मई को मीडिया को मुख़ातिब करते हुए, इसी तरह के आश्वासन दिए थे.

लेकिन कुछ लोगों को अस्पताल में भर्ती होने के लिए, अभी भी पापड़ बेलने पड़ते हैं. उत्तरी कोलकाता के एक 55 वर्षीय मरीज़ अमिताभ पॉल ने, अपनी व्यथा दिप्रिंट को सुनाई. ‘मेरी मां को पांच दिन से बुख़ार आ रहा था, और अचानक उनकी ऑक्सीजन गिरकर, 80 से नीचे आने लगी. हम एक बिस्तर जुटाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन हर रोज़ नाकामी हाथ लगती थी. बाद में हम घर के लिए एक ऑक्सीजन सिलिंडर ख़रीदने में कामयाब हो गए, लेकिन उसे ठीक से लगा नहीं सके. उस रात किसी तरह हमें एक निजी अस्पताल में एक बेड मिल गया…लेकिन अगले दिन वो गुज़र गईं. डॉक्टरों ने कहा कि हम देर से पहुंचे, लेकिन हम जानते हैं कि हमने उन्हें बचाने की कितनी कोशिश की’, ये कहते हुए वो रो पड़े. उनकी मां की मंगलवार को मौत हो गई.

रतन डे अपनी बीमार पत्नी के साथ, ऑक्सीजन बेड के लिए नादिया के बेथुआदाहरी से कोलकाता से आए थे. चार अस्पतालों ने उन्हें भर्ती से इनकार कर दिया- कल्याणी में, बारासात में, और कोलकाता में दो अन्य. उनकी 44 वर्षीय पत्नी का ऑक्सीजन स्तर 67 और 70 के बीच ऊपर नीचे हो रहा था. डे आख़िरकार उन्हें दक्षिणी कोलकाता में, बेहाला के एक छोटे से नर्सिंग होम में भर्ती कराने में कामयाब हो गए.

डे ने बताया, ‘उस नर्सिंग होम में कोई आईसीयू सुविधा नहीं थी, और मेरी पत्नी को आईसीयू सपोर्ट चाहिए थी. मेरा बेटा एक आईसीयू बेड के लिए, इधर-उधर भागता रहा. दो दिन मुसीबत भरने के बाद, हमने क़रीब 50,000 रुपए एडवांस देकर, उनके लिए एक बेड बुक किया, और उन्हें वहां शिफ्ट किया’. पत्नी की हालत अभी भी नाज़ुक है.

संक्रमण की मौजूदा संख्या को ‘बहुत अधिक’ बताते हुए, कलकत्ता मेडिकल कॉलेज व अस्पताल के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने कहा, कि ‘दूसरी लहर पिछले साल की लहर के मुक़ाबले कहीं अधिक संक्रामक’ साबित हुई है. उन्होंने आगे कहा, ‘बिस्तरों की भारी कमी है, लेकिन हम लगातार उनकी संख्या बढ़ा रहे हैं’.

पश्चिम बंगाल स्वास्थ्य विभाग के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, कि ‘सरकार ने अस्पतालों में बिस्तरों के बेहतर इस्तेमाल के लिए, दिशा निर्देश जारी किए हैं’.

अधिकारी ने आगे कहा, ‘पांच दिन भर्ती रहने के बाद, अगर मरीज़ को लगातार तीन दिन बुख़ार नहीं रहता, और रूम टेम्प्रेचर पर उसका ऑक्सीजन लेवल 95 से ऊपर रहता है, तो मरीज़ को छुट्टी देकर बिस्तर ख़ाली करा लेना चाहिए’. उन्होंने ये भी कहा, ‘पिछले साल के वायरस के मुक़ाबले, इस बार वायरस का स्ट्रेन कहीं ज़्यादा ज़हरीला है. ये बेहद संक्रामक है. हमने बिस्तरों की संख्या बढ़ा दी है, और उसे अभी भी चरणबद्ध तरीक़े से और बढ़ा रहे हैं’.

राज्य में ऑक्सीजन की स्थिति के बारे में अधिकारी ने कहा, कि ये समस्या उतनी उपलब्धता की नहीं है, जितनी ढुलाई की है.

अधिकारी ने आगे कहा, ‘हम राज्य में पैदा होने वाली ऑक्सीजन का केवल 10 प्रतिशत इस्तेमाल करते हैं. ऑक्सीजन का उत्पादन कभी कोई समस्या नहीं है, समस्या है उसे सिलिंडर्स में ले जाना, और उन्हें भरना. हम इस इनफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ा रहे हैं…हमने अब स्वास्थ्य भवन (स्वास्थ्य विभाग मुख्यालय) में एक ऑक्सीजन सेल बना दिया है. और साथ ही विशेषज्ञों की एक निगरानी टीम बना दी है, जो अस्पतालों में ऑक्सीजन के इलाज पर नज़र रखेगी’.


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कम टेस्टिंग

विशेषज्ञों ने राज्य के स्वास्थ्य ढांचे की कमियों, तथा टेस्टिंग सुविधाओं के आभाव की ओर भी, ध्यान आकर्षित किया है.

मेडिका सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल के एक सीनियर डॉक्टर, कुनाल सरकार ने कहा, ‘टेस्ट अभी भी कम हो रहे हैं. जिस राज्य में हाल ही में एक महीने लंबा चुनाव हुआ है, और जहां 30 प्रतिशत सकारात्मकता दर हो, वहां कम टेस्टिंग स्वीकार्य नहीं है.

उन्होंने आगे कहा, ‘सरकार को इसे निजी क्षेत्र के लिए खोल देना चाहिए था, जिससे हर कोई अपना टेस्ट करा सकता था’. फिलहाल, केवल इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा स्वीकृत निजी लैब्स ही, कोविड-19 की जांच कर सकती हैं.

सावधान करते हुए कि बंगाल को अभी, अपने कोविड पीक पर पहुंचना बाक़ी है, सरकार ने आगे कहा, ‘अगर हम मुम्बई और महाराष्ट्र को स्टडी करें, और उसी राह पर चलें तो हमें मई के अंत, या जून के शुरू में पीक पर पहुंच जाना चाहिए. लेकिन हमारे अस्पताल बहुत दबाव में हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘सरकार को निजी व सरकारी संसाधनों को साथ लेकर, ज़िलों में कोविड बिस्तरों के क्लस्टर्स बना देने चाहिएं थे’.

10 मई को, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि कोविड में उछाल से निपटने के लिए, राज्य ने बहुत सारे क़दम उठाए थे. साथ ही उन्होंने मुकम्मल लॉकडाउन से भी इनकार किया, क्योंकि इससे संभावित रूप से लोगों की जीविका प्रभावित होती है.

अपनी कैबिनेट की पहली बैठक के बाद, पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘हमने सख़्त क़दम उठाए हैं…राज्य के अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या (कोविड मरीज़ों के लिए) बढ़ाकर, 30,000 कर दी गई है. साथ ही राज्य के सभी मेडिकल कॉलेज अस्पतालों को, ऑक्सीजन प्लांट लगाने के लिए कहा गया है, और उन्हें अपने यहां बिस्तरों की संख्या बढ़ाने पर भी, फैसला लेने की आज़ादी दी गई है’.

न्यूज़ एजेंसी पीटीआई की एक रिपोर्ट में, सीएम का ये कहते हुए हवाला दिया गया था, कि उनकी सरकार ने केंद्र सरकार से पश्चिम बंगाल के लिए, तीन करोड़ टीकों की मांग की थी, जिनमें से एक करोड़ निजी अस्पतालों में वितरित किए जाएंगे.

उन्होंने कहा, ‘वायरस संक्रमण की चेन को तोड़ने के लिए, लोकल ट्रेनों को स्थगित करने जैसे, बहुत से क़दम उठाए जा रहे हैं. हर व्यक्ति को सख़्ती के साथ कोविड-19 प्रोटोकोल्स का पालन करना चाहिए, और ऐसे बर्ताव करना चाहिए, जैसे पूरे राज्य में लॉकडाउन लगा हो’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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