नई दिल्लीः कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक पद से आलोक वर्मा को हटाने के लिए आधार बनाई गई केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग की है. इस रिपोर्ट को सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एके पटनायक ने अस्वीकार कर दिया है, जिससे सरकार के लिए असहज स्थिति बनी है. खड़गे ने सीबीआई के अंतरिम निदेशक के रूप में एम नागेश्वर राव की नियुक्ति को भी अवैध करार दिया और नए निदेशक की नियुक्ति के लिए उच्चस्तरीय स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक की मांग की.
उन्होंने एक पत्र में कहा, ‘मैंने समिति के सदस्यों (प्रधानमंत्री और प्रधान न्यायाधीश नामित) को इस बात के लिए राजी करने का पूरा प्रयास किया था कि हमें कानून की नियत प्रक्रिया और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए, लेकिन सदस्यों ने एक ऐसी रिपोर्ट के आधार पर फैसला किया, जिसे न्यायमूर्ति पटनायक द्वारा अस्वीकार कर दिया गया है. सर्वोच्च न्यायालय ने उनसे सीवीसी जांच की निगरानी करने को कहा था.’
खड़गे ने उन मीडिया रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें पटनायक के हवाले से कहा गया कि ‘वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के कोई सबूत नहीं हैं’ साथ ही उन्होंने कमेटी के फैसले को ‘बहुत ही जल्दबाजी में लिया गया’ करार देते हुए कहा कि ‘सीवीसी के कहे को अंतिम शब्द नहीं कहा जा सकता.’
उन्होंने कहा, ‘अगर कमेटी ने सीवीसी की रिपोर्ट, जस्टिस पटनायक की रिपोर्ट, आलोक वर्मा द्वारा अपने बचाव में दी गई दलील और फैसले पर पहुंचने से पहले अपने निष्कर्षों की स्वतंत्र रूप से जांच करने का फैसला किया होता तो इतनी बड़ी शर्मिंदगी से बचा जा सकता है.’
उन्होंने कहा कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के वरिष्ठ प्रतिनिधि वाली एक समिति को बिना रिपोर्ट के पुनरीक्षण किए व अपना दिमाग लगाए एक बाहरी एजेंसी (चाहे वह कितनी सक्षम क्यों न हो) द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट पर निर्णय नहीं लेना चाहिए था.
उन्होंने कहा, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार के चालाकीपूर्ण कृत्य सीधे तौर पर न्यायपालिका के लिए गहरी शर्मिंदगी पैदा करने के लिए जिम्मेदार है. गौर करने वाली बात यह है कि आलोक वर्मा को हटाते समय सरकार ने एक भी उचित आदेश जारी नहीं किया, जो कि एक अनुचित स्थिति की ओर इशारा करता है, जहां न्यायपालिका के सदस्य को अप्रत्यक्ष रूप से लिए गए निर्णय का बचाव करने के लिए मजबूर होना पड़ा.’
उन्होंने कहा, ‘सरकार किसी बात को लेकर बहुत चिंतित दिखाई दे रही है और उसने बेहद जल्दबाजी में एक शख्स को उसके पद से हटा दिया. आलोक वर्मा को उनकी सेवानिवृत्ति के बाद भी अग्निशमन सेवा के महानिदेशक के रूप में स्थानांतरित करने का तर्कहीन फैसला लिया गया.’
खड़गे ने कहा कि सीबीआई में नियुक्तियों को संभालने में सरकार के कदम लगातार दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टैब्लिशमेंट (डीएसपीई) एक्ट की भावना के खिलाफ रहे हैं.
उन्होंने यह भी कहा कि वह समिति के ध्यान में लाये थे कि 2017 में वर्मा की नियुक्ति डीएसपीई अधिनियम की शर्तों को पूरी तरह से संतुष्ट नहीं करती थी, लेकिन फिर भी इस पर विचार नहीं किया गया.
उन्होंने कहा कि इसी तरह, समिति को शामिल किए बिना वर्मा को जब पहले हटाया गया था तब भी डीएसपीई अधिनियम का उल्लंघन किया गया था और 10 जनवरी को अंतिम रूप से हटाया जाना भी कानून की प्रक्रिया या प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किए बिना किया गया.
उन्होंने कहा, ‘प्रत्येक उदाहरण में विपक्ष की ओर से दी गई मेरी सलाह को सरकार द्वारा लगातार दरकिनार किया गया’
नागेश्वर राव को अंतरिम निदेशक के रूप में नियुक्त करने का उल्लेख करते हुए कांग्रेस नेता ने कहा कि इसे लेकर भी कमेटी से परामर्श नहीं किया गया, क्योंकि सरकार ने उन्हें नियुक्त करने के लिए अपना मन बना लिया था और यह मामला पहले कभी भी उनके समक्ष नहीं रखा गया.
उन्होंने कहा, ‘अंतरिम निदेशक की नियुक्ति अवैध है और यह डीएसपीई अधिनियम की धारा 4 ए (1) और 4 ए (3) के भी खिलाफ है.’
उन्होंने कहा कि सरकार के कृत्यों से संकेत मिलता है कि वह एक स्वतंत्र निदेशक की अगुवाई वाली सीबीआई से डरती है.
खड़गे ने कहा, ‘सरकार को सीवीसी रिपोर्ट, न्यायमूर्ति पटनायक की रिपोर्ट और 10 जनवरी, 2019 को हुई बैठक के मिनट को जारी कर अपना पक्ष साफ करना चाहिए, ताकि जनता इस मामले पर अपना निष्कर्ष निकाल सके.’
खड़गे ने कहा कि सरकार को भ्रष्टाचार से लड़ने और प्रमुख जांच एजेंसी की ईमानदारी सुनिश्चित करने के लिए डीएसपीई अधिनियम के अनुसार विशेष समिति की तत्काल बैठक बुलाकर बिना किसी देरी के निदेशक नियुक्त करना चाहिए.
उन्होंने कहा कि किसी भी प्रकार की देरी से इस संस्था और इसकी विश्वसनीयता पर से लोगों का विश्वास और घट जाएगा.