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Sunday, 19 May, 2024
होमदेशरेल में सफर कर रही किन्नर ने RPF के जवानों पर लगाया 'सेक्शुअल हैरसमेंट' और मारपीट का आरोप, दर्ज नहीं हुई FIR

रेल में सफर कर रही किन्नर ने RPF के जवानों पर लगाया ‘सेक्शुअल हैरसमेंट’ और मारपीट का आरोप, दर्ज नहीं हुई FIR

खबर लिखे जाने तक मामले में FIR दर्ज नहीं की गई थी. RPF के इंस्पेक्टर ने कहा कि किन्नर ने अपना पक्ष मजबूत करने के लिए खुद अपना सिर फोड़ लिया. हालांकि, उसके सिर से नहीं बल्कि मुंह और नाक से खून निकल रहा था.

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रांची: झारखंड के जामताड़ा जिले में एक किन्नर के साथ पुलिस की बर्बरता की बात सामने आई है. घटना बीते शनिवार 29 मई की है. किन्नर अश्विनी आंबेडकर ने आरोप लगाया कि उसके साथ ट्रेन में रेलवे सुरक्षा बल के जवानों ने मारपीट की, जिससे उसके नाक और मुंह से खून निकल आया. मामले में शिकायत दर्ज करा दी गई है लेकिन खबर लिखे जाने तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई है.

दर्ज शिकायत के मुताबिक अश्विनी टाटा-दानापुर ट्रेन से दोपहर 12 बजे आसनसोल से मधुपुर जा रहीं थीं, इस दौरान दो पुलिसकर्मियों ने उससे टिकट दिखाने को कहा. उसके पास टिकट नहीं था.

अश्विनी ने अपनी शिकायत में साफ साफ लिखा है कि क्योंकि उसकी मां की तबियत खराब थी, वह जल्दबाजी में टिकट नहीं ले पाई.

अश्विनी ने शिकायत में लिखा है, ‘दोनों जवान उसे बाथरूम की तरफ ले गए, जहां उसके साथ ज़बरदस्ती की और साथ ही सेक्शुअल फेवर भी मांगा. विरोध करने पर जवानों ने उसके नाक पर घूंसा मारा गया. जिससे उसके नाक और मुंह से खून निकल आया.’

झारखंड के गिरिडीह जिले के राजेंद्रनगर निवासी अश्विनी आंबेडकर ने अपनी शिकायत में इंसाफ दिलाने की मांग की है.

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दिप्रिंट से हुई बातचीत में उन्होंने बताया, ‘घटना के बाद काफी देर तक पुलिसवाले एफआईआर दर्ज नहीं कर रहे थे. फिर रेल थाने से ही अश्विनी ने वीडियो बनाकर अपने समाज के कुछ लोगों को भेजा.’

अश्विनी ने बताया कि डीएसपी साजिद ज़फर जब थाना पहुंचे और उन्होंने उनसे बात की. जिन पुलिसर्मियों ने मेरे साथ मारपीट की, उन्होंने डीएसपी के आदेश के बाद मुझसे माफी भी मांगी.’ साजिद जफर जीआरपी धनबाद के डीएसपी हैं.

हालांकि डीएसपी ने साफ कहा कि अगर वह एफआईआर दर्ज कराना चाहती हैं तो करा सकती हैं. इसके बाद कहीं जाकर एफआईआर दर्ज हुई है.  सोमवार को फिर उन्हें थाने बुलाया है.


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पूरे परिवार का खर्चा चलाती हैं अश्विनी

अश्विनी आंबेडकर के साथ मां, दो छोटी बहन और नाना रहते हैं. पिताजी साथ नहीं रहते हैं.

अश्विनी ने बताया कि पूरे घर की जिम्मेदारी उनके ही कंधों पर है. उनके मुताबिक, ‘लॉकडाउन की वजह से काम मिलना  बंद हो चुका है.’

अश्विनी कोर्ट-कचहरी में कागज तैयार करने का काम करती थीं. किसी की जमीन का कागज बनवाना, किसी के एप्लीकेशन, जमीन का म्यूटेशन, ब्लॉक में किसी को पीएम आवास दिलवाना इत्यादि से संबंधित काम में लोगों को मदद करती थी. इसमें थोड़ी-बहुत कमाई हो जाती थी.

अश्विनी ने 12वीं तक पढ़ाई की है, उसके बाद पढ़ाई जारी नहीं रख पाई.  इस वक्त जमशेदपुर की सामाजिक संस्था ट्रांस उत्थान से भी जुड़ी हुई हैं.

वो आगे कहती हैं, एक साल पहले भी पुलिसवालों ने मेरे साथ मारपीट की थी, जब मैं किसी और को बचाने के लिए गई थी. लोग हम किन्नरों को अलग दुनिया का मानते हैं, कम शिक्षित मानते हैं. इसलिए इस तरह का व्यवहार करते हैं. जब हम दूसरे जेंडर के बारे में सही सोचते हैं, वो हमारे बारे में ऐसा क्यों सोचते हैं.’

‘ हमें सोसाइटी में इज्जत मिलनी चाहिए.’

अश्विनी ने नहीं पहना था मास्क- आरपीएफ

पूरे मामले पर जामताड़ा रेलवे सुरक्षा बल के थाना प्रभारी शमीम खान अलग ही बात कहते हैं. खान ने दिप्रिंट को बताया कि शिकायतकर्ता ने ‘मास्क नहीं पहना था.’

खान बताते हैं कि ‘जब उन्हें रोका गया और उनसे लीगल अथॉरिटी दिखाने को कहा गया, जिसे उन्होंने नहीं दिखाया. जिसके बाद दोनों पुलिस और अश्विनी के बीच बहस हुई. इसके बाद हमारे पुलिसकर्मियों के साथ दुर्व्यवहार किया गया. यह ऑन ड्यूटी कर्मचारी के साथ गलत माना जाएगा.’

अश्विनी के साथ मारपीट की बात पर उन्होंने कहा, ‘किन्नर ने अपना पक्ष मजबूत करने के लिए खुद ट्रेन की सीट पर अपना सिर मार लिया.’

दिप्रिंट को मिले वीडियो में अश्विनी के नाक और मुंह से खून बह रहा है. जबकि, थाना प्रभारी सिर फोड़ने की बात कह रहे हैं.

उन्होंने आगे बताया कि किन्नर की नाराजगी इस बात पर थी कि उसे ट्रेन में रोका क्यों गया. थाना लाए जाने पर जब हमने उन्हें इलाज के लिए सदर अस्पताल चलने को कहा तो वह इसके लिए भी तैयार नहीं थी. बाद में काफी मान-मनौव्वल के बाद गईं. हालांकि, अभी तक मामले में एफआईआर दर्ज नहीं की गई है. लिखित शिकायत ही ली गई है.

SC के आदेश के बाद भी झारखंड में नहीं बना किन्नरों का आईडेंटिटी कार्ड

झारखंड हाईकोर्ट के वकील और ट्रांसजेंडरों के अधिकार के लिए पीआईएल दाखिल करने वाले सोनल तिवारी कहते हैं, नालसा जजमेंट 2014 के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंटर को थर्ड जेंडर घोषित किया और कहा कि इन्हें भी वही अधिकार है जो बाकी नागरिकों को हैं. संविधान में मिलने वाले हर अधिकार पर इनका बराबर का हक है. सारे सरकारी डॉक्यूमेंट्स में थर्ड जेंडर को लीगली रिकॉगनाइज किया जाए.

वो आगे कहते हैं, इसके अलावा इन्हें सोशली और एजुकेशनली बैकवर्ड क्लास घोषित किया जाए. उसी के तहत इन्हें रिजर्वेशन का प्रावधान दिया जाए. पांच साल के बाद भारत सरकार ने दी ट्रांसजेंडर पर्सन प्रोटेक्शन ऑफ राइट एक्ट 2019, बनाया. इस एक्ट के सेक्शन 5 और 6 में इस बात का जिक्र है कि सभी ट्रांसजेंडर्स का एक आइडेंटिडी सर्टिफिकेट बनाया जाएगा, इसका पावर डीसी को दिया गया है. लेकिन झारखंड में आज तक एक भी ट्रांसजेंडर का आई कार्ड नहीं बना है.

वहीं ट्रांसजेंडर की सामाजिक संस्था उत्थान सीबीओ की अध्यक्ष अमरजीत के बताते हैं कि राज्य में जनगणना के मुताबिक 13,00 के लगभग किन्नर बताए गए हैं जबकि हमारे आंकड़े बताते हैं कि राज्य में कम से कम दस हजार के लगभग ट्रांसजेंडर हैं.

अमरजीत आगे कहते हैं, ‘सरकार जब हमें अधिकार नहीं देती है, तो हमें प्रताड़ित भी न करें. आज तक हमारे पास ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड नहीं है, कहीं जॉब ऑप्शन नहीं है. लोग घरों में मांग-मांगकर ही अपना जीवन चलाते हैं. जबकि कई लोग पढ़े लिखे हैं. हमारे लिए न तो एक शौचालय बनाया गया है न ही एक अदद ऑफिस दिया गया, जहां हम लोग बैठकर अपने अधिकार के लिए बात करें, लड़ें.’

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)


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