नई दिल्ली : पाकिस्तान के सिंध से कई सपने लिए एक हिंदू परिवार 4 मई को भारत आया. लेकिन अब उनके सपने धुंधले हो गए हैं. दो बार पाकिस्तान से भारत आने-जाने में बच्चों की उम्र बढ़ गई. अब दिल्ली का एक सरकारी स्कूल चार में से तीन बच्चों को दाखिला नहीं दे रहा. हालांकि, दिप्रिंट ने जब ये मामला दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया के सामने उठाया तो उन्होंने बच्चों के दाखिले का आश्वासन दिया.
हिंदुस्तान में छह साल से रह रहे बच्चों के चाचा जवाहर लाल का कहना है कि बच्चों के भविष्य के लिए ही उनके भाई का परिवार हिंदुस्तान आया है. जवाहर शिक्षा मंत्री सिसोदिया से मिलने उनके आवास पर गए थे. लेकिन शिक्षा मंत्री के गार्ड ने उन्हें आगे नहीं जाने दिया. इस बारे में जब दिप्रिंट ने शिक्षा मंत्री को जानकारी दी तो उन्होंने कहा, ‘अगर बच्चे दिल्ली में ही रहते हैं तो उनका दाखिला होने में कोई दिक्कत नहीं होगी.’
हिंदुओं के ख़िलाफ पाक के घोटकी में हाल ही में हुई हिंसा की घटनाओं का हवाला देते हुए जवाहर बताते हैं, ‘चार बच्चों को यहां 9वीं क्लास में रजिस्ट्रेशन मिल गया था. एक बच्ची अभी उसी स्कूल (राजकीय सह शिक्षा माध्यमिक उच्च विद्यालय, भाटी माइन्स) में 8वीं में पढ़ी रही है, लेकिन बाकियों को ज़्यादा उम्र का बताकर स्कूल से निकाल दिया गया.’
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दाखिले से महरूम हुए बच्चों में शामिल रवि (15 साल) ने बताया कि स्कूल वालों ने कहा कि यहां आना है तो ड्रेस और किताबें ख़रीदनी पडे़ंगी. परिवार वाले पैसे ख़र्च कर ये सब ले आए. रवि ने कहा, ‘एक अगस्त से हम स्कूल जाने लगे. लेकिन करीब एक महीने बाद स्कूल वालों ने हमें आने से मना कर दिया.’
इसके पहले बच्चों के पिता गुलशेर (50) 2016 में भारत आए थे लेकिन तब उनकी मां को वीज़ा नहीं मिल पाया था जिसकी वजह से उन्हें पाकिस्तान जाना पड़ा. जब उनकी मां का इंतकाल हो गया तो परिवार फिर से इस साल भारत आ गया. इस बीच बच्चों की पढ़ाई बर्बाद होती रही. गुलशेर बताते हैं कि उनके तीन और बेटे हैं जो अभी भी पाकिस्तान में हैं और पढ़-लिखकर नौकरी कर रहे हैं.
फिर वो सवाल उठाते हैं कि भारत में बच्चे नहीं पढ़ेंगे तो आगे क्या करेंगे? भाटी माइन्स स्कूल में शिक्षा के प्रभारी प्रमोद कुमार से दिप्रिंट ने जब इस बारे में बात की तो उन्होंने दिल्ली सरकार द्वारा जारी किए गए ‘बिना-योजना वाले दाखिले से जुड़े उम्र के मानदंड’ वाले दस्तावेज दिखा दिए. उन्होंने ये भी कहा कि बच्चों को रजिस्ट्रेशन दे दिया गया था, लेकिन जब आगे फाइनल लिस्ट आई तो पाया गया कि इनकी उम्र ज़्यादा है.
सिंध के जिस सुक्कर प्रांत से ये लोग आए हैं उसमें बड़ी संख्या मे हिंदू आबादी होने की जानकारी देते हुए जवाहर बताते हैं कि यहां इस्लामी कट्टरपंथी मियां मिट्ठू का आतंक है. वो कहते हैं, ‘मियां मिट्ठू हमारे घर से कुछ ही दूरी पर रहता है. वो इतने ज़ालिम लोग हैं कि उनके पास पुलिस को छोड़ो फौज भी नहीं जाती.’
वो ये भी बताते हैं कि दिल्ली के छतरपुर के भाटी में बसे उनके जैसे पाकिस्तानी हिंदू अपने मोहल्ले का नाम ‘रामकृपाल मोहल्ला’ रखना चाहते हैं. लेकिन स्थानीय लोग इसे पाकिस्तानी मोहल्ला बुलाते हैं. वो अंदाज़े से बताते हैं कि इलाके में चार-पांच हज़ार लोग रहते होंगे और बहुतों को नागरिकता भी मिल गई है.
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यहां सड़क का नामोनिशान तक नहीं है और पूरे इलाके में गंदगी का अंबार है. दिल्ली के छतरपुर मेट्रो से करीब 11 किलोमीटर दूर स्थित ये इलाका लगता ही नहीं की राष्ट्रीय राजधानी का हिस्सा है. दिप्रिंट ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि पाकिस्तानी हिदुओं के आदर्श नगर जैसे अन्य इलाकों की भी हालत ऐसी ही नारकीय है.
जवाहर ने बताया कि पाकिस्तान का पासपोर्ट देखकर लोग डर जाते हैं. एक वाकया बताते हुए उन्होंने कहा, ‘एक बार मैं बच्चों के दाखिले के लिए मदद लेने सामाजिक कार्यकर्ता अशोक अग्रवाल से मिलने कोर्ट गया. मेरा पाकिस्तानी पासपोर्ट देखकर सुरक्षाकर्मी मुझे थाने लेकर चले गए.’
अग्रवाल की तारीफ करते हुए वो कहते हैं कि उन्होंने इलाके के 30-35 बच्चों के दाखिले में मदद की है. वहीं, अग्रवाल ने दिप्रिंट से कहा कि उन्होंने दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को एक पत्र भी लिखा है और बात नहीं बनने पर कोर्ट जाने को तैयार हैं. उन्होंने कहा, ‘बच्चों का एडमिशन तो होकर रहेगा.’
फिलहाल, शिक्षा मंत्री के अश्वासन के बाद उम्मीद है कि बच्चों को ज़्यादा दिन स्कूल से बाहर नहीं रहना पड़ेगा.
(अनीषा बेदी के इनपुट के साथ)