रांची : महज 21 साल की गुड़िया कच्छप फाइनल में पहुंची अपनी टीम के साथ पिच पर उतरने के लिए पूरी तरह तैयार थीं कि उन्हें रुकना पड़ा. रांची में हाल ही में खत्म हुए एक फुटबॉल टूर्नामेंट के फाइनल का यह सीन आम मैचों से अलग था.
गुड़िया को किसी चोट या फिर अनुशासन संबंधी वजह से नहीं बल्कि इसलिए रुकना पड़ा क्योंकि उनका 8 महीने का बच्चा उन्हें जाता देख रोने लगा था. गुड़िया रुकीं, बच्चे को दूध पिलाया और फिर निकल पड़ीं अपनी टीम के साथ, वह हासिल करने जिसका सपना उन्होंने शायद ही कभी देखा था.
झारखंड की राजधानी रांची में हुए इस टूर्नामेंट में 20 साल से लेकर 36 साल की इन महिलाओं में कुछ दूसरों के घरों में खाना बनाती हैं, कुछ मजदूरी तो कुछ सड़कों पर झाड़ू लगाती हैं.
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मेहनत मजदूरी करती हैं, बिना किसी सपने के बस खेलना है
गुड़िया द्वारा अपने बेटे को दूध पिलाना खत्म करने से पहले ही रेफरी ने सीटी मारी और गुड़िया को अपना ध्यान बच्चे से हटाकर टीम पर लगाना पड़ा. रेफरी की सीटी सुनकर टीम के साथ वह मैदान पर पहुंचीं. फिलहाल गुड़िया ने अपनी टीम के साथ मिलकर बेहतरीन खेल दिखाया और इस अनोखे टूर्नामेंट का खिताब जीत लिया.
क्यों खेल रही हैं आप लोग? इस सवाल पर रीना धान बताती हैं स्कूल के समय वह एथलीट थीं. स्कूल से राज्य स्तर पर खेलीं. 10 साल हो गए छोड़े हुए. इस बीच सुबह उठते ही ईंटा ढोने चली जाती हैं, रात को घर का काम करती हैं. बहुत मन करता था कुछ खेलने का. रीना का कहना है कि वह इस खेल को लेकर कोई सपना नहीं देखतीं… उन्हें बस बॉल के साथ भागना अच्छा लगता है.
टूर्नामेंट खत्म हो गया लेकिन इसे भुला पाना आसान नहीं है. इस टूर्नामेंट में खेलने वाली गुड़िया के पति राजमिस्त्री हैं और घर चलाने के लिए वह भी मजदूरी करती हैं. गुड़िया का कहना है कि वह स्कूल टाइम में फुटबॉल खेलती थीं.
मांजती हैं घरों में बर्तन
इस टूर्नामेंट में हिस्सा लेने वाली 32 साल की किरण महतो रांची से 93 किलोमीटर दूर गुमला जिले की रहने वाली हैं. रांची में रहकर लोगों के घरों में बर्तन मांजने और खाना बनाने का काम करने वाली किरण सिक्योरिटी गार्ड की ट्रेनिंग भी ले रही हैं. किरण का कहना है, ‘पति शराब बहुत पीता है. इसलिए बच्चों को पढ़ाने के लिए उससे अलग रांची आ गईं.’
यहां किराए के मकान में रहने वाली किरण सुबह 6 बजे काम पर निकल जाती हैं. काम के बीच में मिलने वाले 2 घंटे के वक्त में वह अपनी टीम के साथ इस टूर्नामेंट की तैयारी करती थीं. अपनी टीम की कैप्टन किरण बड़ी मासूमियत से पूछती हैं- शादीशुदा महिलाओं के लिए देश में कोई बड़ा टूर्नामेंट नहीं होता है क्या?
पता नहीं था चार बच्चे पैदा होने के बाद खेलूंगी
फाइनल में पहुंची दूसरी टीम की मंजू बाखला (35) के चार बच्चे हैं. इससे पहले उन्होंने कभी फुटबॉल नहीं खेला. हाफ पैंट और टीशर्ट पहने झिझकती हुई मंजू कहती हैं कि उन्हें बचपन से ही खेलने का बहुत मन था, लेकिन कभी सोचा नहीं था कि यह सपना चार बच्चों की मां होने के बाद पूरा होगा.
इसी टीम की 21 साल की चांगो किस्पोट्टा के पैर पर प्लास्टर चढ़ा हुआ है. पिछले मैच में उन्हें ऐसी चोट लगी कि उनके तलवे में घाव हो गया. लेकिन यह घाव भी चांगो को रोक नहीं पाया. वह साल 2016 का यूरोपा लीग जीतने वाली मैनचेस्टर यूनाइटेड के ज़्लाटान इब्राहिमोविच, मार्कोस रोहो और एरिक ल्यूक शॉ की तरह लंगड़ाती हुईं फाइनल में अपनी टीम का हौंसला बढ़ाने पहुंच गईं. इनके पति करण तिर्की इस वक्त आर्मी में हैं और उनकी पोस्टिंग भुज में है.
एक और फाइनलिस्ट 28 साल की मुन्नी तिर्की के पति सीआरपीएफ में हैं. इस वक्त कश्मीर में पोस्टेड उनके पति ने फाइनल मैच से पहले फोन पर मुन्नी से कहा कि मौका मिला है तो अच्छे से खेलना.
लीग मैच में हार चुकी एक टीम की प्लेयर सीमा बाखला अपने घर से 20 किलोमीटर दूर रांची मजदूरी करने जाती हैं. मैच खेलने को लेकर पति और आसपास के लोगों ने बहुत विरोध किया. हालांकि, सीमा के बच्चों ने इन सबसे भिड़कर अपनी मां को तमाम लोगों के सामने सपनों को पूरा करने की आजादी दी.
जगन्नाथपुर की शीला देवी विधवा हैं. परिवार चलाने के लिए दिहाड़ी मजदूरी करने वाली शीला को साड़ी पहनकर फुटबॉल खेलता देखकर उनकी सास ने बहुत ताने मारे. तो शीला इन तानों से रुकी नहीं और आज वह खुद खेलने के साथ ही अपनी तीन बेटियों को भी फुटबॉल की ट्रेनिंग दिला रही हैं.
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नियमों का पता नहीं, पर बढ़ रहा है कारवां
रोज रांची की सड़कों पर झाड़ू लगाकर अपना दिन शुरू करने वाली पूनम बारला भी इस टूर्नामेंट में बाकी प्लेयर्स के साथ उतरी थीं. पूनम कहती हैं मुझे कहीं से पता चला कि महिलाओं के लिए फुटबॉल टूर्नामेंट हो रहा है. बस फिर क्या था सफाई के काम से एक दिन की छुट्टी लेकर पूनम ने आसपास की महिलाओं को जुटाया और निकल पड़ीं फुटबॉल खेलने.
इस खेल के नियमों से अंजान पूनम सीधे कहती हैं, मुझे नियमों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है. बस इतना पता है कि हाथ से कभी नहीं मारना है और गेंद को किसी तरह से प्रतिद्वंदी टीम के गोल पोस्ट तक पहुंचाना है.
इस लिस्ट में शामिल अनिमा उरांव (21), अंजू देवी (25), भारती लिंडा, नीतू कच्छप, ललिता, ननकी धान, ललिता तिर्की, आरती लिंडा जैसी प्लेयर्स के संघर्ष का जिक्र करने बैठेंगे तो कई सौ शब्द लिखने पड़ेंगे.
इन महिलाओं को एक सूत्र में जोड़ने वाली लक्ष्मी कुजूर (21) प्रतिज्ञा नाम की संस्था के लिए काम करती हैं. लक्ष्मी बताती हैं उनके इस प्रयास में 22 टीमें शामिल हुई थीं. टूर्नामेंट के दौरान एक टीम की खिलाड़ी पहला मैच खेलने के बाद दूसरे में नहीं आई. पता चला कि उसके पति ने खेलने के लिए बहुत मारा है. टीम की अन्य महिलाओं ने उनके पास आकर कहा कि उसकी मदद करनी है, चलिए. उसके मुताबिक इस पहल का हासिल यही है.
वहीं इस पहल से लगभग सभी टीमों में नई महिलाएं जुड़ रही हैं. हीनू यूथ क्लब टीम में चार नई खिलाड़ी जुड़ी हैं. इसमें रीता देवी (36), पूनम आईंद (21), सुशीला एक्का और कुसुम कच्छप हैं.
10 सालों तक ग्रामीण फुटबॉल एकेडमी चलाकर गांव के लड़के-लड़कियों को मुफ्त में प्रशिक्षण देने वाले झारखंड के जाने-माने कोच रिजवान अली बताते हैं झारखंड स्पोर्ट्स का माइंस है. पहाड़ों और जंगली इलाके में रहने वाले लोग आदतन मेहनती होते हैं. यहां से अगर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी निकल रहे हैं, उसकी वजह सरकार, सरकारी योजनाएं या सुविधाओं से कहीं ज्यादा यहां के अभिभावक हैं. रिजवान फिलहाल गुमला जिले में 11 हजार रुपए की पगार पर डे-बोर्डिंग सेंटर में प्रशिक्षण देने के अलावा चश्मा बनाने की दुकान चलाते हैं.
भारतीय महिला फुटबॉल टीम में गोलकीपर रहीं झारखंड की पुष्पा तिर्की कहती हैं यहां लोगों में फुटबॉल की दीवानगी की कोई वजह नहीं खोजी जा सकती, लेकिन इन महिलाओं का इस तरह खेलना वाकई कमाल है. पुष्पा फिलहाल सीआरपीएफ में नौकरी करती हैं और जालंधर में पोस्टेड हैं.
रेगुलर फुटबॉल की बात करें तो गोवा में भारतीय महिला टीम अंडर 17 वर्ल्ड कप तैयारी के लिए कैंप कर रही है. इसमें झारखंड की सुमंती कुमारी, पूर्णिमा कुमारी, सुनीता मुंडा, अमीशा बाखला और अष्टम उरांव भी शामिल हैं. वहीं सीनियर इंडिया टीम में चयन के लिए कैंप में यहां से प्रतीक्षा लकड़ा और शारदा कुमारी का चयन हुआ है.
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फाइनल मैच जीतने के बाद अब जमकर खेलने की तैयारी
इधर फाइनल मैच जीतने के बाद इन महिलाओं ने जमकर खेलने की तैयारी कर ली है. किरण महतो की अगुवाई वाली यूथ क्लब हीनू की टीम ने टूर्नामेंट जीतने पर इनाम में आठ हजार रुपए जीते. तय हुआ है कि इससे सबके लिए एक-एक जर्सी और दो फुटबॉल खरीदी जाएंगी. अब ये महिलाएं हफ्ते में तीन दिन जमकर खेलना चाहती हैं.
इस तरह का टूर्नामेंट वह पहली बार खेल रही थीं. ये कैरिअर नहीं बना रही थीं, किसी को हराने के लिए नहीं खेल रहीं थीं. ये बस खेल रही थीं. अगले दिन सब के सब मजदूरी और घरों में खाना बनाने के लिए निकल पड़ी थीं.
सोनाली कच्छप रांची एरयपोर्ट रोड के पास एक मकान में ईंटा ढो रही थीं. किरण देवी डोरंडा इलाके के एक घर में बर्तन मांज रही थीं. रीना धान एयरपोर्ट से सटे एक गांव में सीमेंट से बड़े पत्थर निकाल रही थीं. अधिकतर ‘खिलाड़ी’ दो जून की रोटी के जुगाड़ में रमी दिखीं.