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मंगलवार, 13 मई, 2025
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संवैधानिक मूल्यों को अक्षुण्ण रखना सीजेआई संजीव खन्ना के कार्यकाल की विशिष्टता

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(संजीव कुमार)

नयी दिल्ली, 13 मई (भाषा) भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना ने इस पद पर संक्षिप्त, लेकिन घटनापूर्ण छह महीने का अपना कार्यकाल मंगलवार को पूरा किया, जिसमें उन्होंने धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखने और सार्वजनिक नियोजन में भ्रष्टाचार से लड़ने के महत्वपूर्ण फैसले के साथ न्यायिक परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी।

कुछ लोगों का कहना है कि सीजेआई अपने सम्मानित चाचा न्यायमूर्ति एच. आर. खन्ना की उम्मीदों पर खरे उतरे और उनकी विरासत को संभाला।

न्यायमूर्ति एच आर खन्ना आपातकाल के दौरान ‘‘एडीएम जबलपुर’’ मामले में फैसला देने वाली पीठ के एक मात्र सदस्य थे, जिन्होंने असहमति का फैसला लिखा था।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने भी एक अलग सोच रखने वाले व्यक्ति के रूप में कुछ अभूतपूर्व फैसले लिये।

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को अपनी संपत्ति के खुलासे का निर्देश देना उनके कुछ महत्वपूर्ण दिशानिर्देशों में से एक था। एक मौजूदा न्यायाधीश के आधिकारिक आवास से नकदी मिलने से उत्पन्न विवाद के बाद उन्होंने जांच की अनुमति दी।

न्यायाधीशों की नियुक्तियों पर कॉलेजियम रिकॉर्ड को सार्वजनिक करने के उनके एक और अनसुने फैसले ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया।

पद छोड़ने से कुछ दिन पहले न्यायमूर्ति खन्ना ने भाजपा सांसद निशिकांत दुबे द्वारा देश में ‘गृह युद्धों’ के लिए सीजेआई को जिम्मेदार ठहराए जाने के बाद शुरू हुई राजनीतिक बहस को समाप्त कर दिया।

सीजेआई ने करारा जवाब देते हुए कहा कि संविधान सबसे सर्वोच्च है, लेकिन भाजपा सांसद के खिलाफ अवमानना ​​की कार्रवाई नहीं की गयी।

सीजेआई खन्ना ने भाजपा सांसद दुबे को सबक सिखाया, जिन पर शीर्ष अदालत के अधिकारों को कमतर करने और बदनाम करने का आरोप लगाया गया था।

उन्होंने कहा, ‘‘यह संविधान ही है, जो हम सभी से ऊपर है। संविधान ही तीनों अंगों (कार्यपालिका, विधायिका एवं न्यायपालिका) में निहित शक्तियों पर सीमाएं और प्रतिबंध लगाता है। न्यायिक समीक्षा की शक्ति संविधान द्वारा न्यायपालिका को प्रदान की जाती है।’’

सीजेआई खन्ना ने 11 नवंबर, 2024 को 51वें सीजेआई के रूप में शपथ ली और जब कानूनी चुनौतियों एवं राजनीतिक प्रतिकूलताओं का सामना करना पड़ा, तो वह संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए खड़े हुए।

उन्होंने सीजेआई बनने के तुरंत बाद एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया और संविधान में 1976 के संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ शब्द जोड़े गए थे। उन्होंने कहा कि संसद की संशोधन शक्ति संविधान की प्रस्तावना तक विस्तारित है।

उन्होंने कहा कि ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ जैसे शब्द ‘प्रस्तावना के अभिन्न अंग हैं और इस प्रकार याचिका सवाल के घेरे में आती है।

सार्वजनिक नियोजन में भ्रष्टाचार को बिल्कुल न सहने की नीति को कायम रखते हुए उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने चयन प्रक्रिया में अनियमितताओं के कारण पश्चिम बंगाल के स्कूलों में 25,000 से अधिक शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्तियों को रद्द कर दिया।

उन्होंने इस मामले में मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए सामूहिक निरस्तीकरण के कारण स्कूलों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की राज्य की दलील पर ध्यान दिया और इस बीच नयी भर्ती पूरी करने की शर्त के साथ बेदाग शिक्षकों को 31 दिसंबर, 2025 तक काम जारी रखने की अनुमति दी।

सीजेआई ने वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की और अपनी पीठ की टिप्पणियों तथा प्रश्नों के माध्यम से पूर्ववर्ती कानून में प्रमुख कानूनी बदलावों को रेखांकित किया।

इस मामले में केंद्र ने याचिकाओं पर 1,000 से अधिक पृष्ठों का जवाबी हलफनामा दाखिल किया।

व्यापक सुनवाई के बाद सीजेआई खन्ना ने बाद में मामले को अपने उत्तराधिकारी न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ को सौंप दिया।

दिल्ली उच्च न्यायालय में पदोन्नत होने से पहले तीसरी पीढ़ी के वकील न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने लंबित मामलों को कम करने और न्याय प्रदान करने में तेजी लाने पर ध्यान केंद्रित किया।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना का जन्म 14 मई, 1960 को हुआ था और उन्होंने 1983 में दिल्ली बार काउंसिल में अधिवक्ता के रूप में नामांकित होने से पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस लॉ सेंटर में कानून की पढ़ाई की थी।

एक वकील के रूप में, उन्होंने तीस हजारी परिसर में जिला अदालतों में प्रैक्टिस की और बाद में वह दिल्ली उच्च न्यायालय में वकालत करने लगे।

भाषा

सुरेश माधव

माधव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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